
हैरिस ने ट्रंप को कह दिया फासिस्ट, क्या हैं इसके मायने, क्या चुनाव के दौरान लगाए गए आरोपों पर कार्रवाई मुमकिन?
AajTak
उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ने पूर्व प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप को फासिस्ट कहते हुए आरोप लगा दिया कि उनका दौर तानाशाही वाले फैसलों से भरा हुआ था. राष्ट्रपति पद की रेस से पहले कुछ ही दिन बाकी हैं. ऐसे में दोनों ही एक-दूसरे पर अलग-अलग आरोप लगाते हुए अपनी जमीन मजबूत कर रहे हैं. लेकिन असल में फासिज्म है क्या, और क्यों इसे बेहद गंभीर आरोप माना जा सकता है.
अमेरिका में पांच नवंबर को राष्ट्रपति चुनावों के लिए वोटिंग होने वाली है. इसमें मौजूदा उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हैं, जबकि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रिपब्लिकन से मैदान में हैं. प्रेसिडेंशियल डिबेट तो हो चुकी लेकिन आपस में आरोप-प्रत्यारोप अब भी जारी हैं. इसी कड़ी में हैरिस ने ट्रंप को फासिस्ट कह दिया. ये बहुत बड़ा शब्द है. जर्मनी के अडोल्फ हिटलर और इटली के बेनिटो मुसोलिनी को फासिस्ट ही कहा जाता रहा.
लेकिन फासिज्म है क्या, और दुनिया के सबसे कुख्यात तानाशाहों से अपनी तुलना पर क्या ट्रंप कोई कानूनी एक्शन भी ले सकते हैं?
इटली से शुरू हुआ फासिज्म का दौर
यह एक राजनीतिक विचारधारा और शासन प्रणाली है, जो 20वीं सदी की शुरुआत में विकसित हुई. इसमें एक नेता, एक पार्टी और एक देश के लिए पूरी निष्ठा रखने पर जोर दिया जाता है. अगर कोई ऐसा करने से इनकार करे तो उसे दबाने के लिए राजनैतिक और सैन्य ताकत भी आजमाई जाती है.
इटली के तानाशाह मुसोलिनी ने इसकी शुरुआत की. नेशनल फासिस्ट पार्टी के लीडर के उकसावे पर अक्टूबर 1922 में फासिस्ट मिलिशया तैयार हो गई, जिसने पूरे रोम की सड़कों पर नारे लगाते हुए मार्च किया. जिसने भी विरोध किया, उसे खत्म कर दिया गया. यह विचारधारा आगे चलकर जर्मनी तक पहुंच गई. हिटलर की मिलिशिया भी कुछ इसी तर्ज पर काम करती थी. लेकिन वहां इसे नेशनल सोशलिज्म कहा गया. यहां से फासिज्म स्पेन और दूसरे देशों तक फैलता चला गया.

पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने गुरुवार को बलूचिस्तान के दौरे पर पहुंचे हैं, जहां उन्होंने कानून-व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा की. पाकिस्तानी सेना का दावा है कि उसने रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा कर लिया है तो दूसरी ओर बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) का कहना है कि ISPR द्वारा किए गए दावे झूठे हैं और पाक हार को छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहा है.

पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान पर जबरन कब्जे के बाद से बलूच लोग आंदोलन कर रहे हैं. पाकिस्तानी सेना ने पांच बड़े सैन्य अभियान चलाए, लेकिन बलूच लोगों का हौसला नहीं टूटा. बलूच नेता का कहना है कि यह दो देशों का मामला है, पाकिस्तान का आंतरिक मुद्दा नहीं. महिलाओं और युवाओं पर पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से आजादी की मांग तेज हुई है. देखें.