
Ground Report: बिजयनगर ब्लैकमेल कांड की पीड़िताएं दहशत में, समाज गुस्से में... आरोपी पक्ष बोला- हम गद्दार नहीं, हंगामा राजनीतिक
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बिजयनगर की स्कूली बच्चियों के साथ एक खास पैटर्न में हुई घटना की तुलना 1992 के अजमेर रेप ब्लैकमेल कांड से हो रही है. ये भी कहा जा रहा है कि सूबे में ग्रूमिंग गैंग एक्टिव हो चुका, जो एक खास धर्म की लड़कियों को टारगेट कर सकता है. मामले की जांच के लिए SIT बन चुकी. जमीनी पड़ताल में अब तक क्या-क्या दिखा...
राजस्थान के बिजयनगर थाने में 15 फरवरी को एक परिवार अपनी नाबालिग बेटी से रेप की शिकायत लेकर थाने पहुंचता है. इस घटना को चौबीस घंटे भी नहीं बीते होंगे कि एक-एक करके पांच लड़कियां सामने आती हैं. सभी लड़कियां एक ही स्कूल से, सबके पास मोबाइल, जिनके जरिए आरोपी उनसे संपर्क करते...और एक बात कॉमन थी- सभी लड़कियां एक ही धर्म से थीं और आरोपी दूसरे मजहब के.
तीन दशक पहले अजमेर ब्लैकमेल कांड से मिलती-जुलती घटना ने ऊंघते हुए कस्बे को झकझोंरकर उठा दिया. अब पचास हजार की आबादी वाला बिजयनगर रैलियों और मंत्रियों-संत्रियों से गुलजार है.
वहीं नाबालिग बच्चियां वो छोटा-मोटा स्टेशन हो चुकी हैं, जो लगातार गुजरती रेल की आवाज से कांपती तो रहेंगी, लेकिन जहां कोई गाड़ी रुकेगी नहीं. aajtak.in ने पीड़ित बच्चियों, उनके परिवार से लेकर आरोपियों के घरवालों से भी मुलाकात की और जानने की कोशिश की बीते दिनों उनपर क्या कुछ बीता. किसी भी पुराने शहर की तर्ज पर बिजयनगर भी दो हिस्सों में बंटा दिखेगा. रेलवे स्टेशन के इस पार हाट हैं, बाजार है, और शांति है. वहीं तमाम किरदार उस पार बसे हुए हैं- पीड़िताएं भी, आरोपी भी.
शहर के पूरब में फैले इस इलाके में नया चेहरा दिखते ही छोटी-मोटी भीड़ जुट जाती है और जैसे ही आप उनसे पता पूछेंगे, वही भीड़ तपाक से छंट भी जाएगी. खुसफुसाते हुए ही कुछ लोग नाम-पता बता देते हैं. ऐसे ही एक मददगार के जरिए हम उस घर तक पहुंचे, जहां की दो-दो बच्चियों ने ब्लैकमेलिंग के आरोप लगाए थे. परिचय देने पर पिता घर के भीतर ले जाते हैं. दो चचेरी बहनों की मां वहीं बैठी हुई दिखीं, पिता बातचीत की डोर संभाल लेते हैं.आपको कब और कैसे पता लगा? मैं दुकान करता हूं. वैसे तो पैसों का मोटा हिसाब रहता है लेकिन एक दिन 2000 रुपए गायब लगे. घर में गिनती के आदमी. किसी ने कुछ बताया नहीं. उसी शाम बेटी को फोन पर किसी से बात करते सुना. हमने उन्हें मोबाइल नहीं दिया, तब! डांटने पर वो रोने लगी. हम बात कर ही रहे थे कि फोन घनघनाने लगा. कॉल पर कॉल आ रहे थे. बेटी रोए जा रही थी. हमने उसे फोन उठाकर स्पीकर पर डालने को कहा. जैसे ही उसने कॉल पिक की, उधर से