
'गंगाजल' से पहले बिहार के हाल पर बनी वो फिल्म जिसकी फीस नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने खाना खाकर वसूली!
AajTak
नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने 90s में मुंबई आने के बाद मुंबई में जिस तरह स्ट्रगल किया, उसकी कहानी आज लोगों को मोटिवेशन देती है. लेकिन छोटे-छोटे किरदारों की फीस के लिए प्रोड्यूसर्स ने उन्हें बहुत दौड़ाया. एक फिल्म की फीस तो नवाज को आजतक नहीं मिली, बल्कि उस फीस को उन्होंने प्रोड्यूसर के ऑफिस में खाना खाकर बराबर किया.
बिहार के एक जिले में एक नया पुलिस ऑफिसर ट्रांसफर होकर आया है. नई जगह कदम रखते ही उसका सामना अपने से एक जूनियर पुलिसवाले के साथ होता है, जो उसे नहीं पहचानता. कमान संभालते ही पता चलता है कि उसका महकमा एक करप्ट नेता के इशारे पर चलता है, जिसका सरनेम देश की राष्ट्रीय राजनीति में ऊंचा कद रखने वाले एक चर्चित नेता से मेल खाता है.
इस कहानी का नायक पुलिस वाला एक नेता के बेटे को, लड़की से बदतमीजी के लिए सबक सिखाता है. लेकिन उसका अपना ही सीनियर बड़े नेता की धुन पर फैसले लेने वाला निकलता है. पूरी तरह करप्ट हो चुके इस सिस्टम के खिलाफ इस पुलिस ऑफिसर की जीत अंत में एक ऐसे तरीके से होती है, जिसकी इजाजत पुलिस मैनुअल तो हरगिज नहीं देता. क्या आप ये फिल्म पहचान पा रहे हैं? अगर आपका जवाब 'गंगाजल' है तो आप गलत हैं. आज यहां बात 'शूल' की हो रही है!
शिल्पा शेट्टी के आइटम नंबर से है याद
5 नवंबर 1999 को रिलीज हुई 'शूल' को कुछ लोग 'गंगाजल बिफोर गंगाजल' भी कहते हैं. इसकी सीधी वजह यही है कि दोनों कहानियों के बेसिक प्लॉट में बहुत कुछ लगभग एक जैसा लगता है. लेकिन सिनेमा का कमाल देखिए कि दोनों ही फिल्में आज अपनी जगह कल्ट हैं और दोनों के ही फैन बहुत हैं. हालांकि, ये जरूर है कि बिहार के करप्ट पुलिस-राजनीति सिस्टम पर बनी फिल्मों के मामले में, 2003 में बनी 'गंगाजल' के मुकाबले 'शूल' का नाम लोगों को थोड़ी देर बाद याद आता है. और कई बार तो सिर्फ शिल्पा शेट्टी के आइटम नंबर 'मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने' की वजह से याद आता है.
मगर कमाल ये है कि जहां 'शूल' को सामाजिक-राजनीतिक सिस्टम की नाकामी दिखाने के लिए 'बेस्ट फीचर फिल्म इन हिंदी' का नेशनल अवार्ड मिला. वहीं 4 साल बाद आई 'गंगाजल' को भी नेशनल अवार्ड मिला, सामाजिक मुद्दों पर बनी सोशल बेस्ट सोशल फिल्म का.
'शूल' में लीड किरदार निभाया था मनोज बाजपेयी ने. अगर 'सत्या' में मनोज का किरदार सपोर्टिंग माना जाए तो 1999 में ही आई 'कौन?' के बाद, 'शूल' बतौर लीड हीरो उनकी दूसरी फिल्म थी. और बतौर हीरो पहली कामयाब फिल्म. उनकी पत्नी के रोल में रवीना टंडन थीं जो अब अपनी 'ऑनस्क्रीन डीवा' वाली इमेज को तोड़ कर, अपनी एक्टिंग की धार आजमाने लगी थीं.