सांसदी छिनने के बाद अब क्या करेंगी महुआ मोइत्रा? सामने हैं ये 5 ऑप्शन
AajTak
संसद की एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर शुक्रवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने ध्वनिमत से ये प्रस्ताव पारित करके मोइत्रा को संसद की सदस्यता से निष्कासित कर दिया है. विपक्षी इसे लोकतंत्र की हत्या बता रहे हैं तो वहीं बीजेपी आरोप लगा रही है कि सांसद महुआ मोइत्रा ने विशेषाधिकार की धज्जियां उड़ाई. अब सवाल है कि महुआ के पास क्या ऑपशन हैं?
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की कैश फॉर क्वेरी केस में सांसदी रद्द कर दी गई है. संसद की एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर शुक्रवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने ध्वनिमत से ये प्रस्ताव पारित करके मोइत्रा को संसद की सदस्यता से निष्कासित कर दिया है. विपक्षी इसे लोकतंत्र की हत्या बता रहे हैं तो वहीं बीजेपी आरोप लगा रही है कि सांसद महुआ मोइत्रा ने विशेषाधिकार की धज्जियां उड़ाई. दरअसल, पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट से टीएमसी की सांसद रहीं महुआ मोइत्रा पर दो संगीन आरोप लगे थे. पहला आरोप था कि 2019-23 के बीच महुआ मोइत्रा के लॉगिन से 61 बार सवाल पूछा गया, जो महुआ की तरफ से दर्शन हीरानंदानी ने पूछा था. दूसरा आरोप था कि महुआ ने संवेदनशील जानकारियों वाला संसदीय लॉग इन आईडी और पासवर्ड दूसरे शख्स को दे दिया था. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की ओर से दी गई लिखित शिकायत के आधार पर संसद की एथिक्स कमेटी ने संज्ञान लिया.
महुआ के पास अब क्या हैं ऑप्शन?
अब यहां सवाल उठता है कि सांसदी छिनने के बाद महुआ मोइत्रा के पास क्या ऑप्शन हैं. संविधान के जानकारों की मानें तो महुआ के पास अब पांच विकल्प बचे हैं. हालांकि इनसे उन्हें कितनी राहत मिलेगी, इस पर कुछ भी कहना संभव नहीं है.
सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा के मुताबिक महुआ मोइत्रा तीन विकल्पों का इस्तेमाल कर सकती हैं. पहला, वे चाहे तो फैसले की समीक्षा करने के लिए संसद से अनुरोध करें. हालांकि ये संसद के विवेक पर निर्भर करेगा कि वे इस पर पुनर्विचार करेगी या नहीं. दूसरा मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के सीमित मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का रुख करें. तीसरा, फैसले को स्वीकार करें और 4 महीने में फिर से चुनाव लड़ें.
इन दो विकल्पों का भी कर सकती हैं इस्तेमाल
1. आचार समिति के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौती देना: महुआ यह तर्क दे सकती हैं कि आचार समिति ने अपने आदेश का उल्लंघन किया कि कार्यवाही अनियमित थी, या द्वेष या पूर्वाग्रह के साथ आयोजित की गई थी. इसके अलावा, वह यह भी तर्क दे सकती हैं कि इस मामले को विशेषाधिकार समिति को देखना चाहिए था, न कि आचार समिति को.
मणिपुर हिंसा को लेकर देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम खुद अपनी पार्टी में ही घिर गए हैं. उन्होंने मणिपुर हिंसा को लेकर एक ट्वीट किया था. स्थानीय कांग्रेस इकाई के विरोध के चलते उन्हें ट्वीट भी डिलीट करना पड़ा. आइये देखते हैं कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व क्या मणिपुर की हालिया परिस्थितियों को समझ नहीं पा रहा है?
महाराष्ट्र में तमाम सियासत के बीच जनता ने अपना फैसला ईवीएम मशीन में कैद कर दिया है. कौन महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री होगा इसका फैसला जल्द होगा. लेकिन गुरुवार की वोटिंग को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा जनता के बीच चुनाव को लेकर उत्साह की है. जहां वोंटिग प्रतिशत में कई साल के रिकॉर्ड टूट गए. अब ये शिंदे सरकार का समर्थन है या फिर सरकार के खिलाफ नाराजगी.