Mother's Day पर मां की मिसाल! कम उम्र में हुई विधवा...खेती करके 4 बच्चों को बनाया अफसर
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Mothers Day Special Success Story: एक ऐसी मां, जो कभी स्कूल नहीं गई लेकिन उसने यह ठान लिया कि वह अपने सभी बच्चों को अफसर बनाइएंगी. 80 साल की प्रेमवती ग्रेटर नोएडा के दादरी के कठेहरा गांव की रहने वाली हैं. मां ने सभी बच्चों को पढ़ाया और अफसर बनाया.
यह दुनिया मां के संघर्ष की कहानियों से भरी पड़ी है, मां ही है जो एक छोटे बच्चे को उंगली पकड़कर चलाने से लेकर उसे दुनिया में रहने के काबिल बनाने के पीछे बहुत सारे संघर्ष करती है लेकिन आज मदर्स डे (Mother's Day) के खास दिन पर हम आपको ऐसी मां की कहानी बता रहे हैं, जो खुद कभी स्कूल नहीं गई लेकिन उसने यह ठान लिया कि वह अपने सभी बच्चों को अफसर बनाइएंगी. ये कहानी है 80 साल की प्रेमवती अम्मा की.
किसी परिवार में एक बच्चा भी अफसर हो जाए तो वह परिवार खुशी से फूला नहीं समाता लेकिन इस घर में तो चारों बच्चे सरकारी अफसर हैं. वह भी तब जब इन बच्चों के सिर से पिता का साया बहुत पहले उठ गया था. मां ने ही सभी बच्चों को पढ़ाया और अफसर बनाया. जीवन में ऐसे कई मौके आए जब प्रेमवती देवी टूटकर बिखर गईं लेकिन उन्होंने परिवार में शिक्षा की ऐसी अलख जगाई जो आज परिवार में एक मसाल की तरह है. प्रेमवती जैसी मां पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा हैं.
चारों बेटों का बनाया क्लास वन सरकरी अफसर प्रेमवती अम्मा के 4 बेटे हैं. सबसे बड़े बेटे सरदार सिंह कैबिनेट सेक्रेट्रेट में क्लास 1 सरकारी अफसर थे. वो अब रिटायर हो चुकें हैं. दूसरे बेटे का नाम कुलदीप सिंह हैं, वो केंद्रीय सचिवालय में क्लास 1 अफसर हैं. तीसरे बेटे का नाम पवन सिंह है, जो इनकम टैक्स एपीलेट में जज हैं और चौथे बेटे का नाम गुलाब सिंह पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर हैं.
महत 38 साल की उम्र में हो गई थीं विधवा 80 साल की प्रेमवती ग्रेटर नोएडा के दादरी के कठेहरा गांव की रहने वाली हैं. 38 साल की उम्र में इनके 8 बच्चे थे. इसी उम्र में उनके पति का देहांत हो गया था. पति अकेले कमाने वाले थे और सभी बच्चे छोटे थे. गांव देहात में पढ़ाई का अच्छा माहौल नहीं था और ना ही सुख सुविधाएं, उसके बावजूद प्रेमवती ने यह ठान लिया कि वह अपने सभी बच्चों को सरकारी अफसर बनाएंगी.
पढ़ाई के साथ थी पेट भरने की समस्या प्रेमवती के सबसे बड़े बेटे सरदार सिंह अब रिटायर हो चुकें हैं. वो बताते हैं कि घर में इनकम का कोई सोर्स नहीं था. मतलब हमें पढ़ाई भी करनी थी और पेट पालने के लिए काम भी करना था. स्कूल के बाद खेत और फिर घर में पशु थे. खेती और दूध बेचकर मां ने हम सब भाई बहनों को पढ़ाया, बड़ा किया.
गांव वालों ने मां को माना आदर्श मंझले बेटे कुलदीप सिंह कहते हैं कि गांव के लोग मां से कहते भी थे कि क्यों पढ़ाई के लिए इतना परेशान हो रही हो लेकिन मां ने कभी ऐसी बातों पर ध्यान नहीं दिया. सभी को लगता था लड़के यूं ही घूम रहे हैं, इनका कुछ नहीं होगा लेकिन जब अफसर बने तो गांव वालों ने मां को अपना आदर्श मान लिया.
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