'हीरामंडी' रिव्यू: दिल को जाल में फंसा लेगा भंसाली का ये संसार, नजरबंद का जादू करती हैं मनीषा कोइराला-सोनाक्षी सिन्हा
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ऐसा लगता है कि भंसाली एक क्रिएटर के तौर पर इस शो में अपने काम से बहुत इम्प्रेस हैं और चाहते हैं कि आप भी इससे इम्प्रेस हों. क्या वो कामयाब हुए? कुछ चीजों पर यकीन करने के लिए उन्हें खुद जरूर देखना चाहिए. वो इम्प्रेस करने में कामयाब तो जरूर हुए हैं. बड़ा सवाल ये है कि कितने कामयाब?
अगर आप संजय लीला भंसाली की ऑनस्क्रीन दुनिया के इश्क में गिरफ्तार होते रहे हैं, तो ‘हीरामंडी’ आपको पूरी तसल्ली देगी. इस शो पर भंसाली के सिग्नेचर स्टाइल की छाप, शो के क्रेडिट रोल में उनके नाम के जितनी ही तगड़ी है. हर एपिसोड की शुरुआत में ‘डायरेक्शन’ और एपिसोड के आखिर में ‘म्यूजिक और डायरेक्शन’ के साथ संजय लीला भंसाली का नाम स्क्रीन पर थोड़ी देर टंगा रहता है.
ऐसा लगता है कि वो एक क्रिएटर के तौर पर इस शो में अपने काम से बहुत इम्प्रेस हैं और चाहते हैं कि आप भी इससे इम्प्रेस हों. क्या वो इस काम में कामयाब होते हैं? कुछ चीजों पर यकीन करने के लिए उन्हें खुद जरूर देखना चाहिए. और मेरा ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि वो इम्प्रेस करने में कामयाब तो जरूर हुए हैं. बड़ा सवाल ये है कि कितने कामयाब? ओके, तो इसके जवाब में गोता लगाते हैं…
‘हीरामंडी’ की कहानी 1920 से शुरू होती है, लाहौर के उस इलाके से जहां तवायफें रानियां हैं. ये भंसाली का संसार है जहां सेट्स से लेकर उनके किरदारों के आउटफिट तक सबकुछ जिस डिटेल और शिद्दत से तैयार किया गया है उसके लिए ‘डिज़ाइन’ नहीं, बल्कि ‘क्राफ्ट’ का इस्तेमाल ज्यादा सही है. और ये ‘क्राफ्ट’ सिर्फ सेट्स, कपड़ों, गहनों तक ही लिमिटेड नहीं हैं बल्कि उनके किरदारों की बातचीत, उनके शब्दों, बॉडी लैंग्वेज और हाथों से लेकर आंखों तक के जेस्चर्स में नजर आता है.
भंसाली की तिलिस्मी तवायफें एकदम शुरुआत में ही एक तवायफ अपनी बहन के दुधमुंहे बच्चे को, शानदार कीमत पर एक ‘बेऔलाद नवाब’ को बेचती दिखती है. आप उसकी इस हरकत को अपनी नैतिकता के सवाल के दायरे में समेटना ही चाहेंगे कि, आपसे पहले सौदा करने वाली तवायफ अपनी बहन पर सवाल दाग देती है- ‘बेचते नहीं तो क्या करते? दलाल, अफीमची या खसरा बनने देते?’ भंसाली अपनी पहली चाल चल देते हैं, आपके ऐसे सवालों को ठिकाने लगा देते हैं. और दूसरी बात ये पक्की हो जाती है कि तवायफों की विरासत में खून से जुड़े रिश्ते से ज्यादा पक्की चीज, उनकी अपनी रवायतें, ठसक, नियम और अपना गर्व हैं.
अब मेन कहानी शुरू होती है, करीब 10-15 साल बाद. ये टाइम लीप आपको शो नहीं बताएगा, ऐसा क़िरदारों की उम्र से जज होता है. यहां आपको मल्लिकाजान मिलेंगी, अपने ‘शाही महल में’. हीरामंडी की भाषा में ‘गुरूर’ की स्पेलिंग ‘मल्लिकाजान’ लिखी जाती है. अपनी बेटी, बिब्बोजान की गायकी को रिकॉर्ड करके मशहूर करने का ऑफर लाए एक अंग्रेज को वो अपना कद बताते हुए वो कहती हैं- ‘हम चांद हैं, जो दिखता तो खिड़की से है मगर किसी के बरामदे में नहीं उतरता’! चांद तो मल्लिकाजान हैं… जिसपे वो मेहरबान हैं, उसकी रात पूनम कर दें. और जिसपर खफा हो जाएं, उसकी अमावस. मनीषा कोइराला इन दो विपरीत ध्रुवों के बीच इस सहजता और शालीनता से शिफ्ट करती हैं कि उनका क्राफ्ट अविश्वसनीय लगता है. कई जगह तो उनका ये स्विच पलक झपकाने भर में होता है.
बिब्बोजान, अदिति राव हैदरी के हिंदी प्रोजेक्ट्स में उनका सबसे बेहतरीन किरदार है. बिब्बोजान, मल्लिकाजान की ‘अच्छी बच्ची’ है. उसमें अपनी मां के तेवर तो नहीं हैं, मगर वो उनकी सबसे आज्ञाकारी चेली है. मल्लिकाजान उससे जो चाहे करवा सकती हैं और वो करेगी. लेकिन अपनी मर्जी से बिब्बोजान सिर्फ एक काम करती है- वो आजादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों की मदद के लिए अपना हुनर इस्तेमाल करती है.
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