Ground Report: 'बकरा काटने वाले चाकू से बेटा काट दिया, कोविड में पति चल बसे, अब CCTV के सहारे हूं...' अंकित सक्सेना की मां
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बकरा काटने का जो चाकू होता है, उससे मेरे बच्चे को काट दिया. खून भल-भल करके बह रहा था. लहराकर गिरता, उसके पहले मैंने और 'अंकित के पापा' ने उसे थाम लिया. खून से सने हुए ही ई-रिक्शा में अस्पताल पहुंचे. मरे हुए बेटे का इलाज करवाने के लिए. 6 साल बीते. अब भी खून देखते ही बेटे की कटी गर्दन याद आती है.
पश्चिमी दिल्ली का रघुबीर नगर. ठीक 6 बरस पहले यहां एक घर के जवान बेटे की गला काटकर हत्या कर दी गई. हत्यारों को शक था कि अंकित का उनकी बेटी से प्रेम-संबंध है. इसी मामले पर 15 जनवरी को सजा का फैसला आने वाला है. 3 साल के भीतर उसके पिता की भी मौत हो गई. घर में सिर्फ अंकित की मां हैं.
कुरेदने पर हिचकियां लेकर रोती नहीं, वाकया दोहराती हैं. आंखें कैमरे से अलग भटकती हुईं. हम जिस भाषा में रोते हैं, वे उस भाषा में देखती हैं.
जनवरी की बेहद सर्द सुबह हम रघुबीर नगर पहुंचे. एड्रेस पता करना मुश्किल नहीं था. मकान नंबर पूछते ही हर कोई बताने को तैयार. मुस्तैद ड्राइवर गली के मुहाने तक पीछे-पीछे आया. 'ये इलाका सही नहीं. जिनसे मिलना है, उन्हें कॉल करके नीचे बुला लें तो ठीक रहेगा.' उम्रदराज मनुहार. फोन करने पर तारदार संकरी गली से एक हाथ हिलता है.गली के बीचोबीच यही वो घर है, जहां एक औरत दो तस्वीरों के साथ रहती है.
संकरी सीढ़ियां चढ़ते ही ड्राइंगरूम खुल आता है. सामने ही अंकित की मुस्कुराती हुई लाल फूलों से सजी बड़ी-सी तस्वीर. ठीक बगल में पिता की फोटो. टाइलों से मढ़ी ये दीवार घर की अकेली चमचमाती चीज है. पास ही में सीसीटीवी स्क्रीन लगी हुई. वहां पहुंचे अंकित के रिश्तेदार कहते हैं- अकेली रहती हैं. मामला पेचीदा था. पास ही माइनोरिटी की बस्ती है. हर कोई इन्हें जानता है. हमने ही जिद करके कैमरा लगवा दिया. बाकी पड़ोसी तो हैं ही. कोई खटका हुआ तो देख लेंगे.
इतने में अंकित की मां आ पहुंचती हैं. गीले हाथ पोंछते हुए बिस्तर के कोने में बैठने का इशारा करते हुए कहती हैं- आज काफी ठंड है. चाय पिएंगी? माथे पर ताजा तिलक. ठीक-ठाक कपड़े. बाल बने हुए. आंखें रोने से गुलाबी या सूजी हुई नहीं. मेरे भाव गड़बड़ा जाते हैं. ये वो मां नहीं, जिसके बारे में सोचते हुए मैं इतनी दूर आई.
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