BJP अपने इन तर्कों के सहारे क्या प्रज्जवल रेवन्ना सेक्स स्कैंडल की आंच से बच सकेगी?
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प्रज्जवल रेवन्ना सेक्स स्कैंडल के बाद बीजेपी पर चौतरफा हमले हो रहे हैं. चाल चरित्र और चेहरे की बात करने वाली पार्टी डैमेज कंट्रोल के लिए अपने कई तर्क दे रही है. पर क्या पार्टी के तर्कों से जनता सहमत होगी?
जनता दल (सेक्युलर) के सांसद प्रज्जवल रेवन्ना के खिलाफ यौन शोषण के आरोपों का सबसे अधिक निशाना बीजेपी को बनाया जा रहा है. दरअसल जेडीएस का इन चुनावों में उतना बड़ा स्टेक नहीं है जितना भारतीय जनता पार्टी का है. भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करने के चलते ही आज इस घिनौने कृत्य की चर्चा पूरे देश में हो रही है,अन्यथा प्रदेश की राजनीति में इसका पटाक्षेप पिछले साल ही हो गया था. अब समूचे विपक्ष को बीजेपी पर हमला करने का एक जबरा हथियार मिल गया है. विपक्ष सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठा रहा है. कुछ लोग बीजेपी को तत्काल इस गठबंधन से अलग होने के लिए चैलेंज कर रहे हैं. बीजेपी ने इन आरोपों के बीच खुद को अलग करते हुए मंगलवार को कहा कि कर्नाटक में उसके गठबंधन सहयोगी पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है. भाजपा ने कांग्रेस पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वह प्रज्जवल के खिलाफ कार्रवाई कर सकती थी क्योंकि उसके नेतृत्व वाली राज्य सरकार के पास सारी जानकारी थी. पर कुछ भी हो बीजेपी को जवाब देना तो मुश्किल हो ही गया है.
1-गठबंधन के साथी की जिम्मेदारी, ये बहाना क्या चलेगा?
देखने में यह बिल्कुल सही लगता है कि साथी दल किसे उम्मीदवार बना रहा है या साथी दल के नेता क्या कर रहे हैं उसे कैसे रोका जा सकता है. बीजेपी के प्रवक्ता प्रकाश शेषवर्गावाचर ने मीडिया से कहा कि हम गठबंधन सहयोगी से ये नहीं कह सकते हैं कि किसे उम्मीदवार बनाये और किसे न बनाए, ये पार्टी पर छोड़ दिया गया था. पर बीजेपी के लिए इतना आसान भी नहीं है ये कहकर बच निकलना. कुछ महीने पहले भाजपा ने सनातन धर्म को डेंगू-मलेरिया से तुलना करने वाले द्रमुक नेता उदयनिधि स्टालिन के बयान को इंडिया गुट का मानकर गठबंधन के साथियों पर जमकर प्रहार किया था. अब किस मुंह से बीजेपी यह कह सकती है कि गठबंधन के साथी क्या करता है उसे पार्टी कैसे रोक सकती है.
दरअसल पिछले साल जून में रेवन्ना ने इन वीडियो पर अदालत से रोक हासिल कर ली थी. इसके बाद पूरे राज्य में इसकी चर्चा थी. इसके साथ ही बीजेपी के स्थानीय नेता देवराजे गौड़ा ने कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बीवाई विजेंद्र को दिसंबर के पहले सप्ताह में पत्र लिखा था और मांग की थी कि प्रज्जवल रेवन्ना या उनके परिवार के किसी सदस्य को गठबंधन से उम्मीदवार ना बनाया जाए. हालांकि, बीजेपी नेतृत्व ने तय किया था कि एक बार गठबंधन में सीटों का बंटवारा तय हो जाए तो किसे उम्मीदवार बनाना है और किसे नहीं ये गठबंधन सहयोगी पर छोड़ दिया जाएगा.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट में राधा मोहन दास अग्रवाल कहते हैं कि भाजपा का इस प्रकरण से कोई लेना-देना नहीं है. चुनाव के लिए हमारा जेडीएस के साथ गठबंधन है. भाजपा अपने उम्मीदवार के चयन के लिए जिम्मेदार है. जेडीएस के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, जो कुछ हुआ उसके लिए हम न तो खुद को जिम्मेदार मानते हैं और न ही आरोपियों को बचाएंगे. कानून अपना काम करेगा.
2-कर्नाटक सरकार ने क्यों भागने दिया?
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