
RSS औरंगजेब को अप्रासंगिक मानती है, पर देश में क्या कोई सुनने को तैयार है?
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औरंगजेब की कब्र के मुद्दे पर हिंदू हितों की बात करने वाली आरएसएस की ओर से एक अच्छी पहल की गई है. पर यह पहल तभी कारगर साबित होगी जब मुसलमानों की नुमाइंदगी करने वालों की ओर से भी इस तरह के उदार बयान आएंगे.
औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद के बीच आरएसएस के प्रवक्ता सुनील आंबेकर का एक बयान आया है. आंबेकर ने कहा है कि यह मसला आज प्रासंगिक नहीं है. उन्होंने कहा, किसी भी प्रकार की हिंसा समाज के लिए ठीक नहीं है.आरएसएस का यह रुख ऐसे समय आया है, जब औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग की जा रही है. और नागपुर में तनाव के बाद हिंसा देखने को मिली है. जाहिर है कि सवाल उठेंगे ही कि अगर संघ इस तरह के विचार रख रहा है तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के नेता औरंगजेब की कब्र को लेकर आक्रामक क्यों हो गए हैं. दूसरी ओर एक सवाल यह भी उठता है कि आंबेकर के पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत भी कई बार कह चुके हैं कि मंदिर-मस्जिद का विवाद अब खत्म होना चाहिए. मस्जिदों के नीचे दबे मंदिरों की खोज अब बंद होनी चाहिए.पर संघ प्रमुख के इन बयानों के बाद भी कहीं से भी इस तरह के विवादों में कमी नहीं आ रही है.इसका अर्थ दो तरह से लिया जा सकता है. पहला संघ केवल सुझाव दे रही है , मानने या न मानने की मर्जी बीजेपी पर छोड़ रखी हो. पर सिक्के का दूसरा पहलू भी है. नागपुर में मामला औरंगजेब की कब्र का था. पर मध्यप्रदेश के महू में और यूपी के संभल में दूसरी तरह का मामला था. पर दंगे हर जगह हुए. इसलिए हिंसा को रोकना और माहौल को दूषित होने से बचाने के लिए दो तरफा पहल होनी चाहिए.
औरंगजेब का महिमामंडन करने वालों को कौन रोकेगा?
बॉलिवुड की छावा मूवी की रिलीज के बाद से मराठा साम्राज्य और मुगल शासक औरंगजेब की कहानी पर फिर से चर्चा शुरू हुई. शंभाजी महाराज को जिस तरह प्रताड़ित करके औरंगजेब ने मारा था उस पर बहस शुरू हुई. इस बीच समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब को रहमतुल्लाह अलैह कहकर संबोधित किया . बस झगड़े की जड़ यही थी. आम तौर पर औरंगजेब को क्रूर और अत्याचारी शासक माना जाता है. हिंदुओं और सिखों को प्रताड़ित करने के चलते कई ऐतिहासिक किताबों में उसको आतताई के रूप में दिखाया गया है. खुद जवाहरलाल नेहरू भी उसे एक आतताई ही मानते थे. पर बीजेपी के नेताओं के मैदान में आ जाने के चलते सभी विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने औरंगजेब के गुड़गान शुरू कर दिए हैं. मुसलमानों का एक तबका और लिबरल हिंदुओं के एक तबके ने औरंगजेब की जो गुड़गान शुरू की है उसके चलते मुंबई में माहौल खराब होने लगा. नागपुर में औरंगजेब जिंदाबाद के नारे से हिंदुओं को चिढ़ जरूर हुई होगी. जाहिर है कि ऐसे समय में हिंदुओं के हित की बात करने वाली आरएसएस की ओर से एक अच्छी पहल की गई है. पर यह पहल तभी कारगर साबित होगी जब मुसलमानों की नुमाइंदगी करने वालों की ओर से भी इस तरह के उदार बयान आएंगे. पर ऐसा नहीं हो रहा है.
आरएसएस की बात क्या मानेगी बीजेपी
पिछले साल लोकसभा चुनावों के पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक बयान के चलते संघ और बीजेपी के नेताओं के बीच कुछ तनाव चल रहा था. माना जा रहा था कि नड्डा के उस बयान के चलते ही लोकसभा चुनाव में आरएसएस का सहयोग बीजेपी को नहीं मिला. जाहिर है कि बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी. बाद में संघ प्रमुख भागवत के बयान से भी स्पष्ट हुआ था कि कुछ न कुछ दोनों संगठनों के बीच जरूर चल रहा था.
पर बाद में स्थितियां सुधर गईं. राज्य विधानसभा चुनावों में आरएसएस ने तन मन लगाकर काम किया और बीजेपी ने भारी जीत दर्ज की. पर यह कहना कि मंदिर मस्जिद के मुद्दे पर या औरंगजेब के मुद्दे पर बीजेपी नेता आरएसएस का कहा मानेंगे ही इसमें संदेह है. क्योंकि आरएसएस एक सांस्कृतिक संगठन रहा है . संघ और बीजेपी के बीच बहुत से मामलों पर मतभेद रहा है. पर संघ ने कभी बीजेपी पर दबाव नहीं डाला है. वैसे भी औरंगजेब के मुद्दे पर बीजेपी सीधे सीधे कुछ नहीं कर रही है. हां विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल समेत कुछ सहयोगी संगठन औरंगजेब की कब्र को स हटाने की मांग कर रहे हैं.

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