
फिल्में बैन होने का चलन है पुराना, किसी के जलाए गए प्रिंट तो किसी को दो साल नहीं किया रिलीज
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क्या आप जानते हैं कि हिंदी फिल्म जगत में कई फिल्में ऐसी रही हैं, जिनपर विवाद कई सालों तक नहीं थमा. कॉन्ट्रोवर्सी इस कदर हुई कि कितनी ही फिल्मों के प्रिंट मुंबई से मंगवाकर जला दिए गए. यानी करोड़ों का नुकसान हुआ. पर हम आपको लेटेस्ट फिल्मों के बैन का अपडेट यहां नहीं देंगे. उन फिल्मों का देंगे जो पुराने जमाने की हैं. कुछ ऐसी भी हैं जो एक दशक पहले रिलीज हुईं, वह भी बहुत मुश्किलों से.
आजकल 'द केरल स्टोरी' को लेकर बहुत बज बना हुआ है. बंगाल में तो यह फिल्म बैन हो चुकी है. यानी की वहां कोई इसे थिएटर्स में देख नहीं पाएगा. विवाद इस फिल्म के रिलीज होने के बाद ऐसा छिड़ा कि ये अब तक शांत नहीं हुआ है. हर कोई आगे आकर इसपर अपनी राय रख रहा है. विवाद पर टिप्पणी कर रहा है. यहां तक कि मामला थोड़ा पॉलिटिकल भी होता जा रहा है. पर फिल्म के निर्माता और निर्देशक इसपर लगातार सफाई पेश कर रहे हैं.
ये तो रही 'द केरल स्टोरी' की बात, पर क्या आप जानते हैं कि हिंदी फिल्म जगत में कई फिल्में ऐसी रही हैं, जिनपर विवाद कई सालों तक नहीं थमा. कॉन्ट्रोवर्सी इस कदर हुई कि कितनी फिल्मों के प्रिंट मुंबई से मंगवाकर जला दिए गए. यानी करोड़ों का नुकसान हुआ. पर हम आपको लेटेस्ट फिल्मों के बैन का अपडेट यहां नहीं देंगे. उन फिल्मों का देंगे जो पुराने जमाने की हैं. कुछ ऐसी भी हैं जो एक दशक पहले रिलीज हुईं, वह भी बहुत मुश्किलों से.
बैन हुई फिल्मों की लिस्ट
इस लिस्ट में पहली फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' है- फिल्म में राज किरण, सुरेखा सीकरी, शबाना आजमी जैसी स्टार कास्ट नजर आई थी. इसका निर्देशन अमृता नाहटा ने किया था. यह फिल्म साल 1975 में रिलीज होने वाली थी. पर नहीं हुई. दरअसल, उस जमाने में इमरजेंसी का दौर था. कोई भी फिल्म जब रिलीज होने वाली होती थी तो उसे पहले सरकार देखती थी. इंदिरा गांधी की सरकार में कार्यरत लोगों ने इस फिल्म को देखा. फिल्म में मारुति कार प्रोजेक्ट के बारे में दिखाया गया था. सरकार को लगा कि यह फिल्म उनके इस प्रोजेक्ट का मजाक उड़ा रही है. साथ ही सरकार के चुनाव चिह्न ‘जनता की कार’ को भी इसमें लपेटे में लिया गया था. उस समय संजय गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट मारुति कार था. जिसे फिल्म में जनता की कार बताया गया था.
यह सब देख सरकार ने फिल्म के प्रिंट्स अपने हाथ में ले लिए थे. मुंबई से इन्हें मंगवाकर गुड़गांव स्थित मारुति कारखाने में जला दिया गया था. फिल्म में राज बब्बर लीड रोल में नजर आए थे. साल 1977 में जब इमरजेंसी हटी तो इस फिल्म को दोबारा बनाया गया. दोबारा बनी फिल्म में राज बब्बर ने काम नहीं किया. नई स्टार कास्ट के रूप में राज किरण, सुरेखा सीकरी और शबाना आजमी को देखा गया.

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