Ground Report: जान की बाजी लगा घुसे, जिल्लत झेल कर रहे, लेकिन... कहानी उन अप्रवासियों की जिन्हें यूएस-कनाडा ड्रीम ले डूबा!
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अमेरिका में अवैध रूप से रहते भारतीयों की घरवापसी शुरू हो चुकी. आज 205 भारतीय अमृतसर एयरपोर्ट पहुंचेंगे. इनमें सबसे ज्यादा लोग पंजाब से हैं. इससे कुछ रोज पहले ही aajtak.in पंजाब के NRI बेल्ट कहलाते जालंधर और कपूरथला में ऐसे लोगों से मुलाकात की, जो यूएस से डिपोर्ट किए जा चुके. कुछ ऐसे चेहरे भी थे, जो कनाडा से 'लॉन्ग लीव' पर आ चुके हैं, कभी न जाने के लिए.
कुछ घर-वापसियां सुकून नहीं देतीं, बल्कि रातों को झकझोरकर उठा देती हैं. 'कनैडा' और 'अमरीका' से लौटे युवा इसी अधबीच में अटके हुए हैं. स्टूडेंट वीजा लेकर बाहर पहुंचे बहुत से बच्चे ‘लंबी छुट्टी' पर वापस आ चुके. कई जान जोखिम में डाल अमेरिका पहुंचे, सिर्फ इसलिए कि एक रोज 'स्टिंकी रैट' के पुछल्ले के साथ वापस भेज दिए जाएं.
कनाडा में रहते हिंदुस्तानियों की हालत बहुत खराब हैं. खासकर लड़कियों की. किराया बचाने के लिए वे कई-कई अनजान लड़कों के साथ रह रही हैं. खुद मुझे एक बंदी ने अप्रोच किया था कि मैं उसे अपने कमरे में रख लूं. चमक-दमक वाली रील्स देख झोंक में मैं चला तो गया, लेकिन दो महीने भी नहीं टिक पाया. वहां न काम है, न इज्जत. यही हाल अमेरिका में है. कपूरथला के सुमीत सिंह अपने इलाके के माने हुए फिटनेस कोच हैं. वे कहते हैं- कनाडा में अपने भी अपने नहीं. मुझे जिन्होंने बुलाया था, वही बचने लगे. खोजने पर भी काम नहीं था. सप्लाई इतनी ज्यादा हो चुकी कि डिमांड खत्म है.
लोग कम पैसों में कुछ भी करने को राजी रहते हैं. बहुतेरे टेंट्स में रहते और लंगर खाते हैं. इससे तो अपना पिंड भला! दरम्यानी उम्र का ये शख्स वर्क वीजा पर कनाडा गया था. नया चलन. स्टूडेंट वीजा पाना अब आसान नहीं. वर्क परमिट भी कई गुना ज्यादा कीमत पर बिकता है. ब्लैक टिकट की तरह. ओटावा और दिल्ली तनाव के बीच बदले वीजा नियमों ने पंजाब के भीतर भी काफी कुछ बदल दिया. अंग्रेजी सिखाने वाले सेंटरों पर ताला पड़ रहा है. और वीजा दिलाने वाले एजेंट नया काम तलाश रहे हैं. बाहर गए बहुत से लोग वापस लौट चुके. झेंप मिटाने के लिए वे इसे लंबी छुट्टी बताते हैं. जो बाकी हैं, वे डरे हुए कि जाने कब उनका भी टिकट कट जाए. पंजाब के जालंधर शहर जाइए तो घरों में जहाज के आकार की पानी की टंकियां दिख जाएंगी. इससे सटा हुआ है कपूरथला. NRI बेल्ट कहलाते इस हिस्से में बच्चे पतंग भी उड़ाते हैं तो कनाडा के झंडे वाली.
यहां सरसराती गाड़ियों के आगे-पीछे कनाडा ही नहीं, यूएस और यूरोप के झंडे दिख जाएंगे. सड़क पर चलता हर चौथा शख्स बाहर रहकर आ चुका. जो बाकी हैं, वो जाने की तैयारियों में हैं.
तेज चलती इस गाड़ी में हाल में एकदम से ब्रेक लगता दिखा. कनाडा ने वीजा रूल्स में सख्ती कर दी. बदली हुई अमेरिकी सरकार भी वेलकम के खास मूड में नहीं. छापेमारियां होने लगीं. अवैध ढंग से पहुंचे लोगों की छंटनियां होने लगीं.हजारों किलोमीटर दूर आए इस तूफान के थपेड़े पंजाब के छोटे-छोटे गांवों तक हलचल मचाए हुए हैं. एक दूसरी रिपोर्ट पर काम के लिए हम कपूरथला में थे, जब जसप्रीत से मुलाकात हुई. वो अपने परिवार के लिए 'गॉड से प्रे' करवाना चाहती थीं. लगभग 25 साल की ये लड़की एक बार अमेरिका से लौटाई जा चुकी. दोबारा जाने की तैयारी थी कि तभी वहां सरकार बदल गई. पास्टर के साथ पूजा-पाठ के बाद वे हमसे मिलती हैं. चेहरे पर उम्मीद के अलावा बाकी सारे रंग. थोड़ी मान-मनौवल के बाद बातचीत चल पड़ती है.अमेरिका में जिंदगी कैसी थी? हम जॉब करते. राशन की दुकान जाते. बच्चों को स्कूल छोड़ते. दूध-साग लाते. दिन भर वो सारे काम करते थे, जो आम अमेरिकी परिवार करते हैं. फर्क बस इतना था कि हम हर वक्त डरे रहते. मामूली काम के लिए भी घर से बाहर जाते हुए बच-बचकर चलना होता कि कहीं पकड़े न जाएं.वहां रहने के लिए लिए हमने डॉग और स्टिंकी रैट जैसी गाली भी मुंह सिलकर सुन ली. एक बार स्टोर पर किसी ने मुझपर थूक दिया था. बताते हुए युवती अनजाने ही मुंह पोंछने लगती है, जैसे अदृश्य गंदगी अब भी चेहरे पर लगी हो. फिर! मैं चेहरा धोकर काम करती रही. अमरीका जाने से पहले एजेंट ने हमसे कहा था- ‘एक्ट नॉर्मल’. कोई चाहे तमाचा मारे या पगार ही काट ले, हमें चुप रहना है. न तो हम पुलिस में शिकायत कर सकते हैं, न खुद ही मारपीट कर सकते हैं. क्यों? क्योंकि हम डंकी रूट से वहां पहुंचे थे. लोग कभी हमारे रंग का मजाक उड़ाते, कभी अंग्रेजी का.
एक बार पार्क में किसी ने मेरी फोटो खींच ली. गलती उसने की थी और डरी हुई मैं थी. पिंड होता तो अव्वल तो उसकी हिम्मत ही नहीं होती, और कर भी ले तो मैं खुद गिरेबान पकड़ लेती. लेकिन वहां मैं एकदम चुप रही. उसके बाद दोबारा कभी उस पार्क में नहीं गई. धड़का लगा रहता कि किसी भी रोज कोई पकड़कर पुलिस के हवाले कर देगा. अमेरिका में कहां रहती हैं, और क्या करती थीं?
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