Keynes: वो अर्थशास्त्री जो न होता तो अमेरिका फटेहाल होता, यूरोप कंगाल!
AajTak
पहले विश्व युद्ध के बाद दुनिया जब महामंदी की चपेट में थी तो अभी रईस दिखने वाले यूरोप के देश भयंकर गरीबी से जूझ रहे थे. इन देशों में कोटे पर मिलने वाले ब्रेड के लिए जनता टूट पड़ती. बाजार दम तोड़ रहा था, उद्योग-धंधे चौपट हो चुके थे. तभी महामंदी के इस दौर में उम्मीदों की रोशनी लेकर आए अर्थशास्त्री कीन्स. उन्होंने दुनिया को खर्च और कमाई की ऐसी थ्योरी बताई कि 1930 से 1970 तक का दौर केन्सियनवाद कहा जाने लगा.
वर्ष 1929 खत्म होने वाला था. ये महामंदी का साल था. मंदी की मार से दुनिया के बाजार हांफ रहे थे. मार्केट में मनहूसी, सड़कों पर बेरोजगारों की फौज और बाजार में बिना बिके सामानों की (Unsold item) बेशुमार लिस्ट…तब दुनिया के बाजार कुछ ऐसे ही दिख रहे थे. अमेरिका, ब्रिटेन समेत दुनिया के तमाम देशों में गोदाम माल से भरे हुए थे. लोगों की क्रय शक्ति दयनीय स्तर तक गिर चुकी थी. बाजार में मांग थी ही नहीं. उत्पादन चक्र आगे बढ़ नहीं रहा था तो फिर मालिकों को मजदूरों और स्टाफ की जरूरत क्यों पड़ती? फैक्ट्रियों से बदस्तूर कर्मचारियों को पिंक स्लिप पकड़ाई जा रही थी.
तब यूरोपीय देशों में खाने के लिए ब्रेड की लाइनें ऐसे लगती थीं, मानो ये 20वीं सदी के महाशक्तियों के मुल्क नहीं, बल्कि गरीबी और फटेहाली से जूझ रहे अफ्रीकी देश हों.
अमेरिका में दो करोड़ लोग बेरोजगार थे. बेरोजगारी दर 25 फीसदी हो गई थी. नेशनल इनकम 30 फीसदी घट गई थी. शेयर बाजार क्रैश हो चुका था. अमेरिका और यूरोप ने ऐसी विकट आर्थिक परिस्थिति शायद ही कभी देखी थी. दुनिया की तत्कालीन महाशक्तियों में उथलपुथल मचा देने वाली इस आर्थिक परिघटना को 1929 की महामंदी (The Great Depression) के नाम से जाना जाता है.
महामंदी के दौर में उम्मीद लेकर आए
निराशाओं के इस फलक पर दुनिया की गोते लगाती अर्थव्यवस्थाओं के लिए ब्रिटेन का एक अर्थशास्त्री उम्मीद की किरण बनकर आया. नाम था जॉन मेनार्ड कीन्स (John Maynard Keynes). इसके विचारों ने दुनिया की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव किए. इसने पूंजीवाद को मानवीय चेहरा दिया. कल्याणकारी राज्य की अवधारणा दी. मार्केट को डिमांड के रूप में ऑक्सीजन मिला और हांफ रहे बाजार धीरे-धीरे बैलेंस बनाने में कामयाब रहे. ब्रिटेन और अमेरिका के अलावा कई देशों ने इस अर्थशास्त्री के सिद्धांतों पर अमल किया और महामंदी के इस दुष्चक्र से निकलने में कामयाब रहे.
यही नहीं वो कीन्स ही थे जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध की अथाह बर्बादी से जूझ रहे देशों को एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान बनाने का विचार दिया. विचारों का यही बीज वर्ष 1946 में वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष बनकर वर्ल्ड इकोनॉमी को संचालित करने लगा.
Petrol-Diesel Prices Today: इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल के दाम एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं, आज ब्रेंट क्रूड 71.04 डॉलर प्रति बैरल है, जबकि WTI क्रूड 67.02 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है. वहीं, भारत की बात करें तो सरकारी तेल कंपनियों ने आज 17 नवंबर, 2024 को भी सभी महानगरों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर ही रखी हैं.
Crorepati Stock: ₹1 लाख बन गए 60000000... दो रुपये वाले शेयर का कमाल, टूटते बाजार में भी मचा रहा गदर
Multibagger Stock: वारी रिन्यूएबल टेक्नोलॉजी के शेयर की कीमत पांच साल पहले 2019 के नवंबर महीने में महज 2 रुपये के आस-पास थी, लेकिन बीते कारोबारी दिन गुरुवार को इसका दाम 1480 रुपये के पार निकल गया.
Petrol-Diesel Prices Today: इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल के दाम एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं, आज ब्रेंट क्रूड 71.04 डॉलर प्रति बैरल है, जबकि WTI क्रूड 67.02 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है. वहीं, भारत की बात करें तो सरकारी तेल कंपनियों ने आज 16 नवंबर, 2024 को भी सभी महानगरों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर ही रखी हैं.
Petrol-Diesel Prices Today: इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल के दाम एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं, आज ब्रेंट क्रूड 72.12 डॉलर प्रति बैरल है, जबकि WTI क्रूड 68.29 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है. वहीं, भारत की बात करें तो सरकारी तेल कंपनियों ने आज 15 नवंबर, 2024 को भी सभी महानगरों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर ही रखी हैं.