India Russia Relations: भारत का रूस क्यों सबसे ट्रस्टेड साथी है, क्यों PM मोदी के दौरे से पश्चिमी देशों को जलन हो रही? 15 Facts में समझें
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को दो दिवसीय ( 8 से 9 जुलाई) यात्रा पर रूस रवाना हो रहे हैं. पीएम मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निमंत्रण पर मॉस्को जा रहे हैं. दोनों नेता 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन का हिस्सा बनेंगे. इस दौरान द्विपक्षीय हितों पर बात होगी. रूस के बाद प्रधानमंत्री 10 जुलाई को ऑस्ट्रिया भी जाएंगे. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद पीएम मोदी की यह पहली रूस यात्रा है. भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच एक संतुलित और तटस्थ स्टैंड अपनाया है.
India Russia Relations: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज रूस के लिए रवाना हो रहे हैं. वे दो दिन तक मॉस्को में रहेंगे. भारत-रूस के बीच 22वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पीएम मोदी को न्योता भेजा था. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी की यह पहली रूस यात्रा है. रूस ने पीएम मोदी के इस दौरे को बेहद अहम बताया है. हालांकि, पीएम मोदी के रूस दौरे से पश्चिमी देशों में जलन देखने को मिल रही है. क्रेमिलन (रूसी राष्ट्रपति कार्यालय) ने इस बात का दावा किया है.
रूसी राष्ट्रपति के प्रेस सचिव ने कहा, पीएम मोदी की आगामी यात्रा पर पश्चिमी देश बहुत ही बारीकी और ईर्ष्या से नजर बनाए हुए हैं. उनकी निगरानी का मतलब है कि वे इसे बहुत महत्व देते हैं और वे गलत नहीं हैं, इसमें बहुत महत्व देने वाली बात है. युद्ध के संबंध में भी पीएम मोदी मुखर रहे हैं और वे यूक्रेनी राष्ट्रपति से कई बार फोन पर बातचीत कर चुके हैं. भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले इस युद्ध को समाप्त करने की अपील कर चुका है. पीएम मोदी और पुतिन की दो साल बाद मुलाकात होगी. इससे पहले सितंबर 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय वार्ता की थी.
यह पहली बार नहीं है, जब पश्चिमी देशों को भारत और रूस के बीच रिश्तों से जलन हो रही है. 1950-1960 के दशक से पश्चिमी देशों में भारत-रूस के रिश्तों पर ईर्ष्या देखने को मिली है. हालांकि, भारत पश्चिम के दबाव को लगातार खारिज करता आ रहा है और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के साथ आगे बढ़ रहा है. जानकारों का कहना है कि भारत का यह रुख नया नहीं है, भले कहने का अंदाज आक्रामक हुआ है. यही वजह है कि यूक्रेन संकट में भी भारत और रूस की साझेदारी पर अब तक कोई आंच नहीं आई है. दो साल पहले जब पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच मुलाकात हुई तब दोनों नेताओं ने कहा था, 'रूस और भारत की दोस्ती अटूट है.' भारत और रूस को हर संकट पर साथ खड़े देखा जा सकता है. भारत की तटस्थ विदेश नीति हर किसी को आकर्षित कर रही है.
1. मोदी के रूस दौरे से पश्चिमी देशों को क्यों जलन हो रही?
1960 के दशक में सोवियत संघ की नेता निकिता ख्रुश्चेव और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के बीच जारी कोल्ड वॉर के दौर में पंडित नेहरू ने निर्गुट आंदोलन खड़ा करके तीसरे विश्व की कल्पना को साकार किया था, उसके बाद से भारत ने वर्ल्ड पावर बैलेंस हमेशा अपने हिसाब से बनाए रखा है लेकिन जब भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को जरूरत पड़ी है तो रूस एक भरोसेमंद साथी के रूप में खड़ा दिखा है. यूएन के मंच पर अपने वीटो पावर के साथ भी रूस ने भारत का साथ दिया है. यही कारण है कि इस दोस्ती पर अमेरिकी समेत पश्चिम देशों को हमेशा जलन हुई है. 1955 में निकिता ख्रुश्चेव ने कश्मीर पर भारतीय संप्रभुता के लिए समर्थन की घोषणा करते हुए कहा था, हम इतने करीब हैं कि अगर आप कभी हमें पहाड़ की चोटियों से बुलाएंगे तो हम आपके पक्ष में खड़े होंगे. तब से मॉस्को कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के खिलाफ एक ढाल बना हुआ है.
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