यूपी उपचुनाव: क्या लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन से डर गए हैं अखिलेश यादव? | Opinion
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उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनावों के लिए कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग के लिए अखिलेश यादव की नीयत साफ नहीं नजर आ रही थी. कम से कम एक जिताऊ सीट तो कांग्रेस को ऑफर करना ही चाहिए था, उसके साथ दो हारने वाली सीटें भी चल जातीं.
क्या अखिलेश यादव कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में खत्म करना चाहते हैं? क्या समाजवादी पार्टी के मुखिया को कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रियता से खतरा महसूस होने लगा है? क्या उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम को ऐसा लगता है कि कांग्रेस के यूपी में उत्थान से उनकी राजनीति खत्म हो जाएगी? इस तरह के तमाम सवाल उत्तर प्रदेश की राजनीतिक गलियारों में तब से तैर रहे हैं, जबसे अखिलेश यादव ने यह बताया है कि यूपी में समाजवादी पार्टी के सिंबल पर इंडिया गठबंधन सभी 9 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. हालांकि अखिलेश इस बात को बताते हुए उन्होंने अपनी एक्स पोस्ट में कांग्रेस के प्रति निहायत ही सहृदयता वाली भाषा का इस्तेमाल किया है. पर यूपी के लोग जानते हैं कि पिछले कुछ दिनों से उपचुनावों की सीट शेयरिंग को लेकर किस तरह का बवाल मचा हुआ था. अखिलेश यादव जानबूझकर ऐसी चाल चल रहे थे कि कांग्रेस को पीछे हटने के अलावा और कोई चारा नहीं मिला. तमाम राजनीतिक लोग इसे अखिलेश यादव का ऐसा दांव बता रहे हैं, जिससे कांग्रेस चारों खानों चित हो गई है.
दरअसल देश में बहुत तेजी से मजबूत हो रही कांग्रेस उत्तर प्रदेश में भी बहुत तेजी से अपने पुराने कोर वोटर्स के बीच में अपनी पैठ बना रही है. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के अननोन प्रत्याशियों को भी भर-भर कर वोट मिले थे उसे देखकर अखिलेश का डरना स्वाभाविक ही लगता है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस एक सो रहे जानवर के समान है जो जाग गया तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे राजनीतिक दलों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा.
लोकसभा चुनावों में यूपी में कांग्रेस का प्रदर्शन
लोकसभा चुनावों के पहले भी अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग के लिए वही रणनीति अपनाई थी जो अभी कुछ दिनों से वह विधानसभा उपचुनावों में सीट शेयरिंग के लिए कर रहे थे. अखिलेश यादव बिना कांग्रेस की सहमति लिए अपनी ओर से पार्टी प्रत्याशियों की घोषणा करते गए. और बची -खुची सीटों के लिए कांग्रेस का नाम प्रस्तावित किया. ऐसा ही उन्होंने लोकसभा चुनावों के लिए किया था. लोकसभा में अमेठी और रायबरेली को छोड़कर कोई भी सीट ऐसी कांग्रेस को नहीं दी गई थी जहां कांग्रेस या समाजवादी पार्टी जीतने की स्थिति में थी. ऐसी गई गुजरी कुल 17 सीटें दी गईं जिसमें एक पीएम मोदी की सीट वाराणसी भी थी, जहां से हार पहले ही तय थी.
फिर भी कांग्रेस ने 6 सीटें जीत लीं और 6 सीटों पर बहुत मामूली अंतर से वह जीतने से रह गई. बांसगांव में कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद की जीत मात्र 3150 वोटों से रह गई थी. इस तरह कुल 17 सीटों में 12 सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत शानदार रहा. अमेठी में स्मृति इरानी की हार कुल 167000 के करीब बड़े अंतर हार गईं थीं. यह हार यूं ही नहीं थी. इसका सीधा मतलब था कि कांग्रेस को हर वर्ग के वोट मिले थे. इसी तरह राहुल गा्ंधी ने भी रायबरेली से करीब 290000 वोटों से यूपी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को हराया था . सीतापुर, बाराबंकी और सहारनपुर और प्रयागराज में कांग्रेस की जीत शानदार रही. खुद अखिलेश और राहुल गांधी को भी नहीं पता था कि इस तरह की सफलता कांग्रेस को मिलेगी. 2014 और 2019 के मुकाबले कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी यूपी में बढ़िया रहा.
सपा और कांग्रेस का एक ही प्रोडक्ट और एक जैसे कस्टमर हैं
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