BJP में दलित अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा, आंबेडकर कंट्रोवर्सी ही नहीं ये 5 मजबूरियां भी हैं |Opinion
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भारतीय जनता पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए योग्य कैंडिडेट की तलाश जारी है. कयासबाजी का दौर जारी है. हालांकि बीजेपी में नियुक्तियां इतनी गोपनीय रखीं जा रही हैं कि इस संबंध में सिर्फ अटकलें ही लगाईं जा सकती हैं. फिलहाल अभी तो यही लगता है कि पार्टी किसी दलित नेता के नाम को आगे बढ़ा सकती है. इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं.
पिछले 2 हफ्ते से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि भारतीय जनता पार्टी में किसी दलित को अध्यक्ष बनाया जा सकता है. इस बीच राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर कंट्रोवर्सी हो गई. कांग्रेस और समूचे विपक्ष ने इस मुद्दे को इस तरह लपक लिया जैसे गृह मंत्री ने कितना बड़ा अपराध कर दिया हो. इस मुद्दे पर बैकफुट पर आ चुकी भारतीय जनता पार्टी अब इससे निकलना चाहती है. कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के सामने इस संकट से निकलने का सबसे बड़ा स्टेप यही हो सकता है कि किसी दलित नेता को पार्टी प्रेसिडेंट पद पर बैठा दिया जाए. पर भारतीय जनता पार्टी की राजनीति वहीं से शुरू होती है जहां से विपक्ष और आम लोग सोचना बंद कर देते हैं. इसलिए यह कहना आसान नहीं है कि बीजेपी में कौन अध्यक्ष बन रहा है. पर परिस्थितियां जैसी बन रही हैं उसके हिसाब से तो भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे अधिक सुटेबल अध्यक्ष किसी दलित जाति से ताल्लुक रखने वाला ही हो सकता है.
1-मल्लिकार्जुन खड़गे इफेक्ट
कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनावों के काफी पहले मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ दलित नेता को पार्टी प्रेसिडेंट पद पर पहुंचाकर अपना संदेश दे दिया था. कांग्रेस की यह रणनीति कारगर भी रही. कर्नाटक विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में पार्टी के पक्ष में दलित वोटों को सीधे मूव करते देखा गया है. जबकि पिछले कई चुनावों से दलित वोट हार्डकोर दलित राजनीति करने वाली पार्टियों और बीजेपी में बंट रहा था. पर 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को उत्तर से दक्षिण तक के राज्यों में दलित वोटों का भरपूर साथ मिला. भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस के इस कार्ड की काट के लिए कुछ कुछ वैसा ही करना होगा. जाहिर है कि देश का प्रेसिडेंट पद बीजेपी की तरफ से एक आदिवासी महिला को दिया गया है तो पार्टी प्रेसिडेंट भी किसी दलित महिला को दिया जा सकता है.
2-इधर कुछ ज्यादा ही ब्राह्मणों की नियुक्ति हुई
पिछले 10 सालों में संवैधानिक पदों पर होने वाली नियुक्तियों में सवर्णों का प्रतिशत दिन प्रतिदिन कम होते देखा जा रहा था. विशेषकर ब्राह्मणों का ग्राफ तो सबसे तेजी से गिरा. पर कुछ दिनों से बीजेपी में ऐसा महसूस किया जा रहा है कि बीजेपी की छवि एक बार फिर अगड़ों की पार्टी की बन रही है. पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बाद हरियाणा से राज्यसभा में जाने वाली रेखा रानी शर्मा की नियुक्ति ऐसी रही जिसका दबी जुबान में पार्टी में विरोध भी हुआ. दरअसल, चाहे राजस्थान हो या महाराष्ट्र या हो हरियाणा, इन सभी जगहों पर ब्राह्मणों की संख्या बेहद कम है. फिर भी पार्टी ने अन्य बहुसंख्यक जातियों की उपेक्षा करके ब्राह्मणों को संवैधानिक पद सौंपे. जाहिर है कि अब वक्त आ गया है कि किसी दलित को पार्टी की सबसे अहम जिम्मेदारी देकर सवर्ण पार्टी होने का ठप्पा मिटाया जा सके.
3-आरएसएस भी चाहेगा कि कोई दलित अध्यक्ष बने
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