'PM आम सहमति का उपदेश देते हैं, लेकिन टकराव को महत्व देना जारी रखते हैं', सोनिया के लेख में नरेंद्र मोदी पर हमला
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सोनिया गांधी ने आपातकाल का जिक्र करते हुए लिखा है कि यह इतिहास का सत्य है कि मार्च 1977 में हमारे देश की जनता ने इमरजेंसी के खिलाफ स्पष्ट निर्णय दिया, जिसे निःसंकोच और स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया. तीन साल से भी कम समय के बाद वह पार्टी (कांग्रेस) जो मार्च 1977 में हार गई थी, प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई. पीएम मोदी और उनकी पार्टी को उस तरह का प्रचंड बहुमत कभी नहीं मिला, यह भी उस इतिहास का हिस्सा है.
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू होने के एक हफ्ते बाद, अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में अपने आर्टिकल के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने लिखा है, 'प्रधानमंत्री ऐसे व्यवहार कर रहे हैं मानो कुछ भी नहीं बदला है. वह आम सहमति का उपदेश देते हैं, लेकिन टकराव को महत्व देना जारी रखते हैं. इस बात के जरा भी संकेत नहीं मिलते कि उन्होंने (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) लोकसभा चुनाव 2024 के जनादेश को समझा है और लाखों मतदाताओं के संदेश पर गौर किया है'.
सोनिया गांधी ने संसद सत्र के संचालन के तरीके पर निराशा व्यक्त करते हुए लिखा है, 'दुख की बात है कि 18वीं लोकसभा के पहले कुछ दिन उत्साहवर्धक नहीं रहे. सदन में सौहार्द की तो बात ही छोड़िए, ऐसी कोई आशा नहीं दिखी कि आपसी सम्मान और सहमति की एक नई भावना को बढ़ावा दिया जाएगा'. हालांकि, विपक्ष ने दोनों सदनों में नीट पेपर लीक पर चर्चा की मांग करते हुए शुक्रवार को संसद में सरकार को घेरा, लेकिन सोनिया गांधी ने संकेत दिया है कि इंडिया ब्लॉक सोमवार से राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेने का इरादा रखता है.
उन्होंने लिखा है, 'इंडिया ब्लॉक में शामिल पार्टियों ने स्पष्ट किया है कि वे टकराव का रवैया नहीं अपनाना चाहतीं. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सहयोग की पेशकश की है. गठबंधन के घटक दलों के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे संसद में सार्थक कामकाज और इसकी कार्यवाही के संचालन में निष्पक्षता चाहते हैं. हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की प्रतिक्रिया भी सकारात्मक होगी. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उन लाखों लोगों की आवाज सुनी जाए जिन्होंने हमें अपना प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजा है. हम जनता के मुद्दों को उठाएं और उस पर चर्चा करें. हमें उम्मीद है कि ट्रेजरी बेंच आगे आएंगी ताकि हम अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों को पूरा कर सकें'.
उन्होंने अपने लेख में स्पीकर ओम बिरला द्वारा लोकसभा में इमरजेंसी पर लाए गए प्रस्ताव पर भी टिप्पणी की है. सोनिया गांधी ने लिखा है, 'प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी द्वारा आपातकाल की निंदा की गई- आश्चर्यजनक रूप से स्पीकर ने भी वही स्टैंड लिया. स्पीकर से किसी राजनीतिक पार्टी के स्टैंड का समर्थन करने की बजाय निष्पक्षता की उम्मीद की जाती है. यह संविधान, उसके मूलभूत सिद्धांतों और मूल्यों, इसके द्वारा बनाई गई और सशक्त की गई संस्थाओं पर हमले से ध्यान भटकाने की कोशिश है. संसद में सुचारू रूप से कामकाज हो इसके लिए यह अच्छा संकेत नहीं है'.
सोनिया गांधी ने आपातकाल का जिक्र करते हुए लिखा, 'यह इतिहास का सत्य है कि मार्च 1977 में हमारे देश की जनता ने आपातकाल पर स्पष्ट निर्णय दिया, जिसे निःसंकोच और स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया. तीन साल से भी कम समय के बाद वह पार्टी (कांग्रेस) जो मार्च 1977 में हार गई थी, प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई. पीएम मोदी और उनकी पार्टी को उस तरह का प्रचंड बहुमत कभी नहीं मिला, यह भी उस इतिहास का हिस्सा है'. कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष ने लिखा है कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने अपनी मर्यादा और जिम्मेदारी को नजरंदाज कर सांप्रदायिक और झूठी बातें फैलाई. उनके बयानों से सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा.
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