
यूक्रेन से कश्मीर की तुलना, बिलावल बोले- क्यों महज कागज का टुकड़ा बन जाता है UNSC का प्रस्ताव
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बिलावल भुट्टो की बेतुकी बयानबाजी का सिलसिला जारी है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में उन्होंने अपनी खीझ निकालते हुए कहा कि यूं तो यूरोप और पश्चिम के देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव बहुत मायने रखता है लेकिन कश्मीर की बात आते ही ये प्रस्ताव महज कागज बन जाता है.
पाकिस्तान के नौसिखिए विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो की बेतुकी बयानबाजी जारी है. इस बार बिलावल भुट्टो ने यूक्रेन की तुलना कश्मीर से की है. यूक्रेन संकट में कश्मीर को जबरन लाते हुए बिलावल भुट्टो ने कहा कि ये पहला संकट नहीं है जब यूनाइटेड नेशंस के प्रस्ताव का उल्लंघन किया गया है.
कश्मीर पर अपना प्रोपगैंडा फैलाने में नाकाम रहने वाले बिलावल ने यूरोप और पश्चिमी देशों पर अपनी खीझ निकालते हुए कहा कि जिस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्तावों का पश्चिम और यूरोपीय देशों के लिए इतना महत्व रहता है उन्हीं प्रस्तावों का कागज के टुकड़े से ज्यादा महत्व नहीं रह जाता है जब बात कश्मीर की आती है.
स्विटजरलैंड के दावोस में चल रहे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में एक चर्चा को संबोधित करते हुए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन और पाक विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने यूक्रेन संकट पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में कूटनीति में शामिल होने के लिए दोनों पक्षों को अधिक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना होगा.
यूक्रेन संकट का जिक्र करते हुए बिलावल भुट्टो ने कहा कि इस युद्ध का प्रभाव सिर्फ यूरोप तक सीमित नहीं है, बल्कि अनाज की बढ़ी कीमतों और महंगे पेट्रोलियम पदार्थों के रूप में पाकिस्तान को भी प्रभावित कर रहा है. बिलावल भुट्टो ने कहा, "जहां तक यूएनएससी प्रस्तावों, अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय संकट के समर्थन का संबंध है, हम दुनिया के समान विचार साझा करते हैं, हालांकि, हम संघर्ष को अपने समय में पहली बार नहीं देख रहे हैं जहां संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन किया गया."
اقوام متحدہ سیکیورٹی کونسل کی قراردادیں اور بین الاقوامی قوانین کا اطلاق بلا تفریق ہر ملک پر ہونا چاہیئے۔ کشمیر کا سوال آنے پر یہی قراردادیں اور قانون بے معنی کیوں ہو جاتے ہیں؟#WEF23 #WEF2023 pic.twitter.com/tJRNmjwinL

यूक्रेन के पड़ोसी पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने कहा यूक्रेन के साथ यूरोपीय देशों की सेना में 2.6 मिलियन सैनिक हैं, जबकि अमेरिका के पास 1.3 मिलियन, चीन के पास 2 मिलियन और रूस के पास 1.1 मिलियन सैनिक हैं. यूरोप अगर गिनना जानता है तो उसे खुद पर भरोसा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि यूरोप वर्तमान में

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