
Main Atal Hoon Review: बढ़िया कहानी के बावजूद असरदार नहीं है पंकज त्रिपाठी की 'मैं अटल हूं'
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पंकज त्रिपाठी, डायरेक्टर रवि जाधव के साथ मिलकर अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक लेकर आए हैं. बड़े पर्दे पर आज रिलीज हुई इस फिल्म का नाम है- 'मैं अटल हूं'. ये फिल्म भारत के 10वें प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी के अलग-अलग और अहम पहलुओं को दर्शाती है. कैसी है फिल्म जानने के लिए पढ़ें रिव्यू.
हमारे देश में कई ऐसे महान पुरुष हुए हैं, जिन्होंने अपनी बुद्धि और दृढ़ निश्चय से देश को आगे बढ़ाया है. ऐसे ही एक महापुरुष थे अटल बिहारी वाजपेयी. देश के 10वें प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में जितना काम किया है, उससे कई अधिक मेहनत अपनी जिंदगी में की थी. बचपन से लेकर जवानी और फिर बुढ़ापे तक उन्होंने देश के उद्धार की कामना की, देश को ही आगे रखा. हर मोड़ पर कोशिशें कीं और काफी हद तक सफल भी रहे. अटल सिर्फ एक प्रधानमंत्री, राजनेता और और राजनीति से जुड़े इंसान नहीं थे, बल्कि एक कवि, पत्रकार और जेंटलमैन भी थे.
अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी पर बनी फिल्म
पंकज त्रिपाठी, डायरेक्टर रवि जाधव के साथ मिलकर उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक लेकर आए हैं. बड़े पर्दे पर आज, 19 जनवरी को रिलीज हुई इस फिल्म का नाम है- 'मैं अटल हूं'. ये फिल्म अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी के अलग-अलग और अहम पहलुओं को दर्शाती है. फिल्म की कहानी की शुरुआत साल 1999 से होती है, जहां प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी (पंकज त्रिपाठी), पाकिस्तान की हरकतों को लेकर तीनों सैन्य दलों के प्रमुखों से बात कर रहे हैं. कहानी आगे बढ़ती है और आप अटल जी के बचपन में पहुंच जाते हैं, जहां वो बच्चों और शिक्षकों के सामने कविता पढ़ने से डर रहे हैं. धीरे-धीरे अटल बड़े हुए और उनकी जिंदगी ने नए मोड़ लेने शुरू किए. इसी तरह उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत भी हुई.
'मैं अटल हूं' फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन से लेकर उनके कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने और परमाणु बम के पोखरण में हुए टेस्ट तक की कहानी को दिखाया गया है. इससे आपको जानने को मिलेगा कि अटल बिहारी वाजपेयी कैसे इंसान थे. उनके लिए जिंदगी और देश के मायने क्या थे. कैसे वो कविताओं के माध्यम से अपने मन की बाहर लोगों तक पहुंचाते थे. एक कवि, एक छात्र, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य उन्होंने कैसी जिंदगी जी, इसकी झलक भी ये फिल्म आपको देती है.
अब खास बात ये है कि अटल बिहारी वाजपेयी की लंबी और बड़ी जिंदगी को दिखाने में ये फिल्म कामयाबी रही या नहीं. तो इसका जवाब मेरे हिसाब से नहीं है. फिल्म में कई अहम पहलुओं जैसे- अटल जी के कॉलेज के दिन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में उनका योगदान, राष्ट्र धर्म पत्रिका के लिए उनका काम, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपध्याय संग उनके अच्छे रिश्ते, अखिल भारतीय जनसंघ का निर्माण, पंडित नेहरू संग उनकी मुलाकात, राम मंदिर विवाद और पाकिस्तान से कारगिल युद्ध, को ये फिल्म छूकर गुजरती है. लेकिन फिल्म में कोई ऐसा पल नहीं है, जो आपके मन में ठहरता है.
कैसा है पंकज त्रिपाठी का काम?

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