अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर, जयंत चौधरी... सहयोगियों को 6 लोकसभा सीटों से कैसे संतुष्ट करेगी बीजेपी?
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बीजेपी यूपी की 74 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है और बाकी छह लोकसभा सीटें पार्टी सहयोगी दलों के लिए छोड़ सकती है. अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर, संजय निषाद के साथ ही जयंत चौधरी को बीजेपी छह सीटों में ही कैसे संतुष्ट करेगी और सीट शेयरिंग के इस फॉर्मूले का आधार क्या है?
राज्यसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अब लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है. पार्टी अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग के साथ ही उम्मीदवार चयन की कवायद में जुट गई है. दिल्ली में बीजेपी कार्यालय से लेकर प्रधानमंत्री निवास तक, छह घंटे से अधिक समय तक मैराथन बैठकों का दौर चला. बीजेपी के शीर्ष नेताओं की बैठक में यूपी में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर भी चर्चा हुई और खबर है कि पार्टी सूबे की छह सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ने को तैयार है.
बीजेपी जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल सोनेलाल को दो-दो, ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और डॉक्टर संजय निषाद के नेतृत्व वाली निषाद पार्टी को एक-एक सीटें दे सकती है. बीजेपी यूपी की 74 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. पार्टी आरएलडी को बिजनौर और बागपत, अपना दल को मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज सीट दे सकती है. आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के बागपत सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है तो वहीं अपना दल ने 2019 में भी इन्हीं सीटों से उम्मीदवार उतारे थे.
सीट शेयरिंग के इस फॉर्मूले का आधार क्या? बीजेपी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के लिए घोसी और निषाद पार्टी के लिए संतकबीरनगर की सीट छोड़ सकती है. बीजेपी एनडीए के चार सहयोगी दलों को यूपी की आधा दर्जन सीटों पर एडजस्ट करने की तैयारी में है. इसे लेकर अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि बीजेपी चार पार्टियों को छह सीटों पर कैसे संतुष्ट करेगी और सीट शेयरिंग के इस फॉर्मूले का आधार क्या है? चार पार्टियां छह सीटों पर कैसे एडजस्ट होंगी, इसे लेकर चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल दो चुनाव से दो लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ती आई है तो वहीं ओमप्रकाश राजभर की पार्टी भी दो से तीन सीटें मांगती रही है.
निषाद पार्टी दो से तीन लोकसभा सीटें चाहती है तो वहीं हाल ही में विपक्षी इंडिया गठबंधन से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ आए जयंत चौधरी की आरएलडी को समाजवादी पार्टी (सपा) ने आधा दर्जन से अधिक सीटें दी थीं. पिछले चुनावों की बात करें तो आरएलडी अमूमन पांच से सात सीटों पर चुनाव लड़ती आई है. बीजेपी के साथ आने से पहले आरएलडी का इस बार भी सात सीटों पर चुनाव लड़ना तय था. सपा के साथ सीट शेयरिंग का ऐलान भी हो गया था. 2009 के चुनाव में आरएलडी बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी और तब भी पार्टी ने सात सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. ऐसे में जयंत दो सीटों से ही संतुष्ट हो जाएंगे? सवाल यह भी है.
सहयोगियों को एडजस्ट करने की रणनीति पर मंथन कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी सहयोगियों को लोकसभा की कम सीटों पर एडजस्ट कर रही है तो हो सकता है कि राज्यसभा से लेकर कैबिनेट और निगम-बोर्ड में प्रतिनिधित्व दे दे. लेकिन जानकारों की राय अलग है. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि हमें नहीं लगता कि बीजेपी ऐसा कुछ करने वाली है. ओमप्रकाश राजभर, संजय निषाद, अनुप्रिया पटेल और जयंत चौधरी की जरूरत जितनी बीजेपी को है, इन नेताओं के लिए बीजेपी उससे कहीं अधिक जरूरी है. जयंत चौधरी अपनी सीट तक नहीं जीत पा रहे. ऐसे में उनके लिए अब एक तरह से वजूद की लड़ाई है. सपा से गठबंधन में सात सीटें मिल जरूर गई थीं लेकिन जीत कितने पाते, जयंत ने जरूर इसका भी आकलन किया होगा. नहीं तो अधिक सीटें छोड़कर बीजेपी के साथ नहीं आते. वह भी यह जरूर जानते होंगे कि बीजेपी के सामने उनकी बारगेन पावर उतनी नहीं होगी जितनी सपा और कांग्रेस के सामने थी.
एक पहलू यह भी है कि आंकड़ों की नजर से देखें तो सीट शेयरिंग के इस फॉर्मूले का आधार 2022 के यूपी चुनाव में प्रदर्शन नजर आता है. इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि यूपी विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 403 है और लोकसभा की सीटें हैं 80 यानि पांच विधानसभा सीटों पर एक लोकसभा सीट. यूपी में सीट शेयरिंग का आधिकारिक ऐलान अभी नहीं हुआ है लेकिन छह लोकसभा सीटों पर सहयोगियों को एडजस्ट करने की रणनीति पर बीजेपी मंथन कर रही है तो उसके पीछे भी यही गणित नजर आता है.
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