सिर्फ सत्ता नहीं पार्टी का 'रिमोट कंट्रोल' भी उद्धव ठाकरे ने खो दिया!
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अब उद्धव की सत्ता जाने वाली पटकथा समझने के लिए बाला साहेब ठाकरे की कार्यशैली को समझना जरूरी हो जाता है. क्योंकि वो अंतर ही ये बताने के लिए काफी रहेगा कि उद्धव ठाकरे से कहां कितनी बड़ी चूक हुई है.
महाराष्ट्र की सियासत में जितने ड्रामे होने थे, जितने नाटकीय मोड़ आने थे, सब हो गया. नए सीएम के रूप में एकनाथ शिंदे ने शपथ भी ले ली. देवेंद्र फडणवीस ने भी बड़ा राजनीतिक दांव चलते हुए डिप्टी सीएम का पद स्वीकार कर लिया. लेकिन इन तमाम गतिविधियों के बीच उद्धव ठाकरे का क्या हुआ? ठाकरे परिवार के उस पहले मुख्यमंत्री का क्या हुआ?
उद्धव ठाकरे ने जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, वो एक बड़ा मौका था. सत्ता हाथ में आ रही थी, लेकिन साथी ही साथ पहली बार ठाकरे परिवार लोकतंत्र का हिस्सा बन रहा था. ऐसे में उम्मीदें तो काफी थीं, ऐसे भी कयास थे कि उद्धव अपने पिता बाला साहेब ठाकरे की तरह सरकार का 'रिमोट कंट्रोल' अपने हाथ में रखेंगे. लेकिन हुआ उसका उलट, सरकार बनने के बाद इतनी चुनौतियां सामने आईं कि पार्टी से तो ध्यान हटा ही, सत्ता भी हाथ से चली गई.
अब उद्धव की सत्ता जाने वाली पटकथा समझने के लिए बाला साहेल ठाकरे की कार्यशैली को समझना जरूरी हो जाता है. क्योंकि वो अंतर ही ये बताने के लिए काफी रहेगा कि उद्धव ठाकरे से कहां कितनी बड़ी चूक हुई है. जब राज्य में बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन वाली सरकार चलती थी और मनोहर जोशी मुख्यमंत्री हुआ करते थे, उस समय सत्ता पर पूरा कंट्रोल बाल ठाकरे का रहता था. क्या केंद्र के मंत्री, क्या राज्य सरकार के मंत्री, सभी सिर्फ उन्हें सला-मशवरा किया करते थे. उनके फैसलों का ही सम्मान होता था.
22 नवंबर, 1995 को तो बाल साहेब ठाकरे का वो अंदाज और ज्यादा मुखर होकर सामने आया था. 1995 में एनरॉन इंटरनेशनल के अध्यक्ष केनेथ ले और मुख्य कार्यकारी अधिकारी रेबेका मार्क ने भाजपा-शिवसेना सरकार के साथ बातचीत करने के लिए भारत का दौरा किया था. बड़ी बात ये थी तब वे दोनों ही लोग सीएम मनोहर जोशी से नहीं मिले, बल्कि उन्होंने बाल ठाकरे से मुलाकात की. सिर्फ उनका बाल ठाकरे से मिलना ये बताने के लिए काफी था कि सरकार में कोई भी क्यों ना रहे, रिमोट कंट्रोल ठाकरे के हाथ में है. उस समय खुद बाल ठाकरे ने भी कहा था हां मैं ही रिमोट कंट्रोल हूं.
अब उस समय बाल ठाकरे की वो ताकत थी. लेकिन उद्धव ठाकरे के कार्यकाल के दौरान वो ताकत, वो अंदाज गायब रहा. इसी वजह से आज नौबत ऐसी आ गई है कि एकनाथ शिंदे अपने साथ शिवसेना के ही 40 से ज्यादा विधायक ले गए हैं. आलम ये है कि शिंदे इसे ही असल शिवसेना बता रहे हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की सत्ता तो गंवाई ही है, पार्टी का वर्चस्व भी खतरे में पड़ता दिख रहा है.
बड़ी बात ये भी है कि लंबे समय तक बाल ठाकरे के समय बीजेपी जूनियर पार्टी की भूमिका में रहती थी. तब ऐसी भी खबरें आती थीं कि बाल ठाकरे सिर्फ अपने मन की करते थे, बीजेपी को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी. ऐसे में इतने सालों बाद जब अब परिस्थिति बदली है, जानकार मान रहे हैं कि उद्धव ठाकरे के हाथ में शिवसेना का रिमोट कंट्रोल कई सालों तक अब नहीं दिया जाएगा.
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