'पता था कि हम फौजी की तरह अयोध्या जा रहे हैं, मर भी सकते हैं', कारसेवक सतेंदर की जुबानी,1992 की कहानी
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अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का दिन नजदीक आ रहा है और कारसेवक उसको लेकर उत्साहित है. चंडीगढ के रहने वाले सतेंदर सिंह भी उन कारसेवकों में शामिल हैं जो तीन दशक पहले अय़ोध्या चले गए थे. उस समय उनकी तस्वीर इंडिया टुडे मैगजीन में भी प्रकाशित हुई थी.
अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. इस समारोह को लेकर कारसेवक काफी गदगद हैं. एक ऐसे ही कारसेवक हैं सतेंदर सिंह, जो पंजाब के चंडीगढ़ में रहते हैं. सतेंदर सिंह वो कारसेवक हैं जो 1992 में घर से बहाना बनाकर अयोध्या चले गए थे और विध्वंस के वक़्त वहीं मौजूद थे. 1992 में उनकी तस्वीर इंडिया टुडे में भी प्रकाशित भी हुई थी. आज तक ने इसे लेकर सतेंदर सिंह से खास बातचीत की.
ट्रेन में लटककर गए थे अयोध्या
सतेंदर बताते हैं, 'उस समय मैं लगभग 21-22 साल का था. उस समय यहां काफी मोटिवेशनल स्पीच होती थी. बताया गया था कि नब्बे में जो कारसेवा हुई थी उसमें लोगों का गोली चली थी और लोगों का देहांत भी हुआ था तथा उसमें लोग शहीद हुए थे. उसके कारण माहौल बहुत डर का था. 90 के दशक में लोग कारसेवा के लिए झूठ बोलकर घर से जाते थे, जैसे मैं अपनी मां को यह कहकर गया कि मैं एग्जाम का पेपर देने जा रहा हूं. किसी ने कुछ, किसी ने कुछ बहाना बनाया था. हमलोग यहां से 27 नवंबर को चले गए थे और 28 नवंबर को वहां पहुंच गए थे. हमारी जेब में भी सौ डेढ सौ दो सौ रुपए रहे होंगे और जो ट्रेन का जो रिजर्व कोटा होता है उसको छोड़कर हम ट्रेन में लटक कर वहां पहुंचे और 8 दिसंबर तक वहां रहे.
सतेंदर आगे बताते हैं, 'हम सुबह वहां सरयू नहीं में नहाकर मंदिर में मत्था टेकते थे. मन में एक ललक थी कि ये गुलामी की प्रतीक मिटना चाहिए. किसी भी हालत में हम करके ये जाएंगे, ऐसा कारसेवकों के मन में था. भगवान की कृपा से ये काम 6 दिसंबर को हो गया. सब कुछ हुआ तो भगवान जी की मूर्ति उस समय क्योंकि बाहर ले जानी पड़ी. बाहर ले जाते समय भी उसको देखा फिर पाँच छह घंटे में उसको अंदर लेके आना था फिर उसके लिए भी व्यवस्था करनी पडी.'
राम हमारे ईष्ट हैं- सतेंदर
अपने अयोध्या दौरे को याद करते हुए सतेंदर बताते हैं, 'हमने अशोक सिंघल, आडवाणी जी को नजदीक से देखा लोगों को कैमरे के सामने लड़ते देखा. 2005 में मैं फिर अयोध्या गया. उस समय भी वहां जाने पर पाबंदी थी, हमें गिरफ्तार कर लिया गया और 3-4 दिन जेल में भी रहे.अच्छा लग रहा है कि आज राम मंदिर बन रहा है और हमारा सपना पूरा हो रहा है. असली सरदार वहीं होता है जो असरदार होता है, हमें लगता है कि मंदिर तोड़कर बाबर ने हमारी आत्मा को चोट पहुंचाई है. वो आत्मा पूरे देश की है. हमारी निष्ठा इस देश के प्रति है और राम हमारे देश के ईष्ट हैं.'
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