Dev Uthani Ekadashi 2024: कल योग निद्रा से जागेंगे पालनहार, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
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Dev Uthani Ekadashi 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी की शुरुआत 11 नवंबर की शाम 6:42 बजे होगी. जबकि इसका समापन 12 नवंबर को शाम 4:04 बजे होगा. ऐसे में देवउठनी एकादशी व्रत 12 नवंबर 2024 को रखा जाएगा. इस व्रत का पारण 13 नवंबर को होगा.
Dev Uthani Ekadashi 2024: हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है. भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं. इन चार महीनों में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. देवउठनी एकादशी पर जब देव जागते हैं, तब मांगलिक कार्य संपन्न हो पाता है. देव जागरण या उत्थान होने के कारण इसको देवोत्थान एकादशी कहते हैं. शास्त्रों में इस दिन का विशेष महत्व है.
देवउठनी एकादशी की तिथि (Dev Uthani Ekadashi 2024 Date) हिंदू पंचांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी की शुरुआत 11 नवंबर की शाम 6:42 बजे होगी. जबकि इसका समापन 12 नवंबर को शाम 4:04 बजे होगा. ऐसे में देवउठनी एकादशी व्रत 12 नवंबर 2024 को रखा जाएगा. इस व्रत का पारण 13 नवंबर को होगा.
देवउठनी एकादशी के नियम (Dev Uthani Ekadashi 2024 niyam) देवोत्थान एकादशी व्रत का नियम निर्जल या केवल जलीय पदार्थों पर उपवास रखना चाहिए. रोगी, वृद्ध, बालक या व्यस्त व्यक्ति केवल एक वेला का उपवास रखकर फलाहार करें. अगर यह भी संभव न हो तो इस दिन चावल और नमक का सेवन न करें. भगवान विष्णु या अपने ईष्ट देव की उपासना करें. इस दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना चाहिए.
देवोत्थान एकादशी पर न करें ये गलती (Dev Uthani Ekadashi 2024 mistakes) देवोत्थान एकादशी के दिन गलती से भी तुलसी न तोड़ें. तुलसी माता को लाल चुनरी भी जरूर चढ़ाएं. तुलसी के नीचे दीया जलाएं. इस दिन चावल का सेवन न करें. मन शांत रखें. घर में सुख-शंति का सद्भाव बनाए रखें. इस दिन घर में तामसिक आहार जैसे कि प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा या बासी भोजन के सेवन से परहेज करें.
देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि (Dev Uthani Ekadashi 2024 pujan vidhi) देवउठनी एकादशी के दिन घर में गन्ने का मंडप बनाएं. बीच में चावल के आटे से एक चौक बनाएं. चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं. चौक के साथ ही भगवान के चरण चिह्न बनाएं. भगवान को गन्ना, सिंघाडा और फल-मिठाई अर्पित करें. फिर भगवान के समक्ष घी का एक दीपक जलाएं. यह दीपक रात भर जलता रहता है.
इसके बाद भगवान को जगाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है. इस समय शंखा, घंटी और भजन कीर्तन की आवाज से भगवान को जगाया जाता है. कुछ जगहों पर लोग थाली बजाकर या सूप पीटकर भी भगवान को जगाते हैं. इसके बाद व्रत-उपवास की कथा सुनी जाती है. अंतत: सारे मंगल कार्य विधिवत शुरू किए जा सकते हैं.
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