
15 दिन से मोर्चरी में रखा शव, दफनाने पर विवाद... सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मामले को सौहार्दपूर्वक निपटाएं
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छत्तीसगढ़ सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अंतिम संस्कार ईसाई आदिवासियों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में होना चाहिए, जो परिवार के छिंदवाड़ा गांव से लगभग 20-30 किलोमीटर दूर स्थित है. पीठ ने कहा,
छत्तीसगढ़ के एक गांव में शव दफनाने के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उसे एक सौहार्दपूर्ण समाधान और पादरी के सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार की उम्मीद है, जिसका शव 7 जनवरी से शवगृह में पड़ा हुआ है. साथ ही, उसने पादरी के बेटे की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
जस्टिस बी वी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ रमेश बघेल नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसके पिता को उसके गांव के कब्रिस्तान में ईसाईयों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाने की उसकी याचिका का निपटारा कर दिया गया था.
पीठ ने कहा, "शव 15 दिनों से मुर्दाघर में है, कृपया कोई समाधान निकालें. व्यक्ति को सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करने दें. सौहार्दपूर्ण समाधान होना चाहिए."
छत्तीसगढ़ सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अंतिम संस्कार ईसाई आदिवासियों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में होना चाहिए, जो परिवार के छिंदवाड़ा गांव से लगभग 20-30 किलोमीटर दूर स्थित है.
बघेल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य का हलफनामा यह दावा करता है कि ईसाई आदिवासियों के लिए गांव से बाहर जाकर शव दफनाना एक परंपरा है, जो झूठ है. गोंजाल्विस ने गांव के राजस्व मानचित्रों को रिकॉर्ड में पेश किया और तर्क दिया कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें समुदाय के सदस्यों को गांव में ही दफनाया गया.
पीठ ने हिंदू आदिवासियों की अचानक आपत्ति पर आश्चर्य व्यक्त किया, क्योंकि वर्षों से किसी ने दोनों समुदायों के लोगों को एक साथ दफनाने पर आपत्ति नहीं जताई. जब अदालत ने सुझाव दिया कि वैकल्पिक रूप से पादरी को उसकी निजी भूमि पर दफनाया जा सकता है, तो मेहता ने आपत्ति जताई और कहा कि दफन केवल निर्दिष्ट स्थान पर ही होना चाहिए जो 20-30 किलोमीटर दूर है.

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