
हरियाणा नगर निकाय चुनावों में बीजेपी की बंपर जीत में प्रदेश कांग्रेस की कितनी भूमिका?
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आम तौर पर कहा जाता है कि प्रदेश में जिसकी सरकार रहती है स्थानीय निकाय चुनावों में उस दल का ही बहुमत होता है. पर बिल्कुल ऐसा भी नहीं है. वह भी तब जब कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी का राज्य से सफाया ही हो जाए. वह भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे कद्दावर नेताओं के इलाके से भी पार्टी न जीत पाए तो सवाल तो उठेंगे ही.
हरियाणा नगर निकाय चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 नगर निगमों में से 9 पर जीत दर्ज कर ली है, जिसमें कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेंद्र हुड्डा का गढ़ रोहतक भी शामिल है. जबकि मानेसर में निर्दलीय महिला उम्मीदवार को जीत मिली है. जिसके बारे में बताया जा रहा है कि ये बीजेपी की बागी कैंडिडेट हैं. कांग्रेस पर इस सीट को जीतने का मौका था पर यहां भी उसकी दाल नहीं गली. विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस के पास शक्ति प्रदर्शन का यह अच्छा मौका था पर पार्टी के गढ़ों में भी प्रत्याशी जीत नहीं सके. भूपेंद्र सिंह हुड्डा होम टर्फ रोहतक और रेशलर से विधायक बनीं विनेश फोगाट के इलाके जुलाना में भी कांग्रेस को शर्मिंदा होना पड़ा है. बड़ी बात यह भी है कि कांग्रेस उम्मीदवारों की हार बड़े मतों के अंतर से हुई है. फरीदाबाद में बीजेपी की परवीन जोशी ने 3 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की, जबकि गुरुग्राम में राज रानी ने 1.79 लाख वोटों के अंतर से विजय प्राप्त की है. आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण रहे जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को उसके सबसे मजबूत गढ़ों में भी धूल चटा दिया है.
1-कांग्रेस का हुड्डा को प्रतिपक्ष का नेता नहीं बनाना
निकाय चुनाव के नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि इन परिणामों का कांग्रेस पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा, पहले भी नगर निगमों में बीजेपी का दबदबा रहा है. अगर हम कोई सीट हारते तो यह झटका होता, लेकिन ये हमारे पास पहले से ही नहीं था. कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिली होगी, लेकिन मैं चुनाव के दौरान कहीं नहीं गया. मुझे नहीं लगता कि इन नतीजों का कोई खास प्रभाव होगा.
हालांकि अभी तक प्रदेश की केवल 6 नगर निगम सीटों पर बीजेपी काबिज थी. हरियाणा की 2 नगर निगम वाले शहरों में कांग्रेस के मेयर थे और एक शहर में हरियाणा जन चेतना पार्टी की मेयर थी. मानेसर नगर निगम में पहली बार चुनाव हुए हैं पर यहां बीजेपी कैंडिडेट को हार मिली है. पर कांग्रेस को यहां भी मौका नहीं मिल सका है.
दरअसल हरियाणा विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस पार्टी अभी तक नेता प्रतिपक्ष का चुनाव नहीं कर सकी है. हरियाणा में माना जाता है कि कांग्रेस हुड्डा की मुट्ठी में है. कांग्रेस के कुल 37 विधायकों में से बमुश्किल 3 या 4 विधायक ही हुड्डा कैंप के नहीं हैं. जाहिर है कि हुड्डा के दबदबे को देखते हुए नेता प्रतिपक्ष का पद उन्हें दे देना चहिए था. पर कांग्रेस पार्टी में हुड्डा को लेकर क्या चल रहा है ये कोई नहीं समझ सकता है. जाहिर है ऐसे में पार्टी की दुर्दशा तो होनी ही थी. हरियाणा में कांग्रेस में हुड्डा पिता-पुत्र ही जमीन के नेता हैं. इन दोनों ही ने इस बार ग्राउंड पर उतर कर मेहनत नहीं की . नतीजा सामने है.
2-दिल्ली में आम आदमी पार्टी जैसा संघर्ष नहीं दिखा कांग्रेस का

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