गालियां सुनाई पड़ने लगीं. भद्दी-भद्दी बातें कहते हुए लड़का धमका रहा था. मतलब ये प्रेम-प्यार का चक्कर नहीं, कुछ और ही था. हम थोड़ी देर सदमे में रहे. बेटी कई और सहेलियों के नाम ले रही थी कि उन्हें भी लड़कों ने मोबाइल दिए हैं और ब्लैकमेल करते रहते हैं. जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर हमने लड़की से कहा कि किसी बहाने से उस लड़के को बुलाए. हमने वहीं उसे घेर लिया. फिर उसने खुद ही उगल दिया कि इस काम में और कौन-कौन शामिल है. ये कब से चल रहा था, आपको कुछ अंदाजा है? अगस्त-सितंबर से शायद. तब लड़कों ने एक बच्ची को फंसाया था. फिर उसपर बाकी सहेलियों से मिलवाने का दबाव बनाया. लेकिन ऐसा दबाव वो क्यों बना सके? पहले हंसी-मजाक से शुरुआत हुई. घूमना-फिरना, चॉकलेट देना. फिर उन्होंने कैफे में ले जाकर लड़की की अश्लील फोटो-वीडियो बना ली थी. उसी से ब्लैकमेल करते. मारे डर के लड़की ने वही किया, जो कहा गया. वो बाकी सहेलियों को मिलवाने लगी. फिर वे भी जाल में फंसती चली गईं. सबको छोटा मोबाइल दे रखा था ताकि जब चाहें, बुला सकें. हमारी दो बच्चियों के बीच एक फोन था.
शहर तो इतना छोटा है, फिर इतने दिन आपको कुछ पता नहीं लगा! इस बात का जवाब आता है बच्ची की चाची की ओर से, जिनकी खुद की बेटी भी इसमें फंसी थी. वे कहती हैं- पास में स्कूल है. पहले हममें से कोई छोड़ने जाता, कुछ वक्त से खुद आने-जाने लगी थीं. पांच-दस मिनट का रास्ता. दोपहर में लोग-बाग या तो काम पर रहते हैं, या घर के भीतर. तभी पकड़ लेते. हम-आप उम्र वाले हैं लेकिन दो लड़के पास आ जाएं तो दिल हड़हड़ करता है. आप सोचिए, ये तो छोटी बच्चियां हैं. 13-14 साल की. उन्हें बाइक-कार में चारों तरफ से लड़के घेर लेते. कई बार कार में ले जाते. लड़कियां खौफ में कुछ कह नहीं पाती थीं. पहले वे मोबाइल से बात करते. फिर मिलने बुलाते.एफआईआर में रेप की बात भी हो रही है! हां, एक के साथ तो दुर्घटना हुई, दूसरी बची रह गई. वो कैफे नहीं गई थी. लेकिन लड़के उसे डरा-धमका रहे थे. हाथ पर भी ब्लेड से कट लगा दिए. दोनों चुप रहने लगी थीं. हमको लगा कि परीक्षा की तैयारी का टेंशन होगा. बाद में भेद खुला.आप बच्चियों को बुला सकते हैं? मैं पिताजी की तरफ मुड़ती हूं. बुला तो देंगे लेकिन आप कुछ रिकॉर्ड नहीं करेंगी. बहुत बीमार रहीं. अब एग्जाम सिर पर है. वो परेशान हो जाएंगी. बुलाहट पर दो बच्चियां आती हैं. दुबले-पतले कंधे अदृश्य बोझ से झुके हुए. आंखों के नीचे महीनों से चलता आ रहा रतजगा. मुस्कुराने की कोशिश में होंठ खिंचकर रह जाते हैं.पेपर कब से हैं? चुप्पी.तैयारी हो चुकी! चुप्पी.