
Exclusive: रामायण शो के दौरान कार में बैठकर पहनी साड़ी, दीपिका ने बताया कितना मुश्किल था शूट
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दीपिका चिखलिया के लिए सीता के किरदार को आत्मसात कर पाना बहुत मुश्किलों से भरा था. हालांकि आज उन्हें दीपिका के नाम से कम सीता के रोल के लिए ज्यादा पहचाना जाता है. अपने किरदार की तैयारी और उन दिनों की शूटिंग एक्सपीरियंस वो हमसे शेयर करती हैं.
हाल ही में दीपिका चिखलिया ने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है, जहां वे सीता मां की धरती बिहार के मिथिला पहुंची थी. इस वीडियो में दीपिका का भव्य स्वागत हुआ, जिसे देखकर वे खुद काफी इमोशनल हो गई थीं. दीपिका हमसे अपने इस एक्सपीरियंस और आदिपुरुष, सीता के किरदार आदि पर चर्चा करती हैं.
मिथिला की बेटी की घर वापसी हुई है? मैं जब मिथिलांचल पहुंची, तो वहां के लोगों का प्यार देखकर मैं काफी इमोशनल हो गई थी. ऐसा लग रहा था कि मानों मैं वहां की बेटी हूं और मायके में मेरा स्वागत किया गया था. उसके बाद जब मैं वहां से मुंबई के लिए रवाना होने लगी, तो एक थाली में मेरी लिए साड़ी, चूड़ियां, हर वो साज श्रृंगार का सामान देकर विदा किया गया, जैसे कोई बेटी अपने मायके से लौट रही हो. वहां तो सब रो रहे थे कि हमारी बेटी वापस जा रही है. जिसे देखकर मेरी भी आंखे भर आई थी. वे इतने मासूम लोग हैं, जिन्हें लगता है कि मैं मां सीता हूं और वो अपनी बेटी को विदा कर रहे हैं. ऐसा लग रहा था सीता जी की घर वापसी हुई है.
आपने सीता के किरदार को अमर कर दिया है. बाकी एक्ट्रेसेज को उस मुकाम की शोहरत मिल ही नहीं पाई? -मैं मानती हूं कि इंसान के अंदर एक धार्मिकता होती है. अगर आपकी आत्मा पहले से ही धार्मिक है, तो वो स्क्रीन पर नजर आता है. मैं तो पहले से ही राम भक्त रही हूं. रामायण से पहले भी मैं माले पर सौ बार राम का नाम जपा करती थी. चेहरे पर भक्तिभाव पहले से ही थी, शायद वही मेरे किरदार में नजर भी आया. आप देखें, तो मेरा चेहरा ऐसा है कि मुझसे धार्मिक प्रॉजेक्ट्स ही शूट हो पाते हैं. वहीं बाकि एक्ट्रेसेज की बात करूं, तो वो महज एक्टिंग करती हैं. मेरे लिए यह एक्टिंग थी नहीं बल्कि मैं तो इसे भक्ति की तरह देखा करती थी. रिलेटिबिलिटी फैक्टर रहा है. मैं तो सोचा करती थी कि ये रामायाण का दौर है, मैं सीता हूं और मेरे साथ ये हो रहा है. इसलिए वो किरदार को मैं लोगों के बीच स्ट्रॉन्गली लेकर आ पाई. उस वक्त तो हम मेकअप भी कम किया करते थे, स्टिकर बिंदी व लिपस्टिक भी नहीं लगाया करती थी. हल्का सा बस कॉपैक्ट पाउडर और काजल का इस्तेमाल किया करती थी. ये वनवास के दौरान की बात है. अभी की जितनी सीताएं आ रही हैं, वे बेशक बहुत खुबसूरत हैं लेकिन कहीं न कहीं वो सीता नहीं बन पा रही हैं. उनमें जो सीता का ग्रेस होना चाहिए, वो मिसिंग सा लगता है. वो फैक्टर इसलिए भी मिसिंग है क्योंकि मुझे लगता है, उनके अंदर वो भक्तिभाव नहीं है. शायद यही वजह है कि वो कन्विक्शन कभी आ नहीं पाया.
सीता के गेटअप में आने के लिए आपकी क्या खास तैयारी हुआ करती थी? -उन दिनों की तो बात ही मत करो. बहुत ही बेसिक साधनों में हमारा काम निपट जाता था. मैं तो जिस रूम में सोती थी, उसे ही मेकअप रूम भी बना दिया जाता था. उस जमाने में एक्ट्रेसेज ऐसे ही स्ट्रगल किया करती थीं. तैयारी की बात करूं, तो मैं हम रोजाना रामायण पढ़ा करते थे. रामानंद जी ने मुझे रफली एक सीता का स्केच समझाते हुए कहा था कि हमारी सीता ऐसी होनी चाहिए. बस उन्हें फॉलो करती गई. खासकर शुरुआत के एक महीने बहुत सतर्कता के साथ किरदार की गरिमा का ध्यान रखना पड़ता था. फिर वो आदतों में शुमार होता चला गया. मैं बहुत फास्ट बोलती हूं लेकिन सीता जी का किरदार स्थिर और गंभीर सा था, मैंने अपने डायलेक्ट, रिएक्शन पर बहुत काम किया था. एक किरदार में जो घुसी, उसमें अपना 3 साल से भी ज्यादा दे दिया. हालांकि बहुत मेहनत लगी है.
सेट पर किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता था? -जब आउटडोर की शूटिंग होती थी, तो बहुत दिक्कतें आती थीं. खासकर वॉशरूम का बहुत बड़ा प्रॉब्लम होता था. हमें वहां के लोकल लोगों के घर जाकर उनसे रिक्वेस्ट करना पड़ता था कि वे हमें अपने यहां का वॉशरूम इस्तेमाल करने दे. फिर पुराने कपड़ों का टेंट बनाकर हमें घेर कर रखा जाता था ताकि धूप से हम बचे रह सकें. उस वक्त दौर ही ऐसा था कि हमें इस तरह के स्ट्रगल से गुजरना पड़ता था. हम एक्टर्स को दूसरा रास्ता पता भी नहीं था. इमैजिन करें कि मैंने कार में सीट के बीच छुपकर साड़ी पहनी है. कार के अंदर पीछे की सीट में घुसकर साड़ी पहनी है. बाहर के शीशे में वो लोग कपड़े लगा देते थे. वो भी अपने आप में एक अलग तरह का एक्सपीरियंस था.

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