पैन इंडिया फिल्मों का जायका खराब कर रहे क्लैश, कहां गया 'इंडियन फिल्म इंडस्ट्री' वाला फंडा?
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'बाहुबली' की कामयाबी के बाद साउथ की इंडस्ट्रीज और बॉलीवुड में पैन इंडिया फिल्में बनाने का फ़ॉर्मूला बड़ी तेजी से चल निकला. पिछले एक साल में तो जैसे हर बड़ी फिल्म पैन इंडिया रिलीज के साथ ही अनाउंस हुई. इतनी फिल्में पैन इंडिया रिलीज होना चाह रही हैं कि न ऑडियंस के देखने का स्कोप बचा है, न इनके चलने का!
इंडियन सिनेमा की सबसे बड़ी फिल्मों में शामिल 'RRR' और 'KGF 2' के मार्केटिंग कैम्पेन से एक बड़ी खूबसूरत चीज निकली थी. यश, जूनियर एनटीआर या राम चरण से जब भी इंडस्ट्रीज में आपसी कॉम्पिटीशन की बात हुई तो इन कद्दावर हीरोज ने कहा कि अब इंडस्ट्रीज अलग-अलग नहीं हैं. इस बात पर खूब जोर दिया गया कि अब कोई बॉलीवुड-टॉलीवुड-कॉलीवुड नहीं है... अब ये 'इंडियन फिल्म इंडस्ट्री' है!
ये बात सुनने में जितनी सुंदर लगती है, फिल्म मार्किट में इसके फायदे भी उतने ही हैं. इससे न सिर्फ सभी इंडस्ट्रीज के बेस्ट टैलेंट को एकसाथ आने का मौका मिलता है बल्कि बड़ी फिल्मों के दमदार बिजनेस करने का माहौल भी बनता है. एक दूसरे के लिए ये सम्मान, फिल्मों के बिजनेस पर सबसे बड़ा असर ये दिखाता है कि रिलीज डेट पर क्लैश बच जाते हैं. क्लैश न होने से फिल्मों को स्क्रीन्स पर्याप्त मिलती हैं और मार्किट बड़ा होता है. फिल्में अच्छी हों तो चलना तय है लेकिन कमाई के लिए अच्छा चांस बनाने के लिए ये पहली शुरुआत बहुत मायने रखती है.
'RRR' जिस हफ्ते में रिलीज हुई, उसमें बॉलीवुड की तरफ से कोई बड़ी फिल्म नहीं थी. शाहरुख खान ने जब साउथ के पॉपुलर डायरेक्टर एटली और नयनतारा, विजय सेतुपति के साथ काम किया तो बॉलीवुड फिल्म 'जवान' के सामने साउथ की कोई बड़ी फिल्म नहीं थी. तेलुगू इंडस्ट्री से राजामौली, जूनियर एनटीआर-राम चरण जैसे स्टार्स ने 'ब्रह्मास्त्र' को डायरेक्ट-इनडायरेक्ट प्रमोट किया, तो तेलुगू इंडस्ट्री की कोई बड़ी फिल्म इसके साथ क्लैश नहीं हुई.
इंडस्ट्रीज के इस कोलेबोरेशन में ऑडियंस का ये फायदा है कि थिएटर्स में एंटरटेनमेंट के लिए अलग-अलग ऑप्शन मिलते हैं और हर फिल्म को एन्जॉय किया जा सकता है. लेकिन पिछले एक साल में इंडस्ट्रीज की ये आपसी अंडरस्टैंडिंग और प्रमोशन जैसे गायब सा हो गया. कभी साउथ की फिल्में उत्तर भारत में, और कभी बॉलीवुड की फिल्में साउथ में इस तरह पहुंचीं कि न फिल्मों को फायदा हुआ और न ऑडियंस को फिल्में एन्जॉय करने का मौका मिला.
क्लैश और प्रमोशन की कमी में मारी गईं साउथ की फिल्में रजनीकांत सिर्फ तमिल सुपरस्टार नहीं हैं. 'रोबोट', '2.0' और 'शिवाजी- द बॉस' जैसी उनकी फिल्मों ने हिंदी फिल्मों के मार्किट में भी अच्छी कमाई की. लेकिन उनकी लेटेस्ट फिल्म 'जेलर', इस साल के सबसे बड़े बॉलीवुड क्लैश के बीच रिलीज हुई. जबतक मेकर्स ने इसकी रिलीज डेट, 10 अगस्त अनाउंस की, तबतक 'गदर 2' और 'OMG 2' पहले से 11 अगस्त के लिए शिड्यूल थीं. ऐसे में 'जेलर' को यकीनन उत्तर भारत में बहुत कम ही स्क्रीन्स मिलनी थीं. क्या आप सोच सकते हैं कि रिलीज के दूसरे ही दिन, हिंदी में सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म के शोज मुंबई में 13 और दिल्ली में मात्र 5 थे!
रजनीकांत की फिल्म ने इसके बावजूद अपनी लिमिटेड स्क्रीन्स पर 7 करोड़ रुपये से ज्यादा नेट कलेक्शन किया. ओटीटी पर आने के बाद 'जेलर' देखने वाले ये बात कन्फर्म कर सकते हैं कि इस फिल्म की हिंदी डबिंग भी ठीकठाक थी और अगर इसके हिंदी वर्जन को अच्छी रिलीज मिलती तो कमाई और भी बेहतर होती. साथ में ऑडियंस को एक बार फिर रजनीकांत का स्वैग बड़े पर्दे पर देखने को मिलता.
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