
लस्ट स्टोरी 2: काजोल संग इंटीमेट सीन्स को लेकर घबराए हुए थे कुमुद मिश्रा, बताया कैसे हुआ शूट
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कुमुद मिश्रा एक्टर के तौर पर कई तरह के एक्सपेरिमेंट्स करते रहते हैं. हाल ही में लस्ट स्टोरी 2 में उनके निभाए किरदार की चर्चा है. इसमें वे काजोल के ऑपोजिट नजर आ रहे हैं.
'Lust Story 2' में कुमुद मिश्रा काजोल के ऑपोजिट नजर आ रहे हैं. फिल्म में कुमुद का किरदार उनकी मौजूदा इमेज से काफी अलग और बोल्ड है. फिल्म की शूटिंग का एक्सपीरियंस और बोल्ड सब्जेक्ट्स पर कुमुद हमसे दिल खोलकर बात करते हैं.
लस्ट स्टोरी 2 के ऑफर को लेकर आप कितने संशय में थे? -जब लस्ट स्टोरी की स्क्रिप्ट आई थी,पढ़कर मुझे बहुत मजेदार लगी. जाहिर है मैंने इस तरह का काम नहीं किया था, तो कुछ चीजें ऐसी थी, जिसे लेकर मैं डाउट में था. चूंकि मेरे साथ यह पहली बार हो रहा था, तो मैं बिना क्लैरिटी के आगे नहीं बढ़ना चाहता था. मैंने डायरेक्टर से मुलाकात की, हमारी लंबी चौड़ी चर्चा रही है. कमाल की बात यह है कि हम उन सीन्स पर बात नहीं कर रहे थे, जो मुझे मुश्किल लगे. हालांकि उनसे बातचीत के दौरान मुझे उनकी मंशा और एस्थेटिक वैल्यू का अंदाजा हुआ. इस प्रोजेक्ट को लेकर हमारी काफी वर्कशॉप हुई थी. स्क्रिप्ट को लेकर जितनी डिटेल के साथ मेरी और उनकी राइटिंग टीम के बीच बातचीत हुई है, तो इतना समझ आ गया था कि ये लोग इसे गंभीरता से ले रहे हैं. आपने फिल्म देखी होगी, तो पाया होगा कि उसमें बहुत लेयर्स हैं, इमोशन और रिलेशनशिप को बहुत ही कॉम्प्लेक्स तरीके से दिखाया गया है.
बोल्ड सीन्स करते वक्त कभी कोई हिचकिचाहट या संकोच ? -बिलकुल हिचकिचाहट तो होती है. मैं कोई 21 साल का तो हूं नहीं, एक उम्र हो गई है और ऐसे में इस तरह के सीन्स को लेकर मन में कई तरह के सवाल होते हैं. मैं अपने सीन्स करते वक्त पूरी तरह से परफॉर्मर बन जाता हूं. हिचकिचाहट केवल बोल्ड सीन्स के दौरान ही नहीं होती है, कई बार नॉर्मल सीन्स पर भी आप इस स्थिती से गुजरते हैं. ऐसा भी होता है कि आप नॉर्मल सीन्स कर रहे होते हैं, लेकिन परफॉर्म नहीं कर पाते हैं क्योंकि कहीं न कहीं एक दीवार होती है जो दो एक्टर्स के बीच बनती है, जिसका ब्रेक होना बहुत जरूरी होता है. यहां पर मैं शुरुआत में संकोच में था. मेरी को-एक्टर काजोल थीं. उनकी बॉडी ऑफ वर्क जबरदस्त है. उनकी परफॉर्मेंस को देखकर लगता है वो सहजता के साथ ही जन्मी हैं. हम एक्टर्स को उस स्टेज में पहुंचने पर सालों लग जाते हैं. इतने साल काम करने के बाद उन्हें मालूम है कि को-एक्टर के साथ कैसे पेश आना है, उससे कैसे डील करना है. सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ही काजोल थीं. उनकी वजह से चीजें आसान हो गईं. उनका जो कमिटमेंट और इनवॉल्वमेंट था, वो एक्टर के लिए गिव ऐंड टेक मोमंट हो जाता है. जब आप एक बार सेट पर साथ काम करना शुरू करते हैं, तो धीरे-धीरे कंफर्टेबल होते जाते हैं.
