'अब अगर श्याम बेनेगल मुझे फिल्म में कास्ट नहीं करेंगे, तो बुरा लगेगा' क्यों बोले रजित कपूर
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रजित कपूर ने जब अपनी करियर की शुरुआत की थी, तो उनकी जिंदगी में डायरेक्टर श्याम बेनेगल का काफी प्रभाव पड़ा था. रजित ने अपने करियर की ज्यादातर फिल्में श्याम बेनेगल संग की हैं.
रजित कपूर इन दिनों अपनी नई शॉर्ट फिल्म 'विरह' को लेकर चर्चा में हैं. जियो सिनेमा में रिलीज होने वाली यह फिल्म पंजाबी में हैं. पंजाबी होने के बावजूद करियर के 35 साल बाद रजित अपनी भाषा की फिल्म कर रहे हैं. इस मुलाकात में रजित हमसे फिल्म और बदलते सिनेमा पर बातचीत करते हैं. बता दें, इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल्स में भी यह फिल्म खूब सुर्खियां बटोर रही है.
'विरह' की परिभाषा पर रजित कपूर कहते हैं, 'अगर इस फिल्म को हम सोचे, तो इसमें जुदाई और तड़प का वो मिश्रण है, जिसकी आह इस फिल्म में भरी जाती है. इस प्रोजेक्ट को हामी भरने पर रजित कहते हैं, कुछ इमोशनल कनेक्ट था. जब मैंने कहानी सुनी, तो पता चला कि पंजाबी में है. पंजाबी मेरी रिजनल भाषा है और आजतक कभी पंजाबी में काम नहीं किया था. तो फौरन इसके लिए हामी भर दी.'
इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल्स में अमूमन हिंदी सिनेमा का प्रोजेक्शन बहुत ही स्टीरियोटाइप सा रहा है. ज्यादातर मेकर्स ने गरीबी को बेचते या शोकेस करते नजर आते हैं. इसके जवाब में रजित कहते हैं, 'मुझे अंदाजा नहीं है. शायद पहले ऐसा हुआ होगा, लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब जो सारे इंटरनैशनल परदे हैं, वो फाश हो चुके हैं. लोग जानते हैं. हो, सकता है चालीस साल पहले जब आप किसी विदेशी से पूछते कि भारत क्या है, तो उन्हें हाथी-घोड़ा, सांप और काला जादू दिखाई पड़ता है. लेकिन अब यह खत्म हुआ है. 'स्लमडॉग मिलेनियर', 'सलाम बॉम्बे' में ऐसी चीजों को हाइलाइट किया जाता है. वो कहानी थी, इसलिए चल गई थी.'
श्याम बेनेगल संग ही रजित ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी. उनकी ज्यादातर फिल्मों में रजित नजर आ चुके हैं. श्याम संग अपने स्पेशल कनेक्शन पर रजित कहते हैं, श्याम बेनेगल ने मुझे एक्टर के तौर पर बहुत निखारा है. पहली फिल्म 'सूरज का सातंवा घोड़ा' से लेकर आज भी उनका हाथ मेरे सिर पर रहा है. मैंने उनकी हर फिल्म और प्रोजेक्ट का हिस्सा रहा हूं. हाल ही में जो 'रहमान' पर फिल्म बनने जा रही है, उसमें भी मैंने भुट्टो का किरदार निभाया है. अब ऐसा है कि अगर वो अब कोई प्रोजेक्ट मेरे बिना करे, तो मुझे बुरा लगेगा. दरअसल उनका मुझपर हक है. उन्होंने मुझे हर किस्म का रोल निभाने का मौका दिया है. वर्ना तो हमारी इंडस्ट्री में टाइपकास्ट हो जाना बहुत आसान है. हम बंधे जाते हैं. ऐसा हुआ नहीं. 'सूरज का सातंवा घोड़ा' के बाद फौरन हमने 'मम्मो' की थी, उसके बाद 'मेकिंग ऑफ महात्मा', फिर सीधा मुझे सरदारी बेगम का किरदार दे दिया. फिर 'जुबैदा' दे दिया.. 'वेल डन अब्बा' जैसे भी प्रोजेक्ट्स से उनसे जुड़ा, तो अहसास हुआ कि उन्होंने मुझे किसी एक ढांचे में ढाला नहीं था. जब भी उन्हें मेरी जरूरत होगी, मैं उनके लिए खड़ा रहूंगा. अरे अपनी फिल्म में पेड़ भी बना लें, तो मैं वहां खड़ा रहना पसंद करूंगा. हमारा रिश्ता बहुत ही इमोशनल है.