संविधान की प्रस्तावना से हटेंगे 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द? सुप्रीम कोर्ट 25 नवंबर को सुनाएगा फैसला
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मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि भारत में समाजवाद को हम दूसरों से अलग तरीके से समझते हैं. हम इसे कल्याणकारी राज्य के रूप में समझते हैं. समाजवाद का उपयोग यहां इसलिए किया जाता है ताकि राज्य यह सुनिश्चित कर सके कि कल्याणकारी राज्य हो और अवसरों की समानता हो. हम सभी को निजी क्षेत्र से लाभ मिला है.
संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार 25 नवंबर को सुनवाई होगी. याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोमवार की सुनवाई में हम आदेश पारित करेंगे. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़ना संसद को अनुच्छेद 368 के तहत मिली संविधान संशोधन की शक्ति से परे है.
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि भारत में समाजवाद को हम दूसरों से अलग तरीके से समझते हैं. हम इसे कल्याणकारी राज्य के रूप में समझते हैं. समाजवाद का उपयोग यहां इसलिए किया जाता है ताकि राज्य यह सुनिश्चित कर सके कि कल्याणकारी राज्य हो और अवसरों की समानता हो. हम सभी को निजी क्षेत्र से लाभ मिला है. समाजवाद का उपयोग यहां इसलिए किया जाता है ताकि राज्य यह सुनिश्चित कर सके कि कल्याणकारी राज्य हो और अवसरों की समानता हो. हमने बहुत से संशोधनों को खारिज कर दिया है.
बता दें यह याचिका भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी और बलराम सिंह द्वारा दायर की गई है. इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़े जाने की वैधानिकता को चुनाती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़े जाना संसद को आर्टिकल 368 के तहत मिली संविधान संशोधन की शक्ति से परे है.
इन शब्दों को हटाया जा सकता है?
संविधान के अनुच्छेद 368 के हिसाब से संसद संविधान में संशोधन कर सकती है. लेकिन इसकी एक सीमा है. 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की बेंच ने फैसला दिया था कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति तो है, लेकिन इसकी प्रस्तावना के मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि कोई भी संशोधन संविधान की प्रस्तावना के खिलाफ नहीं हो सकता. हालांकि, इस फैसले के तीन साल बाद ही 42वां संशोधन कर संविधान की प्रस्तावना में तीन शब्द जोड़े गए.
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