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HPMV, कोरोना, SARS, MERS, इबोला, Zika ही नहीं... इस धरती ने झेले हैं 10 करोड़ से अधिक वायरस, जानिए Viruses की हिस्ट्री
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यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर की वायरोलॉजिस्ट सारा सॉयर कहती हैं- वायरस हमारी दुनिया में नहीं रहे हैं बल्कि हम वायरस की दुनिया में रह रहे हैं. उन्होंने हमें जीवनदान दिया हुआ है. पृथ्वी पर मौजूद कुल जीव-जंतुओं कीआबादी वायरस की संख्या की तुलना में कुछ भी नहीं है. किस्मत अच्छी है कि सभी वायरस हमें नुकसान नहीं पहुंचाते. क्योंकि वायरस बेहद चुनिंदा कोशिकाओं पर ही हमला करते हैं.
दुनिया अभी कोरोना महामारी की दर्दनाक और भयावह यादों से उबरी भी नहीं थी कि ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HPMV) नाम के एक नए वायरस ने दस्तक दे दी है. चीन में HPMV वायरस के कारण हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है. भारत में भी इस वायरस से संक्रमित कुछ मरीज मिले हैं, लेकिन राहत की बात है कि यह कोरोना जितना खतरनाक नहीं है. ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस इंसान के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है. छोटे बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों को HPMV ज्यादा प्रभावित करता है.
खांसी, बुखार, शरीर दर्द, गले में खराश, नाक बहना या नाक का जाम हो जाना इत्यादि HPMV के लक्षण हैं. ऐसे लक्षणों वाले व्यक्ति के कॉन्टैक्ट में आने से बचना, भीड़भाड़ वाली जगहों पर फेस मास्क पहनना, साबुन से लगातार हाथ धोना, सैनिटाइजर का उपयोग करना इस वायरस से बचाव के सामान्य उपाय हैं. कोरोना और HPMV के अलावा पिछले एक दशक में दुनिया ने SARS, MERS, इबोला, Zika जैसे वायरसों का सामना किया है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस धरती ने 10 करोड़ से अधिक वायरसों को झेला है. आइए जानते हैं वायरस (विषाणु) की हिस्ट्री...
धरती पर जीव-जंतुओं से ज्यादा वायरस हैं
नेशनल जियोग्राफिक के अनुसार धरती पर इस समय करोड़ों वायरस एक्टिव हैं. इनमें से कुछ ही वायरस ऐसे हैं, जो इंसान के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर की वायरोलॉजिस्ट सारा सॉयर कहती हैं, 'वायरस हमारी दुनिया में नहीं रहे हैं बल्कि हम वायरस की दुनिया में रह रहे हैं. उन्होंने हमें जीवनदान दिया हुआ है. पृथ्वी पर मौजूद कुल जीव-जंतुओं की आबादी वायरस की संख्या की तुलना में कुछ भी नहीं है. किस्मत अच्छी है कि सभी वायरस हमें नुकसान नहीं पहुंचाते. क्योंकि वायरस बेहद चुनिंदा कोशिकाओं (Cells) पर ही हमला करते हैं.'
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यहां एक बात स्पष्ट होनी चाहिए कि वायरस अकेले जीवित नहीं रह सकते. उन्हें जिंदा रहने के लिए एक शरीर की आवश्कता होती है, जिसे विज्ञान की भाषा में होस्ट कहते हैं. शरीर से यह मतलब नहीं कि सिर्फ इंसानी शरीर, किसी भी जीव-जंतु में वायरस जीवित रह सकते हैं. यानी वायरस एक तरह के परजीवि होते हैं, जिसे अंग्रेजी में पैरासाइट कहते हैं. पैरासाइट का अर्थ होता है- जीवित रहने के लिए किसी दूसरे पर आश्रित होना. हर वायरस की अपनी प्रकृति होती है, कोई इंसानों को प्रभावित करता है तो कुछ जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक हो सकते हैं. यह जरूरी नहीं है कि इंसानों को प्रभावित करने वाला वायरस जीव-जंतुओं के लिए भी हानिकारक हो. वैसे ही जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालने वाला वायरस जरूरी नहीं है कि इंसानों को भी उसी तरह प्रभावित करे.
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