अमेरिकियों की औसत आय से दोगुनी है वहां बसे भारतीयों की इनकम, किसे वोट देगा ये तबका, कमला के आने से क्या बदला?
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अमेरिका में बसा भारतीय समुदाय सबसे पढ़े-लिखे और ताकतवर इमिग्रेंट्स में शामिल रहा. ये देश की कुल आबादी का लगभग 1.5 फीसदी हैं लेकिन कारोबार से लेकर राजनीति में भी उसकी गहरी पैठ है. पिछले कुछ सालों में राष्ट्रपति चुनावों में भी भी इनके वोटों की अहमियत बढ़ी. जानिए, यूएस में भारतीय मूल के लोग का रुझान किस तरफ है.
जुलाई में एशियन अमेरिकन वोटर सर्वे आया था, जो बताता था कि वहां बसे करीब 46 फीसदी भारतीयों का झुकाव डेमोक्रेट्स की तरफ था. वैसे तब जो बाइडेन राष्ट्रपति पद की रेस में थे. अब इस जगह पर कमला हैरिस आ चुकीं. इसके बाद से सपोर्ट शिफ्ट होता भी दिख रहा है. तो क्या यूएस में बसे भारतीय डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में हैं? आमतौर पर किस पार्टी की तरफ रहा भारतवंशियों का झुकाव?
कितनी मजबूत है ये आबादी
भारतीय मूल के अमेरिकियों की कुल जनसंख्या लगभग 50 लाख है, ये देश की कुल आबादी का महज डेढ़ प्रतिशत है. इसके बाद भी वे काफी अहम वोटिंग ब्लॉक बन चुके हैं. इसकी वजह है उनका आर्थिक और सामाजिक तौर पर शक्तिशाली होना. साल 2020 में हुआ अमेरिका का सेंसस कहता है कि देश की सालाना औसत कमाई लगभग 64 हजार डॉलर है, जबकि इंडियन अमेरिकन्स की कमाई इससे लगभग दोगुनी है. इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि छोटा समुदाय होने के बाद भी ये देश में कितनी ताकत और पैठ रखता होगा.
भारतीय मूल के सीईओ बेहद बड़ी कंपनियों में लीडरशिप रोल में हैं, जिनमें गूगल के सुंदर पिचाई और वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स की रेशमा केवलरामाणी जैसे नाम शामिल हैं. ये कंपनियां लगभग 27 लाख अमेरिकियों को रोजगार देती हैं. स्टार्टअप में भी भारतीय आगे हैं. वहीं अमेरिका में लगभग 60 फीसदी होटलों के मालिक इंडियन-अमेरिकन ही हैं.
आर्थिक और सामाजिक तौर पर इतने पावरफुल होने की वजह से उनका छोटा हिस्सा भी राजनीति पर सीधा असर डालता है. वे राजनैतिक अभियानों में मदद करते हैं. साथ ही चूंकि इंडियन-अमेरिकन तबका काफी लोगों को नौकरियां देता है, तो उनकी सोच का असर उनसे जुड़े वोटरों पर भी होता होगा, ऐसा माना जा सकता है.
Lebanon Blasts: वॉकी टॉकी बनाने वाली जापानी कंपनी बोली- हमने तो 2014 में ही प्रोडक्शन बंद कर दिया था
लेबनान में जिन वॉकी-टॉकी में धमाके हुए उन पर मेड इन जापान लिखा हुआ था. फुटेज में जापानी कंपनी आईकॉम के ब्रांड वाले नष्ट हुए डिवाइस दिखाई दिए. इस पर जापानी कंपनी ने कहा कि इस उपकरण को लगभग एक दशक पहले (2014) बनाना बंद कर दिया था.
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