हाथ दिखा सकती हैं अपना! एक बच्ची धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ा देती है. कट के हल्के-हल्के निशान हाथों की लकीरों में एकसार होते हुए. पिता कहते हैं- एक बार कैफे में गई. वहां जो हुआ, उसके बाद बचने लगी तो बुलाकर हाथ काट दिया. धमकी दी कि अगर बात न मानी तो गला भी काट देंगे और तुम्हारे परिवार को भी खत्म कर देंगे.बढ़े हाथ वाली बच्ची की आंखें भरभराती हुईं. मैं पलटते हुए पूछती हूं- कौन सा सबजेक्ट लेंगी आगे? साइंस. पहली बार जवाब आता है. पिता फिर बीच में आते हुए- इतने दिनों से स्कूल नहीं जा रहीं. अब तो वहां जा भी नहीं सकेंगी. प्रशासन ने कहा है कि दोनों को अजमेर भिजवाने का बंदोबस्त करेंगे. देखते हैं, आगे क्या होता है. दोनों मांएं वहीं सीढ़ियों पर बैठी हुईं. एक कहती है- रमजान शुरू हो चुका. अगर उस रोज पैसे गायब न होते तो हमें पता ही नहीं लगता और ये रोजे रख रही होतीं.धर्मांतरण के लिए दबाव की बात पेरेंट्स बार-बार कहते रहे. उनके मुताबिक, पकड़ाई में आए पहले लड़के ने खुद ये बात कबूली थी कि अलग-अलग जातियों की लड़कियों को मुस्लिम बनाने के अलग-अलग रेट तय थे. काफी देर से चुप बैठी बच्ची खुलती है- वे कार और बाइक पर आते. हम कुछ जानते ही नहीं थे कि वे कौन हैं. क्या करते हैं. हमसे बुरका पहनने को कहते. रोजे रखवाने की बात करते. मना करने पर कहते कि तुम लोग पैसों की चिंता मत करो. ऊंची जाति की हो, हमसे जुड़ी तो 20 लाख वैसे ही मिल जाएंगे.
मैं लड़कियों से अकेले में बात कर सकती हूं क्या? बड़े सीधे मना कर देते हैं. जो पूछना है, यहीं पूछ लीजिए. हर कोई तो सब जान चुका. अब क्या परदा! निकलते हुए मां कहती हैं- ये पढ़ने-लिखने वाली बच्चियां. उनमें कोई पेंटर था, कोई मैकेनिक तो कोई खलासी. सब के सब शोहदे. इतने से दिन में इनकी भूख-प्यास सब मर गई. शरीर झटक गया. हमने तो अपनी बेटियों को जैसे-तैसे संभाल लिया, एक लड़की की हालत ज्यादा खराब है. मरने-मरने की बात करती है.उसके घर का पता दे सकेंगी? जवाब से पहले ही दरवाजे बंद हो चुके. पता करते-कराते हम उस लड़की के घर पहुंचते हैं, जो इस ट्रैप में सबसे पहले फंसी थीं. घर के बाहर एक बुजुर्ग महिला बैठी हुई. वे कहती हैं – मेरा बेटा ही इसपर बात करेगा. वो अभी ठेकेदारी में गया है. बच्ची से मिल सकते हैं क्या? वो घर पर नहीं है. अच्छा, आपके बेटे कब तक आएंगे. दोपहर हो जाएगी. हम नंबर लेकर दोपहर में कॉल करते हैं लेकिन कोई फोन नहीं उठाता. पीड़ित परिवारों से मुलाकात की कड़ी में हम चौथी पीड़िता के घर भी पहुंचते हैं, लेकिन वहां सारे पुरुष आक्रोश रैली में शामिल होने के लिए बाहर गए हुए. महिलाओं को बोलने की मनाही.यहां से होते हुए हम मार्केट की तरफ जाते हैं, जहां ब्लैकमेल कांड के ज्यादातर आरोपियों के मकान-दुकान हैं.

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