
15 दिन के लिए खुल जाते हैं नरक के दरवाजे, कंबोडिया में बड़ी शान से मनाया जाता है भूतों का त्यौहार
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दुनिया में भूत-पिशाचों के वजूद को लेकर सवाल तो सदियों से रहे हैं. लेकिन फिर भी भूत-पिशाचों के बहाने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अनगिनत पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं. और ऐसी कुछ तस्वीरें एक छोटे से देश से निकलकर सामने आई हैं.
दुनियाभर में कई तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं. अलग-अलग मान्याताएं हैं. अलग-अलग रस्में हैं. मगर क्या आपने सुना है दुनिया के किसी हिस्से में 15 दिनों के लिए नरक का दरवाजा खोला जाता है और वहां से सैकड़ों भूत प्रेत और बुरी आत्माओं को आजाद किया जाता है. ताकि जिंदा इंसान उन्हें खाना खिला सकें. अगर आपको इस बात पर यकीन ना हो तो कंबोडिया नाम के देश की ये चौंका देने वाली कहानी बस एक बार ज़रा गौर से सुन लें.
भूतों के लिए खास इंतजाम तरह-तरह के पकवान. एक से बढ़ कर एक लज़ीज़ आइटम. रंग बिरंगे सजावट के सामान. पूजा पाठ और प्रार्थनाओं का दौर... ये सब कुछ किसी खास देवता या ऊपरवाले को खुश करने के लिए नहीं. बल्कि ये सबकुछ है नरक से निकलनेवाले उन भूतों के लिए जो साल भर इन खास दिनों का इंतज़ार करते हैं. जब वो नरक से बाहर आकर जी भर कर खाना खा सकें. वो भूत जो बेहद भूखे हैं और खाना ना मिलने पर कुछ भी कर सकते हैं. और नरक से बाहर निकलने वाले इन भूतों को खुश करने का सारा इंतज़ाम करते हैं वो लोग, जो अभी ज़िंदा हैं.
भूखे भूतों के लिए खास है ये त्यौहार दुनिया में भूत-पिशाचों के वजूद को लेकर सवाल तो सदियों से रहे हैं. लेकिन फिर भी भूत-पिशाचों के बहाने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अनगिनत पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं. और ऐसी कुछ तस्वीरें एक देश से सामने आई हैं, तस्वीरें ऐसे ही एक त्यौहार की, जिसमें भूखे भूतों के सामने बाकायदा तरह-तरह के लजीज खाने पेश किए जाते हैं.
नोम पोन, कंबोडिया साउथ ईस्ट एशिया के निचले हिस्से में मौजूद करीब 1 करोड़ 67 लाख की आबादी वाले इस मुल्क के लोग साल भर पूरी शिद्दत से इन खास दिनों का इंतज़ार करते हैं. जब खमेर चंद्र कैलेंडर के मुताबिक सिंतबर से अक्टूबर के दरम्यान 15 दिन पूरे देश में पचम पेन नाम का वो पर्व मनाया जाता है, जब वो भूखे भूतों का खाना खिलाते हैं.
खाना तलाश करते हैं भूत और आत्माएं कंबोडिया में ये मान्यता है कि हर साल इन 15 दिनों के लिए नरक का दरवाजा खुल जाता है और इन दरवाजों के खुलते ही भूखी और बुरी आत्माएं बाहर भटकने लगती हैं. ये आत्माएं धरती पर मंदिरों और कब्रिस्तानों के इर्द-गिर्द भटकती हैं और खाने की तलाश करती हैं. ऐसे में इन आत्माओं के लिए तरह-तरह के खाने का इंतजाम करना जिंदा लोगों का फ़र्ज़ है, ताकि उनकी भूख शांत हो और वो जिंदा लोगों को परेशान ना करें.
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