IPC Section 161 to 165: अधिकारियों के भ्रष्टाचार और जुर्म से संबंधित थीं ये धाराएं, ऐसे की गई थीं निरस्त
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आईपीसी (IPC) की धारा 161 से धारा 165 तक निरस्त कर दी गईं थी. जिनका संबंध सरकारी अधिकारियों से था. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 161 से 165 तक क्यों निरस्त की गईं और उनमें क्या प्रावधान मौजूद थे?
Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता की धाराओं में अपराध (Offence) और उनकी सजा (Punishment) के साथ-साथ लोक सेवकों (Public servants) और उनसे जुड़े मामलों (cases) की जानकारी (Information) भी दर्ज है. मगर आईपीसी में कुछ धाराएं ऐसी भी हैं, जिन्हें देश आजाद होने के बाद ज़रूरत पड़ने पर निरस्त कर दिया गया. ऐसे ही आईपीसी (IPC) की धारा 161 से धारा 165 तक निरस्त कर दी गईं थी. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 161 से 165 तक क्यों निरस्त की गईं और उनमें क्या प्रावधान मौजूद थे?
आईपीसी की धारा 161 से 165 आईपीसी (IPC Section 161 to Section 165) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 161 से धारा 165 तक लोक सेवकों (Public servants) द्वारा या उनसे संबंधित अपराधों के विषय (Subjects of offenses) में प्रावधान किए गए थे. जिनमें खासकर भ्रष्टाचार और रिश्वत से जुड़े मामले हुआ करते थे. इन पांचों धाराओं में अलग-अलग तरह के अपराध शामिल थे - धारा 161- सरकारी अधिकारी होते हुए या होने की शीघ्र आशा रखते हुए अपने पद के कार्य के बारे में अपनी वैध तनख्वाह के अलावा कोई और धन लेना.
धारा 162- सरकारी कर्मचारी पर भ्रष्ट या अवैध साधनों द्वारा प्रभाव डालने के लिए अवैध धन लेना.
धारा 163- सरकारी अधिकारियों पर व्यक्तिगत प्रभाव डालने के लिए अवैध धन लेना.
धारा 164- उपरोक्त लिखित धारा 162 और 163 में परिभाषित अपराधों का लोक सेवक द्वारा अपने खिलाफ अपराध के लिए उकसाना.
धारा 165- लोक सेवक किसी भी मूल्यवान वस्तु को प्राप्त करता है, बिना किसी विचार के, किसी भी कार्यवाही या व्यवसाय में संबंधित व्यक्ति से ऐसे लोक सेवक द्वारा लेन-देन किया जाना.
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