
व्हीलचेयर पर चलने वाली संजना ने अपने जैसों के लिए खोला अस्पताल, राष्ट्रपति पुरस्कार भी जीता
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गोयल मात्र आठ वर्ष की थी जब उन्हें पता चला कि वह मस्कुलर डिस्ट्राफी से ग्रस्त हैं. जब डॉक्टर ने बताया कि यह एक लाइलाज बीमारी है तो एक बार तो हौसला पूरी तरह से टूट गया लेकिन उनकी मां ने कभी भी उन्हें टूटने नहीं दिया. पढ़िए- संजना की पूरी कहानी...
सोलन की रहने वाला संजना गोयल ऐसी तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो कई परेशानियां झेल रही हैं. मस्कुलर डिस्ट्राफी जैसी बीमारी होने के बावजूद उनके हौसले बुलंद हैं. 1992 से पूरे देश के युवाओं को इस बीमारी के खिलाफ जागरूक कर रही हैं, हालांकि, इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं है, लेकिन रोकथाम के तरीकों से अवगत करवाने के बाद वह हजारों लोगों को नया जीवन दे चुकी हैं.
सोलन शहर की रहने वाली संजना गोयल मात्र आठ वर्ष की थी जब उन्हें पता चला कि वह मस्कुलर डिस्ट्राफी से ग्रस्त हैं. यह ऐसा दौर था जब इस बीमारी को लेकर बहुत जागरूकता नहीं थी. दक्षिण भारत के डाक्टर आर. जनार्धन राव ने उन्हें इस बारे में अवगत करवाया और साथ ही ये भी बताया कि इसे कैसे रोका जा सकता है. उन्होंने इसके बारे में भी प्रशिक्षण दिया.
इसके बाद संजना गोयल ने संकल्प ले लिया कि वह देश के किसी भी बच्चे को इस बीमारी से मरने नहीं देंगी. संजना ने देश के प्रत्येक राज्य में इस बीमारी के खिलाफ जागरूक करने के लिए शिविर लगाने शुरू किए. बढ़ती आयु के साथ-साथ मस्कुलर डिस्ट्राफी का असर भी उनके शरीर में बढ़ने लगा और वह पूर्ण रूप से व्हीलचेयर पर निर्भर हो गईं.
संजना गोयल ने aajtak.in को खास बातचीत में बताया कि पहाड़ों में स्कूल पहुंचना अपने आप में एक बड़ा संघर्ष है. बीमारी से ग्रस्त होकर स्कूल पहुंचने में जो पीड़ा उन्होंने महसूस की उस दर्द को वह बयां तक नहीं कर सकतीं. संजना बताती है कि जब डॉक्टर ने बताया कि यह एक लाइलाज बीमारी है तो एक बार तो उनका हौसला पूरी तरह से टूट गया लेकिन उनकी मां ने कभी भी उन्हें टूटने नहीं दिया जिसके बाद उन्होंने समाज के लिए कुछ करने और इस बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए मदद के लिए मन में ठान ली.
खोला मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का अस्पताल
उनका अभियान आगे बढ़ा और लोग उनसे जुड़ने लगे. इसी का नतीजा है कि संजना गोयल व उनकी टीम के प्रयास से सोलन शहर के साथ जटोली में एक मस्कुलर डिस्ट्राफी अस्पताल की स्थापना की गई. वर्ष 2017 में करोड़ों की लागत से जटोली में अस्पताल का निर्माण किया गया. देश भर से सीएसआर फंड एकत्रित करके इस अस्पताल में मरीजों के लिए प्रत्येक सुविधा को जुटाने का प्रयास किया जा रहा है. यहां पर संजना गोयल व उनकी टीम फिजियोथैरेपी व हाइड्रोथैरेपी के माध्यम से मरीजों को इस बीमारी से बचा रही है. संजना कहती हैं कि यदि समय रहते फिजियाथैरेपी व हाइड्रोथैरेपी शुरू कर दी जाए तो इस बीमारी को शरीर में बढऩे से रोका जा सकता है.

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