महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा कब तक? तकदीर बड़ा करने के लिए लकीर मिटाना जरूरी
Zee News
अब महिलाओं के लिए खीचीं गईं रेखाओं को मिटाने का समय आ गया है. अगर महिलाओं को रेखाओं में बांधकर रखने की परंपरा खत्म नहीं हुई तो भारत पूरी दुनिया में अपनी लकीर और अपनी तकदीर दोनों को कभी बड़ा नहीं कर पाएगा.
नई दिल्ली: दशहरे पर हम एक नया विचार आपके सामने रखना चाहते हैं. दशहरे से एक बड़ी सीख ये है कि कोई भी रेखा खींचकर महिलाओं को बांधने की कोशिश मत कीजिए और इस रेखा को लांघने की भी कोशिश मत कीजिए. रावण ने यही किया था. त्रेता युग से लेकर आज तक समाज का एक वर्ग महिलाओं के लिए रेखा खींचता आया और तो दूसरा वर्ग उसे लांघता आया है. ये दोनों ही गलत है. अब जमाना बदल गया है और महिलाओं के इर्द गिर्द कोई भी रेखा नहीं खींची जानी चाहिए. इसलिए हम इन रेखाओं को मिटाने की एक पहल करेंगे.
भारत में किसी लड़की के जन्म लेते ही उसके सामने कई तरह की रेखाएं खींच दी जाती हैं. भारत में करीब 60 प्रतिशत लोग अपनी पहली संतान लड़की नहीं, लड़के के रूप में चाहते हैं. फिर भी अगर इनमें से किसी के यहां लड़की का जन्म हो जाए तो भेदभाव की पहली रेखा खिंच जाती है. इसके बाद जब बात पढ़ाई लिखाई और उसे सुविधा देने की आती है, तो यहां भी माता पिता लड़की की बजाय लड़के पर ज्यादा पैसा खर्च करते हैं. इतना ही नहीं, भारत में माएं बेटियों के मुकाबले बेटों को 24 प्रतिशत ज्यादा स्तनपान कराती हैं. खान पान के मामले में भी लड़कों को प्राथमिकता दी जाती है. भारत में आज भी बेटियों को बोझ माना जाता है और उनकी शादी के लिए पैसा बचाने के नाम पर ये आर्थिक रेखा खींच दी जाती है.