अखिलेश का ये प्रयोग जबर्दस्त हिट, विदेश से आए इन युवाओं ने सियासी पिच पर खूब दौड़ाई साइकिल
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उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का नया प्रयोग सफल साबित हुआ है. इसी वजह से सपा 80 में से 37 सीटें जीतने में कामयाब रही. सपा मुखिया ने इस चुनाव में कई ऐसे युवाओं को टिकट दिया था, जिनके पास कोई राजनीतिक अनुभव ही नहीं था, हालांकि उनकी परवरिश राजनीतिक परिवारों में जरूर हुई थी.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी 37 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. इस बार के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने इस बार एक नया प्रयोग किया, जोकि सफल साबित हुआ है. सपा मुखिया ने कई सीटों पर नए युवा चेहरे उतारे थे. इन सीटों पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की है. इनमें कौशाम्बी, मछलीशहर और कैराना शामिल हैं.
कौशाम्बी-
यूपी की कौशाम्बी इस बार सबसे चर्चित सीटों में शामिल रही. इस सीट पर अखिलेश ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व कैबिनेट मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज को टिकट दिया था. पुष्पेंद्र सरोज ने बीजेपी के विनोद सोनकर को एक लाख तीन हजार 944 वोटों से हराकर पिता की हार का बदला लिया है. जहां पुष्पेंद्र को पांच लाख नौ हजार 787 वोट मिले, वहीं बीजेपी प्रत्याशी सोनकर को चार लाख पांच हजार 843 वोट मिले. 2019 में बीजेपी प्रत्याशी विनोद सोनकर ने इंद्रजीत सरोज को 38,742 वोटों से हराया था.
पुष्पेंद्र सरोज देश के सबसे कम उम्र के सांसद बने हैं. पुष्पेंद्र सरोज ने इस साल एक मार्च को अपनी 25 साल की आयु पूरी की है. उन्होंने राजनीति में कदम रख कर अपने पिता की विरासत संभाली है. पुष्पेंद्र सरोज लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी से एकाउंटिंग एंड मैनेजमेंट में ग्रेजुएट हैं.
पुष्पेंद्र सरोज के पिता इंद्रजीत सरोज की बात करें तो उन्होंने बहुजन समाज पार्टी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. पहली बार वह साल 1996 में बसपा से विधायक बने, तो वर्ष 2012 तक उन्हें मंझनपुर (सुरक्षित) की सरजमीं से कोई हरा नहीं सका. तीन बार वह बसपा से मंत्री भी रहे. बसपा में बतौर राष्ट्रीय महासचिव पार्टी की सेवा की.
इंद्रजीत सरोज पार्टी के गैर जाटव दलित चेहरा हैं. सरोज जिस पासी समाज से आते हैं, वह जाटव के बाद दूसरी सबसे बड़ी दलित समाज है. अवध से लेकर पूर्वांचल तक इलाके में राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाढ़ने में पासी समाज का अहम रोल है.
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