Brahmastra Review: मिथ और मॉडर्निटी को लिंक करने में कन्फ्यूज कर गई कहानी, लेकिन VFX कमाल का
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ब्रह्मास्त्र का बॉक्स ऑफिस पर डंका बज रहा है. देश-विदेश में ब्रह्मास्त्र खूब कमाई कर रही है. अच्छे बिजनेस के बावजूद एक वर्ग है जो फिल्म की आलोचना कर रहा है. फिल्म में कैमियो रोल में दिखे एक्टर्स की उम्दा परफॉर्मेंस है, पर लीड एक्टर रणबीर उनसे कम लगे हैं. मूवी में वीएफएक्स शानदार है. मगर कहानी-डायलॉगबाजी निराश करती है.
ब्रह्मास्त्र चर्चा में है. कारण कई हैं. बहुत दिनों बाद कोई हिंदी मूवी ठीक-ठाक बिजनेस कर रही है. ऐसी फिल्म जिसकी आलोचना भी की जा रही है और कई लोग पसंद भी कर रहे हैं. एक ऐसी फिल्म है जिसमें छोटा रोल करने वाले बड़े कलाकार बड़ी छाप छोड़ जाते हैं. शाहरुख, नागार्जुन और अमिताभ बच्चन हमें बाद तक याद रहते हैं. लेकिन लीड रोल करने वाले कई बार भटक गए हैं या भटका दिए गए हैं. उनका प्रेम नाटकीय लगता है. और नाटकीयता ठूंसी हुई. संवाद तो माशा अल्लाह...
शुरुआत शाहरुख खान से होती है और समां बंध जाता है, ऐसा लगता है कि फिल्म बड़े फलक पर बनी है. इसके साथ ही उम्मीद बंध जाती है कि अगर ऐसे ही चला तो मजा भी आने वाला है. लेकिन बाद में उम्मीदें टूटती-बनती रहती हैं और कभी-कभी लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सोचा कुछ गया और फिल्म कुछ और बन गई. माहौल है कि बन ही नहीं पाता, बनता भी है तो बहुत जल्दी बिगड़ जाता है. कई जगह 'ईहलोक' की कहानी 'ऊहलोक' में चली जाती है. वहां अमिताभ की आवाज का जादू और VFX का कमाल दिल थामने को मजबूर कर देता है. क्योंकि उस युग की कहानी में अतिवाद की छूट ली जा सकती है. लेकिन जब यथार्थ और आज के धरातल पर फिल्म आती है तो लड़खड़ाने लगती है. लगता है कि मामला है कि लिंक ही नहीं हो पा रहा है.
फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ पर आधारित है जिसे तप के बल पर ऋषियों ने प्राप्त किया था. हालात कुछ ऐसे बने कि ब्रह्मास्त्र तीन टुकड़ों में टूट गया. यह माना गया कि अगर ये तीनों टुकड़े जुड़ गए तो सर्वनाश हो जाएगा. ब्रह्मांश परिवार को इसकी सुरक्षा का दायित्व दिया गया जो गुमनामी में रहकर इसकी रक्षा करते हैं लेकिन दूसरी शक्तियां इसको हर हाल में हासिल करना चाहती हैं. जिनमें जुनून है, रफ्तार है. उनका उद्देश्य तय है, वो अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए किसी भी हद से गुजरने को तैयार हैं. मौनी रॉय ने निगेटिव रोल में जान डाल दी है. उनकी चाल में धमक है, आंखें डर पैदा करती हैं, लिबास और संवाद उन्हें अंधेरे का प्रतिनिधि बनाते हैं. उन्हें देखकर नागिन की याद आती है, लेकिन रोल उनके प्रति नफरत पैदा कर दे ऐसा नहीं हो पाता, उसमें कसर रह जाती है.
शिवा (रणबीर कपूर) की नीयति में कुछ और है, उसे ईशा (आलिया भट्ट) मिलती है. पहली नजर में ही ‘कुछ-कुछ’ होने लगता है. थोड़ी नोकझोंक के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगता है. शिवा को सपने आते हैं, खुली और बंद आंखों से उसे घटनाएं दिखाई देती हैं लेकिन वो समझ नहीं पाता है कि आखिर वह है कौन, उसके जीवन का मकसद क्या है? आग उसके अंदर है लेकिन वह रोशनी की तलाश करता है. कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है. उधर एक साइंटिस्ट की आत्महत्या की खबर से सनसनी फैल जाती है. सिर्फ शिवा को पता रहता है कि आगे क्या होने वाला है, कौन लोग हैं जो साइंटिस्ट की मौत के जिम्मेदार हैं, लेकिन ऐसा क्यों है इसकी तलाश में ही आधी फिल्म खत्म हो जाती है. बीच में प्यार, इमोशंस, गाने भी आते हैं. इसमें बच्चे भारी पड़ते हैं, उनके संवाद, उनकी कहानी भारी पड़ती है.
बनारस की गलियां और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर भी आप देख सकते हैं. उसके बाद से पहाड़ की रोमांचक यात्रा भी. फिल्म ऐसी है जिसमें मंत्रों से सिंचित अस्त्रों का भी इस्तेमाल होता है तो वहीं गोलियों की बौछारों का भी. कार से तेज 'रफ्तार' की चाल है. फिल्म में टेक्नॉलजी का जोरदार इस्तेमाल किया गया है लेकिन उसके बारे में ज्यादा सोचा नहीं गया है. यहां बुरी शक्तियां, बुरे बने लोग ज्यादा अट्रैक्ट करते हैं क्योंकि उनका मिशन साफ है, लेकिन मेन लीड करने वाले कन्फ्यूज करते हैं क्योंकि उनको प्यार भी करना है. बड़े उद्देश्य के लिए काम भी करना है. और जहां प्यार हो जाए वहां कन्फ्यूज होना स्वाभाविक भी है. लेकिन स्वाभाविकता कहीं-कहीं बचकानापन जैसी लगती है.
नायक कन्फ्यूज है क्योंकि वह प्यार में है. ब्रह्मास्त्र की लड़ाई को वह अपनी लड़ाई मानता ही नहीं. उसे लगता है कि वह इस पचड़े में क्यों पड़े? उसने अपनी जिम्मेदारी निभा दी. लेकिन मां की मौत उसे खलती है. बाप का न होना उसे अंदर तक सालता है, वह जानना चाहता है कि उसके मां-बाप कौन हैं. उसका कोई नहीं है यही उसकी सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी कमजोरी है. वह पॉजिटिव सोचता है, पॉजिटिव करता है, संवेदनशील है लेकिन किरदार में कभी-कभी मिसफिट लगता है.
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