एक तकनीक... और सूरज हो जाएगा मद्धम, वैज्ञानिकों की इस पहल पर विवाद भी नहीं है कम
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तेजी से गर्म होती दुनिया को ठंडा रखने पर लगातार बात हो रही है. इसके कई तरीकों में सबसे विवादित ढंग है सोलर मॉडिफिकेशन. इसमें सूरज की गर्मी को धरती तक आने से रोकने के लिए धूल और भाप की एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी. इससे तापमान बहुत तेजी से कई डिग्री नीचे चला जाएगा. लेकिन फिर जो होगा, वो ग्लोबल वार्मिंग से भी ज्यादा डरावना हो सकता है.
ग्लोबल वार्मिंग फिलहाल सबसे ज्यादा बोले जा रहे शब्दों की लिस्ट में शामिल है. आए-दिन कोई न कोई पर्यावरणविद इसे घटाने की बात करता है. कोई स्टडी आती है जो बताती है कि गर्मी किस तेजी से बढ़ रही है. इसी बीच यूनाइटेड नेशन्स इनवायरमेंट प्रोग्राम (UNEP) की एक रिपोर्ट आई, जो कहती है कि ग्लोबल वार्मिंग घटाने के लिए सूरज को ढांपने की तकनीक जानलेवा साबित हो सकती है. सोलर रेडिएशन मॉडिफिकेशन (SRM) नाम की इस तकनीक को लेकर साइंटिस्ट दो धड़ों में बंट चुके हैं.
क्या कहती है रिपोर्ट? दो हफ्ते पहले यूएन की एक रिपोर्ट रिलीज हुई. 'वन एटमॉस्फेयर: एन इंडिपेंडेंट एक्सपर्ट रिव्यू ऑन एसआरएम रिसर्च एंड डिप्लॉयमेंट' नाम से जारी रिपोर्ट में दुनिया के टॉप वैज्ञानिक शामिल हुए. वे दावा कर रहे हैं कि अगर सोलर मॉडिफिकेशन शुरू कर दिया जाए तो दुनिया कयामत से पहले ही खत्म हो जाएगी. यूएन के एक्सपर्ट पैनल में शामिल वैज्ञानिक ये भी कह रहे हैं कि फिलहाल उन्हें इसके खतरों का पूरा अंदाजा तक नहीं. हो सकता है कि खतरा इतनी तेजी से आए कि उन्हें इसे रोकने का मौका तक न मिल सके.
कहां से आया सोलर मॉडिफिकेशन का आइडिया? जून 1991 में फिलीपींस स्थित माउंट पिनेतुबो नाम के ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ. 20वीं सदी के सबसे बड़े विस्फोट से फैली राख आसमान में लगभग 28 मील तक छा गई. इसके बाद से अगले 15 महीनों तक काफी बड़े हिस्से का तापमान लगभग 1 डिग्री तक कम हो गया. राख के कारण सूरज की किरणें धरती तक नहीं पहुंच पा रही थीं. इसी बात ने वैज्ञानिकों को नया आइडिया दिया. उन्होंने सोचा कि अगर सूरज और वायुमंडल के बीच किसी चीज की एक परत खड़ी कर दी जाए तो सूरज की किरणें हम तक नहीं पहुंचेंगी.
कौन-कौन से विकल्प हो सकते हैं? कई सारे प्रयोग के बाद वैज्ञानिक मानने लगे कि ऐसा हो सकता है. इसके दो तरीकों पर काफी बात होने लगी. एक है मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग. मॉडिफिकेशन की इस तकनीक में समुद्र के ऊपर बनने वाले बादलों को ज्यादा सफेद बनाना पड़ेगा ताकि सूरज की रोशनी रिफलेक्ट होकर स्पेस में चली जाए. वैज्ञानिकों ने पाया कि बादलों के कण जितने बारीक होंगे, वे उतने ही सफेद होंगे. क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बादल बनाकर ऐसा हो सकता है.
चीन और अमेरिका क्लाउड सीडिंग तकनीक में काफी आगे जा चुके हैं. वे कई बार इस तकनीक के जरिए समय से पहले बारिश करवा चुके. हालांकि पर्यावरण के जानकार आरोप लगा रहे हैं कि मौसम में बदलाव करके वे वेदर वॉर छेड़ रहे हैं.
वायुमंडल में कृत्रिम परत बनाना दूसरा तरीका है स्ट्रेटोस्फेयरिक एरोसोल इंजेक्शन. सूरज की धूप को कम करने की ये तकनीक कुछ वैसे ही काम करेगी, जैसे गर्म चीज पर किसी छिड़काव से वो जल्दी ठंडी होती है. इस प्रोसेस में साइंटिस्ट बड़े-बड़े गुब्बारों के जरिए वायुमंडल के ऊपर हिस्से पर सल्फर डाइऑक्साइड का छिड़काव करेंगे. सल्फर में वो गुण हैं, जो सूर्य की तेज किरणों को परावर्तित कर दे. माना जा रहा है कि इससे धरती को तेज धूप से छुटकारा मिल सकेगा.
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