केस से हटे नामी वकील, नई रिपोर्ट से असमंजस और फंस गया मामला... क्या CBI ने उलझा दिया कोलकाता कांड?
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कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुए ट्रेनी डॉक्टर के रेप और मर्डर के मामले में बेशक ट्रायल कोर्ट में हर रोज़ कोर्ट में सुनवाई चल रही हो, लेकिन मामले का जल्दी किसी नतीजे तक पहुंचना फिलहाल खटाई में नजर आ रहा है. वजह ये है कि अब पीड़ित परिवार ने सीबीआई की तफ्तीश पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुए ट्रेनी डॉक्टर के रेप और मर्डर के मामले में बेशक ट्रायल कोर्ट में हर रोज़ कोर्ट में सुनवाई चल रही हो, लेकिन मामले का जल्दी किसी नतीजे तक पहुंचना फिलहाल खटाई में नजर आ रहा है. वजह ये है कि अब पीड़ित परिवार ने सीबीआई की तफ्तीश पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. इस मामले में नए सिरे से जांच की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हाई कोर्ट ने इस पर 2 जनवरी को सुनवाई की तारीख तय की है.
उधर, पीड़ित पक्ष की ओर से केस की पैरवी कर रहे दो नामी वकीलों ने अचानक से इस केस से अपना नाम वापस ले लिया है. ऐसे में गुनहगार को कब तक सजा होगी, होगी भी या नहीं, ये फिलहाल कोई नहीं जानता. सीबीआई ने इस मामले में 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट सौंपी थी, अब सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 17 मार्च को है. अब तक अगर इस मामले में कोई असरदार प्रगति नहीं हुई, तो पीड़ित पक्ष सुप्रीम कोर्ट में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है.
फिलहाल अभियोजन पक्ष के करीब 81 गवाहों में से 43 गवाहों की गवाहियां हो चुकी है. लेकिन अजीब ये भी है कि सीबीआई ने अब तक इस मामले में पीड़ित ट्रेनी डॉक्टर की मां की गवाही भी दर्ज नहीं की है. दो वकीलों के अचानक इस केस से हट जाने का नतीजा ये हुआ कि 12 दिसंबर को ट्रायल कोर्ट में पीड़ित पक्ष की ओर बात रखने वाला कोई था ही नहीं. ऐसे में 3 में से 2 आरोपियों को जमानत मिल गई, जिससे निराश होकर पीड़िता के परिजनों ने सिरे से जांच की मांग की है.
इसके लिए 19 दिसंबर को हाई कोर्ट में अर्जी लगाई है. इस मामले में पीड़ित परिवार ने पहले सीनियर लॉयर बिकास रंजन भट्टाचार्य को अप्वाइंट किया था, जिन्होंने केस छोड़ दिया. भट्टाचार्य लोअर कोर्ट में पीड़ित पक्ष की पैरवी कर रहे थे, जबकि सुप्रीम कोर्ट के लिए पीड़ित परिवार किसी और वकील को नियुक्त करना चाहता था, कहा जा रहा है कि भट्टाचार्य ने इसी वजह से खुद को इस केस से अलग कर लिया. इसके बाद वकील वृंदा ग्रोवर की टीम ने भी 11 दिसंबर को केस छोड़ दिया.
हालांकि, उन्होंने इसकी कोई वजह भी नहीं बताई. फिलहाल सीनियर लॉयर करुणा नंदी इस मामले में पीड़ित परिवार का पक्ष कोर्ट में रख रही हैं. वो पहले से ही इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में देख रही हैं. जबकि ट्रायल कोर्ट में तीन और वकील इस केस को रिप्रजेंट कर रहे हैं. क्योंकि ये रिपोर्ट ये बताती है कि मौका ए वारदात पर यानी जिस जगह से पीड़ित डॉक्टर की लाश बरामद हुई, वहां ना तो उस मैट्रेस पर और ना ही सेमिनार रूम में कहीं और जोर-जबरदस्ती के निशान मिले हैं.
अब सवाल ये उठता है कि यदि डॉक्टर के साथ रेप और कत्ल की वारदात उसी सेमिनार रूम में और उसी मैट्रेस पर हुई, तो फिर वहां संघर्ष के निशान क्यों नहीं हैं? इसी के साथ एक सवाल ये भी उठता है कि यदि वहां संघर्ष के निशान मौजूद नहीं हैं, तो इसका मतलब कहीं ये तो नहीं कि लड़की के साथ ज्यादती कहीं और हुई और फिर लाश को सेमिनार रूम में ला कर फेंक दिया गया? फिलहाल सीएफएसएल की इस रिपोर्ट ने कुछ ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं.
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