संसद से सजा मिलने के बाद महुआ मोइत्रा के दोनों हाथ आया लड्डू, नई पारी-नया जोश
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महुआ मोइत्रा को सजा मिल चुकी है, लेकिन दोनों हाथों में लड्डू भी देख सकते हैं. ममता बनर्जी और सोनिया गांधी का साथ. महुआ मोइत्रा के पास कोर्ट जाने का विकल्प खुला है. सवाल है कि अपने वोटर को वो कैसे समझा पाएंगी कि संसद की लॉगिन-पासवर्ड जैसी संवेदनशील जानकारी शेयर करने में कुछ भी गलत नहीं है?
महुआ मोइत्रा को संसद से निष्कासित कर दिया गया है. ममता बनर्जी सहित महुआ मोइत्रा की फिक्र करने वाले सभी नेताओं को पहले से ही ऐसी आशंका थी. महुआ मोइत्रा के निष्कासन को विपक्ष लोकतंत्र की हत्या बता रहा है, और बीजेपी का कहना है कि महुआ मोइत्रा ने बतौर सांसद मिले विशेषाधिकार की धज्जियां उड़ाई है.
पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर लोक सभा पहुंची महुआ मोइत्रा पर आरोप था कि उन्होंने संसद से जुड़ी लॉगिन आईडी और पासवर्ड एक बाहरी व्यक्ति को दे दिया था. आरोप ये भी था कि 2019-23 के बीच महुआ मोइत्रा के लॉगिन से 61 बार सवाल पूछा गया, जिसमें कारोबारी दर्शन हीरानंदानी की दिलचस्पी थी.
संसद की एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने ध्वनिमत से एक प्रस्ताव पारित करके महुआ मोइत्रा को संसद की सदस्यता से निष्कासित कर दिया. अपने खिलाफ फैसले को लेकर महुआ मोइत्रा ने कई सवाल उठाये हैं, जिनमें से एक है - आरोप लगाने वाले बिजनेसमैन को क्यों नहीं बुलाया गया?
महुआ मोइत्रा के पास कोर्ट जाने का भी विकल्प है, लेकिन लोक सभा चुनाव में भी ज्यादा वक्त नहीं बचा है. एक वक्त ऐसा भी रहा जब महुआ मोइत्रा लड़ाई में अकेले पड़ती नजर आ रही थीं, लेकिन अब उनके सपोर्ट में सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी भी खड़ी हो गयी हैं - और ये मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में महुआ मोइत्रा की अहमियत के साथ साथ भविष्य की राजनीति की ओर भी इशारा कर रहा है.
महुआ मोइत्रा के पास अब क्या विकल्प बचे हैं
आखिरी अदालत तो जनता की अदालत ही होती है, लेकिन उससे पहले महुआ मोइत्रा चाहें तो इंसाफ पाने के लिए कानून की अदालत में भी जा सकती हैं. जनता की अदालत में ही 2019 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी 'चौकीदार चोर है' जैसे नारे लगाते रहे, लेकिन लोगों ने पहले के मुकाबले ज्यादा बहुमत के साथ बीजेपी को फिर से सत्ता सौंप दी. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव और 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल को 'आतंकवादियों से संपर्क रखने वाला' साबित करने की कोशिश हुई.
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