चीन को एक साथ 47 देशों ने दिया झटका, सुनाई खरी-खरी
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संयुक्त राष्ट्र में 47 देशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर वीगर मुसलमानों के मुद्दे पर चिंता जताई है. देशों ने मांग की है कि चीन डिटेंशन सेंटर में अधिकारियों को स्वतंत्र रूप से जाने और निरीक्षण करने की अनुमति दे. चीन ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि ये संयुक्त बयान राजनीति से प्रेरित है.
चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार के मामले पर 47 देशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर चिंता जताई है. इन देशों की मांग है कि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचेलेट वहां की स्थिति पर लंबे समय से विलंबित रिपोर्ट प्रकाशित करें. मिशेल ने पिछले महीने शिनजियांग की यात्रा की थी लेकिन उसकी रिपोर्ट तैयार होने के बावजूद अभी तक प्रकाशित नहीं की गई है.
अलजजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र में नीदरलैंड्स के राजदूत पॉल बेकर्स ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में कहा, 'हम शिनजियांग में वीगर मुसलमानों के मानवाधिकार की स्थिति के बारे में गंभीर रूप से चिंतित हैं.'
अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, स्वीडेन, स्विट्जरलैंड, जापान, इटली, इजरायल, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, आयरलैंड, डेनमार्क, बेल्जियम समेत इन 47 देशों की ओर से एक संयुक्त बयान देते हुए बेकर्स ने शिनजियांग से सामने आई कई विश्वसनीय रिपोर्टों का जिक्र किया. शिनजियांग से सामने आई कई रिपोर्टों से ये पता चलता है कि चीन ने दस लाख से अधिक वीगर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेकर रखा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन डिटेंशन सेंटर्स में वीगरों के मानवाधिकारों का हनन किया जाता है, उनकी नसबंदी की जाती है और महिलाओं से रेप किया जाता है.
चीन स्वीकार करता है कि उसने सेंटर्स बना रखे हैं लेकिन वो इन सेंटर्स को कट्टरपंथ से लड़ने के लिए बनाए गए वोकेशनल स्किल्स ट्रेनिंग सेंटर कहता है.
डच राजदूत पॉल बेकर्स ने इसी बात का जिक्र करते हुए मानवाधिकार परिषद में कहा, 'हमें ऐसी रिपोर्टों के बारे में पता चला है कि डिटेंशन सेंटर्स में वीगरों और अल्पसंख्यकों की व्यापक निगरानी की जाती है और उनके खिलाफ भेदभाव किया जाता है.'
47 देशों के संयुक्त बयान में वीगर मुसलमानों के साथ प्रताड़ना, उनके साथ क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार, उन्हें सजा देना, जबरन नसबंदी, यौन और लिंग आधारित हिंसा, जबरन श्रम, और अधिकारियों द्वारा बच्चों को उनके माता-पिता से जबरन अलग करने की रिपोर्टों के बारे में भी चिंता व्यक्त की गई.
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