
'ऑडिशन दे रहा हूं, रिजेक्ट हो रहा हूं', इरफान खान का बेटा होने पर नहीं मिला बाबिल को कोई फायदा
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एक चीज जिसमें इरफान का बेटा होना बाबिल खान के काम नहीं आया, वो है प्रोजेक्ट्स पाने में. बाबिल ने बताया, 'मुझे नहीं लगता मेरी मां कभी फोन उठाकर किसी से फेवर मांग सकती हैं. मुझे ऑडिशन देने ही पड़ेंगे नहीं तो ऐसी मार पड़ेगी घर पर. अभी भी मैं बहुत से ऑडिशन दे रहा हूं और कई में रिजेक्ट हुआ हूं.'
इरफान खान के बड़े बेटे बाबिल खान जल्द ही बॉलीवुड में डेब्यू के लिए तैयार हैं. नेटफ्लिक्स की फिल्म कला से बाबिल इंडस्ट्री में एंट्री ले रहे हैं. ये इंडस्ट्री का वो समय है जब स्टार किड्स को लेकर नेपोटिज्म की डिबेट चल रही है. स्टार किड्स को अपनी फिल्मों को लेकर सोशल मीडिया पर काफी खरी-खोटी भी सुनने को मिल रही है. इस बीच बाबिल खान ने खुद को इन सभी बातों से बचाया हुआ है. इस बात का श्रेय अपने नए इंटरव्यू में बाबिल ने अपने 'बाबा' इरफान को दिया है.
कंधों पर है पिता की लेगसी का भार
हिंदुस्तान टाइम्स के साथ बातचीत में बाबिल खान ने कहा कि ये उनके बाबा की विश्वसनीयता और लोगों से उनके कनेक्शन की वजह से हुआ है. फिल्मों में एंट्री करने को लेकर बाबिल खान कहते हैं, 'मैं उनकी लेगसी से खुद को लगातार तोलता रहता हूं... भार है (कंधों पर). मैं उन लोगों में से हूं जो जब भी कुछ करते हैं अपना बेस्ट देना चाहते हैं. हमने इस फिल्म (कला) को दो साल पहले शूट किया था. मैं बतौर एक्टर अब आगे बढ़ गया हूं. तो मैं हमेशा सोचता हूं कि काश मैंने ये ऐसे किया होता, वो वैसे किया होता. मैं इस बात में भी भरोसा करता हूं कि जो भी आप करते हो उसका अपना सफर होता है और आप अपना ईगो उसमें नहीं ला सकते.'
पिता इरफान की लेगसी को आगे बढ़ाने पर बाबिल खान ने बात की. उन्होंने कहा, 'बाबा का सारा काम लोगों से जुड़ने के लिए था. उन्हें अवॉर्ड की परवाह नहीं थी, ना उन्होंने कभी ये सोची कि फिल्म को कौन प्रोड्यूस कर रहा है और कौन डायरेक्टर है. उन्हें बस पता था कि मुझे ये किरदार निभाना है और वो लोगों से उसे जोड़ ही लेते थे. यही चीज मुझमें भी आ गई है.'
ऑडिशन देकर रिजेक्ट हो रहे बाबिल
हालांकि एक चीज जिसमें इरफान का बेटा होना उनके काम नहीं आया वो है प्रोजेक्ट्स पाने में. बाबिल ने बताया, 'मुझे नहीं लगता मेरी मां कभी उठाकर किसी से फेवर मांग सकती हैं. मुझे ऑडिशन देने ही पड़ेंगे नहीं तो ऐसी मार पड़ेगी घर पर. ये हमारे संस्कार हैं. इसे तोड़ने की कोई गुंजाइश नहीं है. अभी भी मैं बहुत से ऑडिशन दे रहा हूं और कई में रिजेक्ट हुआ हूं. आज भी अगर मैं कोई ऑडिशन देता हूं जिसमें मैं पास होना चाहता हूं और नहीं हो पाता तो मेरी मां मुझसे गुस्सा हो जाती है. लेकिन वो कभी फोन उठाकर ये नहीं बोलेगी, 'करा दो इसको.' ये हमारे संस्कार के खिलाफ है. मुझे लगता है कि लोग भी इस बात को समझते हैं.'

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