Matchbox History: 5 पैसे की माचिस... अब 2 रुपये में, जानिए भारत में कैसे और कब हुई इसकी शुरुआत
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भारत में माचिस के निर्माण की शुरुआत साल 1895 से हुई थी. इसकी पहली फैक्ट्री अहमदाबाद में और फिर कोलकाता में खुली थी. भारत में सबसे पहले स्वीडन की एक मैच मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने माचिस बनाने की कंपनी खोली थी.
यह लाइटर का जमाना है, लेकिन अब भी माचिस (Matchbox) की डिमांड और कारोबार ठीक-ठाक है. फिलहाल माचिस की डिब्बी 2 रुपये की मिलती है और आमतौर पर माचिस के दाम में एक दशक में बढ़ता है. इससे पहले साल 2007 में माचिस के दाम बढ़े थे. तब 50 पैसे वाली डिब्बी की कीमत बढ़कर 1 रुपये की गई थी.
माचिस का दाम बढ़ाने का फैसला शिवकाशी में ऑल इंडिया चैंबर ऑफ मैचेस द्वारा लिया जाता है. अब भी अधिकतर ग्रामीण इलाकों में आग जलाने के लिए लोग माचिस का इस्तेमाल करते हैं. आइए जानते माचिस से जुड़ीं 7 रोचक बातें.
1. भारत में साल 1950 में माचिस की एक डिब्बी की कीमत महज 5 पैसे थी. जो 1994 में बढ़कर 50 पैसे की हो गई. उसके बाद 2007 में कीमत 50 पैसे से बढ़कर 1 रुपये की गई थी.
2. माचिस के प्रत्येक बॉक्स में 50 तीलियां होती हैं. 600 माचिस डिब्बे का एक बंडल होता है. माचिस बनाने में 14 कच्चे माल की जरूरत होती है. जिसमें लाल फास्फोरस, मोम, कागज, स्प्लिंट्स, पोटेशियम क्लोरेट और सल्फर का मुख्य रूप से इस्तेमाल होता है. इसके अलावा माचिस की डिब्बी दो तरह के बोर्ड से बनते हैं. बाहरी बॉक्स बोर्ड और भीतरी बॉक्स बोर्ड.
3. भारत में सबसे बड़ा माचिस उद्योग तमिलनाडु में है. मुख्यतौर पर तमिलानाडु के शिवकाशी, विरुधुनगर, गुडियाथम और तिरुनेलवेली मैन्युफैक्चरिंग सेंटर हैं. भारत में फिलहाल माचिस की कई कंपनिया हैं, अधिकतर फैक्टरीज में अब भी हाथों से काम होता है. जबकि कुछ फैक्ट्रियों में मशीनों की मदद से माचिस का निर्माण होता है.
4. तमिलनाडु में इस उद्योग में लगभग चार लाख लोग काम करते हैं और इन कर्मचारियों में 90 फीसदी से अधिक महिलाएं हैं. माचिस की कीमत बढ़ने से कर्मचारियों की आय में बढ़ोतरी होती है. माचिस बनाने वालों को बॉक्स बनाने की उनकी क्षमता के आधार पर भुगतान किया जाता है.
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