Jigra Review: आलिया-वेदांग की दमदार एक्टिंग, इमोशनल कहानी के बावजूद फीकी है 'जिगरा'
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आपका बहन या भाई ही दुनिया में वो इंसान है, जिससे आप नफरत भी करते हैं और सबसे ज्यादा प्यार भी. पूरा दिन कुत्तों की तरह उससे लड़ने के बाद भी उसी के लिए जान देने को तैयार हो सकते हैं. ऐसा ही रिश्ता है सत्या (आलिया भट्ट) और अंकुर (वेदांग रैना) का. पढ़ें 'जिगरा' का रिव्यू.
कहते हैं दुनिया में एक ही रिश्ता आपका अपना और सबसे सच्चा होता है. ये वो रिश्ता है जिसे भगवान आसमान से आपके लिए बनाकर भेजते हैं. जिसे आप पसंद-नापसंद कर सकते हैं, लेकिन कभी पूरी तरह खत्म नहीं कर सकते. हां, मैं बहन-भाई के रिश्ते की ही बात कर रही हूं. आपका बहन या भाई ही दुनिया में वो इंसान है, जिससे आप नफरत भी करते हैं और सबसे ज्यादा प्यार भी. पूरा दिन कुत्तों की तरह उससे लड़ने के बाद भी उसी के लिए जान देने को तैयार हो सकते हैं. उसे कुछ हो जाए या वो मुश्किल में फंस जाए तो आप अपनी पूरी ताकत के साथ सबकुछ ठीक करने में लग जाते हैं. ऐसा ही रिश्ता है सत्या (आलिया भट्ट) और अंकुर (वेदांग रैना) का.
क्या है फिल्म की कहानी?
बचपन में मां-बाप को खो चुकी सत्या, छोटी उम्र में ही अपने भाई की प्रोटेक्टर बन चुकी है. स्कूल में अपनी पतली-सी आवाज और छोटी-सी हाइट के बावजूद वो भाई को हाथ लगाने वाले को सबक सिखाने में पीछे नहीं हटती. सत्या ने अपने भाई अंकुर को हर दुख और तकलीफ से बचाया है. ऐसे में जब अंकुर को हांशी दाओ नाम के एक देश में ड्रग्स के इस्तेमाल के लिए पकड़ा जाता है और जेल की सजा हो जाती है, तो सत्या, साम-दाम-दंड-भेद जैसे भी हो, भाई को बचाने निकल पड़ती है.
हांशी दाओ में सत्या की मुलाकात होती है शिखर भाटिया (मनोज पाहवा) और मुत्थू (राहुल रविन्द्रन) से. दोनों अपने किसी न किसी खास को जेल से छुड़वाने की कोशिश में लगे हुए हैं. अब तीनों मिलकर कैसे अपनी करीबियों की जान बचाएंगे, यही फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है.
क्या है अच्छा और क्या बुरा?
पिक्चर की शुरुआत काफी डार्क सीन के साथ होती है, इसके बाद आपको सत्या और अंकुर की जिंदगी में एंट्री का मौका मिलता है. दोनों एक बड़े परिवार में किराए की जिंदगी जी रहे हैं. फिल्म में शुरुआत से ही एक भारीपन महसूस किया जा सकता है. पिक्चर काफी हद तक प्रेडिक्टेबल है. आपको बीच-बीच में एहसास होता रहता है कि क्या होने वाला है. इसके साथ ही इसमें बहुत से खाली और स्लो पल भी हैं, जो इसे बोरिंग बनाते हैं और आपके पेशेंस को टेस्ट करते हैं. बीच-बीच में आप थिएटर की स्क्रीन को छोड़कर अपनी मोबाइल की स्क्रीन देखने लगते हैं. फिल्म की लेंथ भी एक बड़ी दिक्कत है.
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