120 करोड़ की आबादी में 25 हजार लोग भी नहीं बोलते संस्कृत भाषा, RTI में मिली जानकारी
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केंद्रीय गृह मंत्रालय के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त कार्यालय के भाषा विभाग ने चौंकाने वाली जानकारी दी है. RTI के जवाब में पता चला कि 2011 की जनगणना के अनुसार, भारतीय जनसंख्या का केवल 0.002 प्रतिशत लोग ही संस्कृत बोलते हैं.
संस्कृत, भारत देश की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है. अभी भी देश के अधिकांश हिस्सों में संस्कृत भाषा स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई जाती है. जहां एक ओर बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब की आबादी का एक बड़ा हिस्सा उर्दू बोलता और समझता है. वहीं, RTI से जानकारी मिली है कि इस समय भारत में केवल 24,821 लोग ही संस्कृत बोलते हैं.
यह चौंकाने वाली जानकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त कार्यालय के भाषा विभाग ने दी है. विभाग ने आगरा के सर्जन और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन के जवाब में यह जानकारी दी. डॉ. भट्टाचार्य द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2011 की जनगणना के अनुसार, भारतीय जनसंख्या का केवल 0.002 प्रतिशत लोग ही संस्कृत बोलते हैं.
डॉ भट्टाचार्य के अनुसार, संस्कृत को संविधान में अल्पसंख्यक भाषा के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, बल्कि देश की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. 2010 में, उत्तराखंड संस्कृत को अपनी दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में सूचीबद्ध करने वाला भारत का पहला राज्य बना. हालांकि, यह शायद ही किसी के द्वारा बोली जाती है, जबकि हिंदी, जो संस्कृत सहित कई भाषाओं का मिश्रण है, कई करोड़ भारतीयों द्वारा बोली जाती है.
केन्द्रीय हिंदी संस्थान की भाषाविद् डॉ. सपना ने कहा कि न केवल संस्कृत, बल्कि KHS ब्रज भाषा, अवधी और भोजपुरी सहित 18 क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करने पर काम कर रहा है. इन भाषाओं के लिए डिक्शनरी तैयार की जा रही हैं. तीन शब्दकोश पहले ही तैयार किए जा चुके हैं, जबकि 15 पर काम चल रहा है.
सामाजिक कार्यकर्ता समीर ने इंडिया टुडे को बताया कि 09 सितंबर 2022 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट की अदालत ने संस्कृत में एक आदेश पारित कर इतिहास रच दिया. डीएम के आदेश ने संस्कृत को फिर से सुर्खियों में ला दिया. उन्होंने कहा कि हमीरपुर के जिलाधिकारी डॉ. चंद्रभूषण त्रिपाठी ने संस्कृत में लिखे गए इस आदेश ने कई संस्कृत विद्वानों को इस लुप्तप्राय भाषा को दैनिक अभ्यास में लाने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया है.
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