काजोल संग पहली बार स्क्रीन शेयर की है. उनके साथ पहली मुलाकात कैसी रही है? - आप जब एक परफॉर्मर के साथ एक्ट और रिएक्ट कर रहे होते हैं. उस वक्त जो ट्रस्ट आप सामने वाले की आंखों में देखते हैं, तो धीरे-धीरे सहज होते जाते हैं. वो बेहतरीन अदाकारा हैं. उन्होंने मेरे लिए काम आसान कर दिया था. हमारे यहां कहा जाता है कि सेट पर जाते वक्त पहली मुलाकात या पहली लाइन जब आप बोलते हैं, उससे ही आपके आगे के काम का सुर तय हो जाता है. मैं जब काजोल से पहली बार मिला, तो वो बेहद ही वेलकमिंग थी. उनसे पहली मुलाकात में समझ आ गया था कि काम आसान होने वाला है. वो इतनी कमाल की एक्ट्रेस हैं, जो अपने एक्टर के लिए पूरी तरह सपोर्टिव रहती हैं. फैमिली खासकर बेटे का क्या रिएक्शन था? -मेरी फैमिली में अभी तक किसी ने देखी नहीं है. बेटा तो काफी छोटा है, जाहिर है कि मैं तो नहीं चाहूंगा कि वो फिल्म देखे. वो अभी भी 14 साल का बच्चा है. परिवार के रिएक्शन का तो मैं ही इंतजार कर रहा हूं. जब कई बार वो उस विषय पर बात नहीं करते हैं, तो मैं समझ जाता हूं कि उन्हें नहीं पसंद आया होगा. उम्मीद तो यही रहती है कि मेरे काम को लेकर वो अच्छा रिएक्ट करें. हालांकि वो मेरे क्रिटिक भी हैं, वो बता देते हैं. जब कोई आपकी परफॉर्मेंस को क्रिटिकल होकर रिएक्ट करता है, तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है. ऐसी उम्मीद जगती है कि कुछ नया करने की गुंजाइश है और मैं उस दिशा में काम भी करता हूं. मेरी पत्नी भी एक्ट्रेस हैं, वो कई बार बोल जाती हैं और कई बार चुप रहती हैं. जब चुप होती हैं, तो मुझे उनकी आंखों में पढ़ना पड़ता है. फिर हम डिसकस करते हैं.
लस्ट स्टोरी से पहले आप डॉ अरोड़ा जैसे बोल्ड सब्जेक्ट पर काम कर चुके हैं. आप मानते हैं कि हमारी इंडस्ट्री इस तरह के फिल्मों को लेकर थोड़ी प्रोग्रेसिव हुई है? -इन फिल्मों के साथ जिम्मेदारी भी आती है. यह एंटरटेनमेंट के साथ-साथ अपने एस्थेटिक्स का भी ख्याल रखे. कहानी भी खूबसूरत होनी चाहिए कि लोगों को इंगेज करे. इस माध्यम से भी दर्शक अपने-अपने हिस्से का सच या कह लें जानकारी ले जाते हैं. हमारी चिंता इस बात पर नहीं होती है कि हम केवल मैसेज दे रहे हैं, पहले तो यह परखने की जरूरत है कि क्या हम अपनी बात ईमानदारी से कह रहे हैं. डॉक्टर अरोड़ा की बात करें, तो उन्होंने बहुत ही सेंसिबल तरीके से इस सब्जेक्ट को हैंडल किया था. मैं अब जब पलटकर देखता हूं, तो महसूस होता है कि मेरे लिए उसका हिस्सा होना बहुत गर्व की बात है. मैं उस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत प्राउड हूं, मेरी जीवन के हिस्से में जो कुछ अच्छे काम आए हैं, उनमें से एक डॉ अरोड़ा था. रही बात बोल्ड सब्जेक्ट को लेकर हम कितने प्रोग्रेस हुए हैं. मैं मानता हूं कि हमारा समाज हमेशा से तैयार रहा है. हमने समाज के बारे में एक अलग धारणा बनाकर हमने अपने आपको कूप मंडूप में डालते गए हैं. आपके पास अच्छी कहानी है, तो आप उसे उसकी इमानदारी से कहेंगे कि लोग सुनेंगे उसे देखेंगे. आपकी इमानदारी नहीं रहेगी, आप गाली-गलौच, सेक्स का इस्तेमाल केवल दिल बहलाने के लिए करेंगे, तो भी आपकी चालाकी पकड़ी जाएगी.
सेट पर क्या इंटीमेसी को-ऑर्डिनेटर होते थे? उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? -इंटीमेसी को-ऑर्डिनेटर का बहुत बड़ा रोल होता है. जिस तरह डायलॉग कोच, कैमरामैन का रोल होता है, ठीक वैसे ही इंटीमेसी को-ऑर्डिनेटर काम करते हैं. ये हमारे देश में बहुत बाद में आया है, हमारे देश में उस तरह से सिनेमा बहुत ही सीमित मात्रा में बना करता था. यही वजह है कि ऐसे बोल्ड सब्जेक्ट्स हैंडल भी नहीं कर पाते थे और किया भी नहीं था. अगर ऐसा कोई सीन शूट हुआ भी था, तो कईयों ने उस सिचुएशन को अपने लेवल पर डील किया था. आज के दौर में इंटीमेस को-ऑर्डिनेटर्स का होना बहुत जरूरी हो गया है. चाहे वो फीमेल हो या मेल एक्टर, दोनों उनकी मौजूदगी में सेफ और सिक्यॉर महसूस करते हैं. उन दोनों के लिए कॉमन ग्राउंड होता है. देखो, जो भी हम सीन कर रहे होते हैं, उसका एक गणित होता है, उसकी अपनी ब्लॉकिंग होती है. जिस किसी भी सीन की ब्लॉकिंग होती है, आप उसे एक फॉर्म्युले की तरह इस्तेमाल करते हैं और फिर उसमें इमोशन डालते हैं. इंटीमेसी को-ऑर्डिनेटर आपके अंदर एक ट्रस्ट फैक्टर जगाता है, सीन्स बहुत ही वलर्नेबल भरे होते हैं, तो उनका प्रेजेंस जरूरी है. मैं तो स्वागत करता हूं इस ट्रेंड का, और चाहता हूं कि हर प्रोडक्शन इस मेथड से ही काम करे.

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