
बैंक की नौकरी के साथ इस मशहूर एक्टर ने किया फिल्मों में काम, बताया कैसा रहा ये सफर
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आंजन श्रीवास्तव ने अपने करियर में अब तक 180 से भी ज्यादा फिल्में की हैं. एक एक्टर के तौर पर आंजन ने खुद को किसी भाषा, माध्यम में बांधकर नहीं रखा है. हिंदी फिल्मों के साथ-साथ वे इंग्लिश, बंगाली, मराठी आदि सभी भाषाओं में लगातार काम करते जा रहे हैं.
आंजन श्रीवास्तव 2 जून को अपनी जिंदगी के 75वें वसंत में प्रवेश करने जा रहे हैं. थिएटर से अपने करियर की शुरुआत करने वाले आंजन इन दिनों वाघले की दुनिया में श्रीनिवाश वाघले के किरदार में दर्शकों को एंटरटेन कर रहे हैं. अपने जन्मदिन के खास मौके पर वे हमसे बातचीत करते हैं.
जन्मदिन के क्या मायने हैं? इस मौके पर मिला कोई तोहफा, जो दिल में बस गया हो? -मेरे बच्चें तो मुझे याद दिला रहे हैं कि मैं 75 साल का हो गया हूं. इन 75 सालों में ऐसी बहुत सारी न भूलने वालीं यादें रही हैं, जिन्हें समेट कर पाना मुश्किल है. मेरी मां द्वारा मनाया गया, जन्मदिन बहुत मिस करता हूं. मेरी मां हमेशा इस दिन मेरे लिए खीर बनाती थी और मुझे चंदन का टीका लगाया करती थी. तोहफा, तो यही है कि इन 75 सालों में मैंने बहुत कुछ पाया है. मेरे बच्चों ने 2 जून को मेरे लिए स्पेशल स्क्रीनिंग रखी है. जिसमें मेरे संग काम करने वाले कई कलाकार आ रहे हैं, जो मेरे साथ मेरी जर्नी का जश्न मनाएंगे.
एक एक्टर के साथ-साथ आपने 31 साल तक बैंक की नौकरी भी की थी. वजह क्या रही होगी? -हां, ये मुझे थोड़ा बाकि के एक्टर्स से अलग करता है. मैं थिएटर को लेकर जुनूनी तो था ही, उस वक्त लेकिन पापा चाहते थे कि मैं कोई सिक्यॉर्ड जॉब कर अपने परिवार पर भी ध्यान दूं. बस फिर क्या बैंक की नौकरी कर ली. कलकत्ता में पोस्टिंग हुई थी. अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुझे कैसे भी कर मुंबई आना था. मैंने मुंबई में तबादले के लिए अप्लाई भी किया था. लगभग 6 महीने बाद मुझे मुंबई सेंटर मिला. तबसे मैंने लगातार बैंक में काम करते हुए अपनी एक्टिंग के पैशन को भी जारी रखा था.
दोनों को बैलेंस कर पाने में कभी दिक्कत नहीं हुई? -होती थी, बहुत दिक्कत होती थी. सुबह मैं बाबा जी के बाईस्कोप सीरियल करता था फिर दोपहर में बैंक में और रात को चेंबूर में राज बब्बर और स्मिता पाटील की फिल्म के लिए शूटिंग में पहुंचना होता था. लगातार दो तीन दिन तक ऐसे ही काम के बीच स्ट्रगल कर रहा था. मुझे तो तैयार तक होने की फुर्सत नहीं मिलती थी. कभी-कभी तो आउटडोर शूटिंग के वक्त मैं 25 दिन मुंबई से बाहर होता था. ओवर बर्डन तो था मैं, ऐसे ही 180 फिल्में नहीं कर ली हैं.हालांकि इस दौरान बैंक से बहुत मदद भी मिली. छुट्टियां मिल जाया करती थी और कई बार पैसे भी कट जाया करते थे. दरअसल बैंक को भी मुझसे फायदा मिलता था. मेरी पॉप्युलैरिटी की वजह सेल्स भी बढ़े थे. इसलिए हम दोनों ने अपना बैलेंस बखूबी बना लिया था.
इस दौड़-भाग में जब आकलन करने बैठते हैं, तो कभी सोचते हैं कि 'क्या खोया क्या पाया'? मैंने इस जर्नी में पाया बहुत है. खोने की बात करें, तो बस लोगों का साथ खोया था. मैं बस अपना काम करता जाता हूं और मेरे ऊपरवाले ने मुझे उस मेहनत का हासिल दिया है. मुझे आज भी यकीन नहीं होता है कि मैं कैसे काम कर लेता हूं. 75 साल का हूं अभी भी सक्रिय हूं. सीरियल के साथ-साथ एक दो फिल्में भी रिलीज होने वाली हैं. आगे भी काम मिलता रहेगा, तो इंकार नहीं करने वाला.
आरके लक्ष्मण की 'वागले की दुनिया' से जेडी मजेठिया की 'वाघले की दुनिया' तक का सफर. लगता है सर्किल पूरा हुआ? -बेशक, यह तो ऊपरवाले की कृपा है कि उन्होंने कुंदन शाह की वजह से पहले भी वागले की दुनिया का हिस्सा बना और अब 32 साल बाद भी उसी ब्रांड से जुड़ा. यह सर्किल जैसा ही तो है कि फिर से वाघले मेरी झोली में गिर गया. मैंने कभी जिंदगी में वागले जैसा काम मांगा था, मुझे दोबारा वाघले ही दे दिया. हालांकि इसमें मैं वाघले का बाप बना हूं.

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