24 दिन के लिए गहरी नींद में चला गया शख्स, बिना कुछ खाए-पिए कैसे रहा जिंदा, हैरान कर देगी ये कहानी
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क्या हो जब कोई इंसान 1, 2, 5, या 10 दिन नहीं, बल्कि 24 दिन तक गहरी नींद में सोता रहे. वो भी बिना कुछ खाए-पीए. यकीकन उसका बचना मुश्किल है. लेकिन आज हम आपको ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जो कि 24 दिन तक बिना खाए-पीए गहरी नींद में रहा और वो भी जिंदा. वो कैसे जिंदा रहा, इसकी वजह जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. चलिए जानते हैं इस दिलचस्प कहानी के बारे में...
हमारी आधुनिक दुनिया ने लगभग हर क्षेत्र में तेज गति से उन्नति की है. इतनी कि जितना कभी इंसान ने सोचा भी नहीं था. बावजूद इसके आज भी काफी चीजें ऐसी भी हैं जिसके बारे में हम नहीं जानते. आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही घटना के बारे में है जो कि आज भी डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों की समझ से भी परे है.
यह कहानी है जापान के सिविल सर्वेंट मित्सुटाका उचीकोशी (Mitsutaka Uchikoshi) की. उनके साथ साल 2006 में कुछ ऐसी घटना हुई जो कि साइंस की दुनिया में एक अजूबे से कम नहीं है. 7 अक्टूबर 2006 के दिन 35 साल के मित्सुटाका अपने कुछ दोस्तों के साथ जापान के प्रसिद्ध ट्रैक माउंट रोको (Mount Rocco) की यात्रा पर निकले.
ट्रैक से पैदल लौटने का किया फैसला माउंट रोको के अद्भुद नजारे का लुत्फ उठाने के बाद सभी दोस्त वापस ट्रैक से लौटने लगे. बता दें, माउंट रोको तक जाने के लिए केबल कार से भी लोग जाते हैं. लेकिन ट्रैकिंग करने के शौकीन लोग इस यात्रा को पैदल ही करना पसंद करते हैं. मित्सुटाका भी ट्रैकिंग करने के शौकीन थे. इसलिए उन्होंने दोस्तों के साथ केबल कार से नहीं, बल्कि पैदल वहां से लौटने का फैसला किया.
चलते-चलते भटक गए रास्ता लेकिन मित्सुटाका को नहीं पता था कि उनका यह फैसला उनकी जिंदगी पर एक गहरा असर छोड़कर जाने वाला है. वह दोस्तों को अलविदा कहकर ट्रैक से नीचे उतरने लगे. वह चलते गए और थोड़ी ही देर बाद उन्हें अहसास हुआ कि वह रास्ता भटक चुके हैं. आमतौर पर जब भी जंगल में कोई रास्ता भटक जाता है तो ऐसी स्थिति से बाहर निकलने का सबसे सही तरीका यही होता है कि वह किसी नदी को ढूंढे. फिर उसके बहाव की दिशा में आगे बढ़े. इससे आगे किसी बड़ी नदी या बस्ती मिलने की संभावना काफी ज्यादा होती है.
पैर फिसलने से टूटी कूल्हे की हड्डी मित्सुटाका के दिमाग में भी यही आईडिया आया और उन्होंने नदी की तलाश करना शुरू कर दिया. उन्होंने जल्द ही नदी ढूंढ निकाली और उसके बहाव की दिशा में बढ़ने लगे. लेकिन कुछ ही दूरी तय करने के बाद उनका पांव फिसला और वह पत्थर से टकरा गए. इस कारण उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई. मित्सुटाका ने तब भी हार नहीं मानी. रात हो चुकी थी और ठंड भी काफी बढ़ रही थी. बावजूद इसके वह आगे बढ़ते गए. उनके पास बस थोड़ा सा पानी और एक सॉस का पैकेट था.
24 दिन बाद खुली नींद इस थोड़े से सामान के साथ ही मित्सुटाका ने अपनी यात्रा को जारी रखा. अगला दिन आ गया. तब भी मित्सुटाका धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए. लेकिन जैसे ही धूप थोड़ी बढ़ी तो उन्हें नींद आने लगी. उन्होंने सोचा कि क्यों न यहां थोड़ा आराम कर लिया जाए. वह एक खुले मैदान में जाकर वह वहीं गिर पड़े और सो गए. उनकी ये नींद इतनी गहरी थी कि वह 1, 2, 5 और 10 नहीं बल्कि पूरे 24 दिन तक सोए रहे. जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने खुद को एक अस्पताल में पाया. 8 अक्टूबर 2006 के दिन मित्सुटाका सोए थे और जब उनकी आंख खुली तो वह दिन था 1 नवंबर 2006.
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