
Laal Singh Chaddha Review: फॉरेस्ट गंप को बेहतरीन तरीके से किया एडॉप्ट, लेकिन यहां रही चूक...
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Laal Singh Chaddha Review: एक लंबे समय बाद सुपरस्टार आमिर खान सिल्वर स्क्रीन पर आए हैं, तो उन्हें सिल्वर स्क्रीन पर देखना बनता है. फॉरेस्ट गंप के ट्रिब्यूट के रूप में फिल्म को एक मौका देना जरूर बनता है. दर्शकों के पास एंटरटेनमेंट का लुत्फ उठाने के लिए एक लंबा वीकेंड है.
लाल सिंह चड्ढा कल्ट फिल्म फॉरेस्ट गंप का हिंदी अडैप्टेशन है. फिल्म की राइट्स लेने में आमिर खान को एक दशक से भी ज्यादा वक्त लग गए थे लेकिन फिल्म का स्क्रीनप्ले महज 14 दिनों में तैयार हो गया था. रीमेक होने वाली फिल्में अक्सर ओरिजनल से तुलना की जाती रही हैं. लाजिम है दर्शक, क्रिटिक लाल सिंह चड्ढा को फॉरेस्ट गंप और आमिर को टॉम हैंक्स से कंपेयर करेंगे. इस लिहाज से लाल सिंह चड्ढा अब तक की फिल्मों में से एक बेहतरीन प्रयास है.
कहानी फिल्म की कहानी है पठानकोठ शहर से दूर एक कस्बे में रहने वाले लाल सिंह चड्ढा(आमिर खान) की, जो दिमागी रूप से थोड़ा स्लो है और कमजोर पैर होने की वजह से एक्सटर्नल फिक्सेशन के सहारे चलता है. लाल की मां (मोना सिंह) उसे बचपन से सिखाती है कि वो भी नॉर्मल बच्चों की ही तरह है और उसमें कोई कमी नहीं है. स्कूल के दौरान बुली हो रहे लाल की मुलाकात होती है रूपा(करीना कपूर खान) से, जो उसका बचपन का प्यार बन जाती है. अब लाल और रूपा की जर्नी को सन 1976 से लेकर 2018 तक दिखाया गया है. इस बीच लाल का पंजाब छोड़ दिल्ली के कॉलेज में दाखिला, इंदिरा गांधी की मौत, इमेरजेंसी, कारगिल की लड़ाई, मुंबई में हुए दंगे, कांग्रेस की सरकार के बाद भाजपा का आगमन, 26/11 आतंकी हमला, अन्ना हजारे का अनशन, और स्वच्छ भारत अभियान इन सभी की जर्नी को तय करते हुए फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है.
डायरेक्शन क्रिटिकली अक्लेम्ड फिल्म सीक्रेट सुपरस्टार बनाने के बाद अद्वैत चंदन ने फॉरेस्ट गंप जैसे आइकॉनिक फिल्म के अडैप्टेशन की जिम्मेदारी संभाली है. फिल्म की कहानी को एक धागे में पिरोने के दौरान कई लूप होल्स नजर आते हैं. सबसे पहला कारण है फिल्म का हद से ज्यादा लंबा होना, जिस वजह से सेकेंड हाफ में दर्शकों को बांध पाना मुश्किल लगने लगता है. दूसरी कमी फिल्म के स्क्रीनप्ले में है, जिसका भार एक्टर व राइटर अतुल कुलकर्णी ने संभाला है. कहानी में हर कुछ समेटने के चक्कर में किसी खास मेसेज तक नहीं पहुंचती है. कहानी दर्शकों को बांधे रखने में नाकाम रही, दरअसल आप कहानी को समझने में इतने उलझ जाते हैं कि किरदारों के साथ इमोशनल कनेक्शन पैदा नहीं हो पाता है. किरदारों के साथ बॉन्डिंग बन जाना, फिल्म को मजबूत बना देती है, जिसमें डायरेक्टर व राइटर चूकते नजर आते हैं. कुछेक सीन्स मसलन बाला(नागा चैतन्य) की डेथ, लाल का दौड़ना, रूपा संग रोमांस, दंगे के दौरान लाल के बालों को काट उसकी आइडेंटीटी छुपाना जैसी जगहों पर आप कोशिश करते हैं कि इमोशन जगे लेकिन वो महज कोशिश भर ही लगती है. मोना सिंह साथ लाल के बचपन के ट्रैक को खूबसूरती से पेश किया गया है. मां-बेटे की इमोशनल बॉन्डिंग अच्छी लगती है. ओवरऑल मास ऑडियंस को फिल्म का सार कितना समझ आता है, यह संदेहस्पद है.
