गर्भवती चाहे नाबालिग हो, बच्चे को जन्म देने है या गर्भपात कराना... उसका फैसला ही सर्वोपरि: SC
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'चुनने का अधिकार' और 'प्रजनन स्वतंत्रता' संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है. इसलिए, जहां नाबालिग गर्भवती की राय अभिभावक से भिन्न होती है, अदालत को गर्भावस्था की समाप्ति का निर्णय लेते समय गर्भवती के दृष्टिकोण को एक महत्वपूर्ण कारक मानना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित 'मौलिक अधिकारों' पर प्रकाश डालते हुए कहा कि चाहे 'गर्भवती व्यक्ति' नाबालिग ही क्यों ने हो, 'बच्चे को जन्म देना है या गर्भपात कराना है' यह फैसला करने में उसकी राय महत्वपूर्ण है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा कि गर्भावस्था की समाप्ति का निर्णय लेते समय अगर एक नाबालिग गर्भवती व्यक्ति की राय अभिभावक से भिन्न होती है, तो गर्भवती के फैसले को ही तरजीह दी जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'चुनने का अधिकार और प्रजनन स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है. इसलिए, जहां नाबालिग गर्भवती की राय अभिभावक से भिन्न होती है, अदालत को गर्भावस्था की समाप्ति का निर्णय लेते समय गर्भवती के दृष्टिकोण को एक महत्वपूर्ण कारक मानना चाहिए. प्रजनन विकल्पों और गर्भपात के मामलों में गर्भवती की सहमति सर्वोपरि है.' शीर्ष अदालत ने 24 सप्ताह से अधिक समय के गर्भधारण की स्थिति में प्रेगनेंट महिला का मूल्यांकन करने वाले मेडिकल बोर्ड को 'उसकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर राय देने' की भी सलाह दी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हाल ही में मुंबई की एक 14 वर्षीय रेप पीड़िता के गर्भवती होने से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए लगभग 30 सप्ताह के भ्रूण को गिराने के अपने आदेश को उसके अभिभावकों के दृष्टिकोण में बदलाव को देखते हुए पलट दिया था. नाबालिग गर्भवती के माता-पिता ने बच्चे को पालने की इच्छा व्यक्त की थी. इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए नाबालिग से बात करके उसकी राय जानी थी और उसकी सहमति के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देने संबंधी अपना आदेश पलट दिया था.
लिंग की पहचान के लिए जेंडर-न्यूट्रल शब्दावली के उपयोग पर बहस के बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने 'गर्भवती महिला' के बजाय 'गर्भवती व्यक्ति' शब्द का इस्तेमाल क्यों किया. अदालत ने एक फुटनोट में कहा, 'हम गर्भवती व्यक्ति शब्द का उपयोग इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि सिजेंडर महिलाओं के अलावा, कुछ नॉन-बाइनरी लोगों और ट्रांसजेंडरों में भी कइयों को गर्भावस्था का अनुभव हो सकता है.'
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