
जिस गाजा पर हमास को पालने-पोसने का था आरोप, वो क्यों हुआ खिलाफ, क्या विकल्प हैं अगर हमास सत्ता से हट जाए?
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हमास और इजरायल में जंग की वजह से डेढ़ सालों के भीतर गाजा पट्टी लगभग तबाह हो चुकी. तेल अवीव लगातार कहता रहा कि आतंकी समूह हमास को खुद स्थानीय लोग शरण दे रहे हैं. आरोप किसी हद तक सही भी था. अब इसी इलाके में हमास-आउट के नारे लग रहे हैं. लेकिन हमास के जाने से पैदा पॉलिटिकल वैक्यूम और मुश्किलें ला सकता है.
पिछले 17 महीनों में गाजा पट्टी का बड़ा हिस्सा ध्वस्त हो चुका. इमारतें खंडहर हो गईं, वहीं हजारों लोग मारे जा चुके. इस पूरे पीरियड में हमास गाजा से ही आतंकी ऑपरेशन चलाता रहा. बंधक और उनकी लाशें अब तक यहीं छिपाई हुई हैं. यहां तक कि वो कथित तौर पर आम लोगों की मदद से ही खाना-पीना करता रहा. अब इसी गाजा में पहली बार एंटी-हमास प्रोटेस्ट हो रहे हैं. तो क्या हमास ने खुद को फिलिस्तीनियों पर जबरन थोप रखा था?
गाजा के लोगों से ही बना हमास हमास को ज्यादातर देश आतंकी संगठन मान चुके, वहीं गाजा पट्टी में रहते फिलिस्तीनियों से उनकी संवेदना है. लेकिन हमास कोई बाहरियों से बना गुट नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों ने ही इसे खड़ा किया. अस्सी के दशक में जब फिलिस्तीन के नाम पर विद्रोह हुआ तब हमास की नींव रखी गई. इसे शेख अहमद यासिन और मोहम्मद ताहा जैसे लोगों ने बनाया, जो गाजा पट्टी से ही थे.
एक धार्मिक और समाजसेवी संगठन से जल्द ही यह सशस्त्र समूह बन गया. वे पूरे फिलिस्तीन (साल 1948 से पहले वाला हिस्सा भी) को आजाद कराकर इस्लामी राज्य बनाना चाहते हैं. साथ ही वे इजरायल को परेशान भी रखना चाहते हैं. इसके लिए हमास का मिलिट्री विंग लगातार तेल अवीव की सीमा पर छुटपुट हमले करता रहा.
वैसे हमास लोकल लोगों से ही बना गुट है लेकिन इसे फॉरेन फंडिंग और सैन्य मदद भी मिलती रही. ईरान हमास का सबसे बड़ा मददगार है. वहां से इसे पैसे, हथियार और ट्रेनिंग भी मिलती रही. सीरिया और लेबनान के मिलिटेंट गुट हिजबुल्लाह से इसे सैन्य ट्रेनिंग और लॉजिस्टिक्स मिलते हैं. वहीं तुर्की और कतर उसे आर्थिक के अलावा राजनीतिक सपोर्ट भी देते हैं. यानी हमास के लोग वैसे तो गाजा के हैं लेकिन उन्हें बाहरी ताकतों से ज्यादा मदद मिलने लगी.
फिर क्यों आने लगी दूरियां

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