टेक्निकल फिल्म कैमरे पर बहुत खूबसूरत लगती है. हर एक फ्रेम बेहद ही खूबसूरती से सजाया गया है. फिल्म के सिनेमैटोग्राफर सत्यजीत पांडेय ने अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया है. बड़ी स्क्रीन पर फिल्म को सिनेमैटिक नजरिए से देखना फील गुड कराता है. फिल्म पूरे देशभर में ट्रैवल करती है, मुंबई की तंग गलियां, पंजाब के सरसों वाले खेत, दिल्ली के कैंपस, लद्दाख की वादियों से लेकर केरल के समुद्र तक का सफर सुहाना लगता है. फिल्म की एडिटिंग इसका ड्रॉ बैक रही. हेमांती सरकार चाहतीं, तो इस 2 घंटे 39 मिनट की लंबी फिल्म को एडिट टेबल पर क्रिस्प कर सकती थीं. फिल्म 70 के दशक से 2018 तक के टाइम के बीच स्थापित की गई है. ऐसे में किरदार को अलग-अलग उम्र के पड़ाव पर दिखाना था, वहां उनके एजिंग पर डिसेंट काम किया गया है.
एक्टिंग फिल्म के सेंटर किरदार आमिर खान, अपने परफेक्शन के लिए पहचाने जाते हैं, लेकिन आमिर की इस परफॉर्मेंस पर उनका परफेक्शन नजर नहीं आता है. आमिर जैसे सशक्त एक्टर का किरदार के साथ मॉक करना निराश करता है. कहीं जगहों पर आमिर के एक्स्प्रेशन ओवर लगते हैं. मेंटली चैलेंज्ड किरदार को जिस संजींदगी से निभाने की उम्मीद आमिर से की गई थी, वहां वे फेल नजर आते हैं. माई नेम इज खान में शाहरुख खान ने भी ऐसे ही किरदार का चैलेंज लिया था और उन्होंने सहजता से निभाया भी, लेकिन इस स्क्रीन में आमिर किरदार की सेंसिबिलिटी को कैच करने में चूकते नजर आते हैं. कई जगहों पर आमिर पीके की याद दिलाने लगते हैं. आखिर के सीन में आमिर अपने एक्सप्रेशन को कन्टीन्यू नहीं कर पाते हैं, जो छूटता नजर आता है. रूपा के किरदार में करीना कपूर की डिसेंट परफॉर्मेंस रही है. कहा जा रहा है कि उनका किरदार मोनिका बेदी की जिंदगी का रेफरेंस है. फिल्म में करीना खूबसूरत लगी हैं. इस फिल्म की जान मोना सिंह रहीं, पूरी फिल्म के दौरान उनकी एक्टिंग का ग्राफ बढ़ता रहा है. इंडिपेंडेट मां के रूप में मोना की परफॉर्मेंस ने किरदार को मजबूती ही दी है.
क्यों देखें एक लंबे समय बाद सुपरस्टार आमिर खान सिल्वर स्क्रीन पर आ रहे हैं, तो उन्हें सिल्वर स्क्रीन पर देखना बनता है. फॉरेस्ट गंप के ट्रिब्यूट के रूप में फिल्म को एक मौका देना जरूर बनता है. दर्शकों के पास एंटरटेनमेंट का लुत्फ उठाने के लिए एक लंबा वीकेंड है. सबसे जरूरी बात, अगर आपको लग रहा है कि फिल्म कुछ दिनों बाद ओटीटी पर आएगी, तो आपको इसके लिए शायद 6 महीने तक का इंतजार करना पड़ सकता है, इसलिए थिएटर पर जाकर इसका लुत्फ उठाएं.

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